एक तो गर्म मौसम और ऊपर से ये बेवजह की मसरूफियत,बहोत दिनों तक आप सभी से दूर रक्खा ॥ इस देरी के लिए आप सभी से मुआफी चाहता हूँ ...पर एक बात है गूरू जी के छड़ी में बहोत आनंद है ... गूरू जी के आर्शीवाद से ये ग़ज़ल आप सभी के सामने पेश करने लायक बन पड़ी ... तो हाज़िर हूँ मैं इस ग़ज़ल को लेकर आप सभी का प्यार और आर्शीवाद के लिए ... मगर पहले ये तस्वीर आदरणीय श्री मुफलिस जी और बड़े भाई श्री मनु जी के साथ ... इसे मेरा सौभाग्य ही समझें ॥

आदरणीय श्री मुफलिस जी, मैं , और बड़े भाई मनु जी
बह'र ..... २१२२ १२१२ २२
दास्तां अपनी क्या कही जाये
बात उसकी ही बस सुनी जाये ॥
कर्ज पर ले तो आए हैं चीजें
किश्त अब किस तरह भरी जाये ॥
जब भी रुखसत करूँ मैं दुनिया से
मेरे संग याद बस तेरी जाये ॥
मैं खुशामद तो कर नही सकता
पर मेरी बात भी सुनी जाये ॥
कुछ नहीं है सिवाए यादों के
आज इनसे ही बात की जाये ॥
ज़िंदगी की फटी हुई चादर
आज फुरसत में बैठ सी जाये॥
'अर्श' ये इश्क भी अजब शै : है
आँख से नींद है उड़ी जाये ॥
और आख़िर में चलते चलते आप सभी को एक ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहता हूँ ... ग़ज़ल गायकी की दुनिया में मैं अपना गूरू उस्ताद गुलाम अली साहब को अपना गूरू मानता हूँ , चूँकि उनको बचपन से ही सुनता रहा हूँ और सुनके ही गज़लें गायी है तो चलिए सुनते है उनकी एक ग़ज़ल के कुछ शे'र मेरी आवाज़ में अगर कोई गलती हो गई हो तो मुआफी चाहूँगा आप सभी से .....
प्रकाश'अर्श'
२३/०७/२००९