Monday, August 18, 2008

कैसे कहूँ के फकत वाक्य हो तुम.....

कैसे कहूँ के फकत वाक़या हो तुम ।
मुझसे कोई पूछे भला क्या-क्या हो तुम॥

जो हो सका ना , मिल सका मुझको ,
वही सज़दा मेरी वही खुदा हो तुम ॥

नही है रोशनी मेरी मुक्कदर में ना सही ,
मैं जानता हूँ एक जलती हुई चरागा हो तुम ॥

शुर्ख होंठो पे तब्बसुम की बिजलियाँ ,
ये भरम है,चाँद तारों का हिस्सा हो तुम ॥

अजीब शख्स है ,फकत हँसता रहता है ,
गर खफा हो तो कह दो के खफा हो तुम ॥

"अर्श" पि के होश में आया न उम्र भर ,
वही मय हो वही मयकदा हो तुम ॥


प्रकाश "अर्श"
१७/०८/२००८

3 comments:

  1. Prakash ji itani sundar rachana. vakai bhut badhiya. ati uttam.

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  2. सुर्ख होंठो पे तब्बसुम की बिजलियाँ ,
    ये भरम है,चाँद तारों का हिस्सा हो तुम ॥
    सचमुच शानदार लिखा, वाह!

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  3. शुर्ख होंठो पे तब्बसुम की बिजलियाँ ,
    ये भरम है,चाँद तारों का हिस्सा हो तुम ॥


    kya likh hai huzur, kamal kar diya!
    bahut khub !!!
    aap ke blog ko padhna ek sukhad anubhav tha..


    aur han aap ne mere blog pe apni dastak di......
    main aapka aabhari rahunga.


    jaate jaate....
    aapko agli baar apne blog par aane ka nimantran de raha hun.....


    "mele blog pe julul aana" shayad ye totli juban aapko aane pe majboor kar de.......

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