Thursday, July 3, 2008

वो आधी चादर.......

कहने को तो है सारा जहाँ मेरा,
ये ज़मीं मेरी ये आसमान मेरा॥

में थक के बैठा हूँ सोंचता हूँ तनहा,
बहोत देर होली,अब होजा अँधेरा,
मिले चंद पैसा तो लेलूं मैं राशन,
पकाऊं कहाँ मैं ,ना है कोई चुल्हा,
बस पी लूँ , घूंट पानी तो मिटे भूख सारा,
बिछा लूँ में चादर वहीँ फुटपाथ पर,
सो जाऊँ तानकर मैं वही आधी चादर,
कहने को तो है सारा जहाँ मेरा।
ये ज़मीं मेरी ये आसमान मेरा॥

कड़ी धुप में भी वो तोड़ती पत्थर,
चूडियों की खनक पे वो अब भी है दीवाना,
बगल में है रोता चिल्लाता ,वो छोटा माँ माँ,
छाती से लगाती वो कहती है, चुप हो ले
आँचल से छुपाती,तो वही फटी आँचल
कमाए की कहती है पुरी कहानी ,
वो उठ कर ओढ़ता है फ़िर वही अधि चादर,
कहने को तो है सारा जहाँ मेरा,
ये ज़मीं मेरी ,ये आसमान मेरा॥

वो है कैसे जिन्दा इस ऐसे शहर में ,
जो है लंगडा ,लुल्हा,गूंगा और बहरा,
मेरा हाँथ पैर तो सलामत है लेकिन ,
अमीरी गरीबी का है खेल सारा ,
कोई तो गरीबी मिटा दो ,मिटा दो यहाँ से
यही एक ख्वाब है मुझ जैसे गरीब की ,
फ़िर सो जाऊँ तानकर वही अधि चादर,
कहने को तो है सारा जहाँ मेरा ,
ये ज़मीं मेरी ये आसमान मेरा ॥


प्रकाश "अर्श"
०२/०७/2008

1 comment:

  1. Kujh log bhi kahte hain ..Kujh hum bhi kahte hain..
    yu hii hum kahi khud ko dhundh rahe..
    Aapko jab padha to ek khayal aaya....
    Jahan me sirf aapka hi naam aaya....
    Khud me sharmindgi aa\ur phir se ARSH par pyar aaya..
    Aapki tarif kya kare ,Dua he upar wale se Zindgi ki har khushi de aapko..apki pareshani de de hame,Aapko jeene ka wo maza de.

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