Tuesday, October 14, 2008

बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे .....

वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
दूर जाते -जाते पास आने लगे ॥

दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥

मेरी मोहब्बत भी मुक्कमल हो गई होती
बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे ॥

वो मय था शराब था जो कल तलक
मैखाने में वही आने - जाने लगे ॥

जो ग़लत था तौबा किया था लोगों ने
आज वही गीत वो गुनगुनाने लगे ॥

बड़ी अदब से जब कहा खुदाहाफिज़ "अर्श"
जो कहने में शायद हमें ज़माने लगे ॥

प्रकाश "अर्श"
१४/१०/२००८

5 comments:

  1. दिलो-दिमाग सेजिसको निकालना चाहा
    हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
    अर्श साहेब बहुत बढ़िया लिखा है आपने एक एक शेर सहेजने लायक ,वाकई मज़ा आ गया पढ़ कर
    शुभ कामनाएं स्वीकार करें

    ReplyDelete
  2. वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
    दूर जाते -जाते पास आने लगे ॥

    क़सम से बहुत उम्दा बात की है आपने!

    ReplyDelete
  3. दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
    हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
    "wah, kya jujbat-e-jikr hai, jinko bhulana chaha vo utna yaad aye ko chreetarh kertee aapke ye poetry bhut khubsuret hai"

    Regards

    ReplyDelete
  4. वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
    दूर जाते -जाते पास आने लगे ॥

    दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
    हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥

    मेरी मोहब्बत भी मुक्कमल हो गई होती
    बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे ॥

    kitni gaheri baat kahedi apane.. bahut hi badhiya likha hai Arshji

    ReplyDelete
  5. दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
    हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥


    बहुत सुन्‍दर ..... आभार ।


    दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।

    ReplyDelete

आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...