वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
दूर जाते -जाते पास आने लगे ॥
दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
मेरी मोहब्बत भी मुक्कमल हो गई होती
बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे ॥
वो मय था शराब था जो कल तलक
मैखाने में वही आने - जाने लगे ॥
जो ग़लत था तौबा किया था लोगों ने
आज वही गीत वो गुनगुनाने लगे ॥
बड़ी अदब से जब कहा खुदाहाफिज़ "अर्श"
जो कहने में शायद हमें ज़माने लगे ॥
प्रकाश "अर्श"
१४/१०/२००८
दिलो-दिमाग सेजिसको निकालना चाहा
ReplyDeleteहुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
अर्श साहेब बहुत बढ़िया लिखा है आपने एक एक शेर सहेजने लायक ,वाकई मज़ा आ गया पढ़ कर
शुभ कामनाएं स्वीकार करें
वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
ReplyDeleteदूर जाते -जाते पास आने लगे ॥
क़सम से बहुत उम्दा बात की है आपने!
दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
ReplyDeleteहुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
"wah, kya jujbat-e-jikr hai, jinko bhulana chaha vo utna yaad aye ko chreetarh kertee aapke ye poetry bhut khubsuret hai"
Regards
वो दुश्मनी इस कदर निभाने लगे ।
ReplyDeleteदूर जाते -जाते पास आने लगे ॥
दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
हुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
मेरी मोहब्बत भी मुक्कमल हो गई होती
बड़ी अदब से मुझको आजमाने लगे ॥
kitni gaheri baat kahedi apane.. bahut hi badhiya likha hai Arshji
दिलो-दिमाग से जिसको निकालना चाहा
ReplyDeleteहुजुर बनके वो जहन में छाने लगे ॥
बहुत सुन्दर ..... आभार ।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें ।