मिसरा-ऐ- तरह ... रात भर आवाज देता है कोई उस पार से ...
ज़िंदगी भर पाला पोसा जिसको इतने प्यार से
कर दिया बूढा बता के बेदखल घर बार से ॥
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालबी
अब तलक भी दूर है बस एक निगाहे यार से ॥
वो मेरे कहने पे देखो आगया था बाम पर
है ख़बर उसको भी मैं जिन्दा हूँ दीदार से ॥
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
और हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
चीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
जनपदों में दर्ज शिकवे रहते है बेकार से ॥
अर्श कातिल कर रहा है मुन्सफी ख़ुद कत्ल का
फैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अखबार से ॥
प्रकाश 'अर्श '
कर दिया बूढा बता के बेदखल घर बार से ॥
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालबी
अब तलक भी दूर है बस एक निगाहे यार से ॥
वो मेरे कहने पे देखो आगया था बाम पर
है ख़बर उसको भी मैं जिन्दा हूँ दीदार से ॥
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
और हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
चीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
जनपदों में दर्ज शिकवे रहते है बेकार से ॥
अर्श कातिल कर रहा है मुन्सफी ख़ुद कत्ल का
फैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अखबार से ॥
प्रकाश 'अर्श '
BAHUT ACHHI RACHNA.
ReplyDeleteगुरूभाई अर्श, मिसरा इतना शानदार दिया था गुरूदेव ने कि सबने जम कर गज़ल लिखी है। इस बार की तरही तो ब्रह्मानंद की अनुभुति करा रही है। बहुत-बहुत बधाई इस खूबसूरत गज़ल से नवाजने के लिये।
ReplyDeletehamesha ki trah umda
ReplyDeleteवो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
ReplyDeleteऔर हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
...bahut khoob !!!!
वाह बेटाजी ये इश्क का दरिया ये रतजगे ये सुर्ख आँखें और दिल की धडकन ये सब लक्षण तो बडे खतर नाक हैं अब मा बाप को होश्यार हो जाना चाहिये तुम्हारे गुरू जी कहते है धीर गम्भीर है शर्मीला है वैसे कुछ हद तक सच है मगर गज़ल मे खूब रंग भरा है देख कर खुशी हुई कि रण्ग बदलने लगा है बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteरतजगों का सुरख आँखों का सबब बतलायें क्या
रात मे आवाज़ देता है कोई उस पार से
अब ये आवाज़ आने लगी है तो लगता है जल्दी ही मेरी बहु भी आने वाली है अब तो गुरूजी का आशीर्वाद भी मिल गया है मगर एक शिकायत है कि जल्दी जल्दी पोस्ट लिखा करो रात को आवाज़ें सुना करो दिन मे लिख लिया करो बहुत बहुत आशीर्वाद और तुम्हारे गुरूजी क बहुत बहुत धन्यवाद जो हीरे को तराश रहे हैं
बहुत सुंदर शेर
ReplyDeleteधन्यवाद
ishq ke dariya ko socha paar kar lu doob ke....boht sunder...dosto jaa se gujrta koun hai..ishq ho jata hai karta kaun hai....
ReplyDeletebhaiya ghazal bahut achhi lagi..
ReplyDeleteshayad first line me 'jisko' nahi 'jisne' hoga...
अर्श आपकी गजल कल ही तरही मुशायरे में पढ़ ली है मगर अभी कमेन्ट नहीं कर पाया हूँ
ReplyDeleteआपकी इस गजल के हर शेर ने एक अलग अहसाह को जन्म दिया
ज़िंदगी भर पाला पोसा जिसको इतने प्यार से
कर दिया बूढा बता के बेदखल घर बार से ॥
(इस शेर ने एक बूढी औरत की याद दिलाई जिसके तीन बेटों ने उसको घर से निकाल दिया था )
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
(जब मैहर माँ दर्शन करने जाता हूँ तो रात भर जाग कर आँखे सुर्ख हो जाती है और माँ पहाडी के उस पार से बुलाती रहती हैं वो सफ़र याद आया इस शेर से)
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥
(कितनी बार लड़कियों से दोस्ती हुई और हर बार मैं इस दोस्ती को आगे बढ़ने से डर कर भगोड़ा बना :) इस शेर ने अहसास करवाया )
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालाबी
अब तलक भी दूर है बस एक निगाहे यार से ॥
(मेरा अब तक का पूरा जीवन ही इस शेर का तलबगार है )
वो मेरे कहने पे देखो आगया था बाम पर
है ख़बर उसको भी मैं जिन्दा हूँ दीदार से ॥
{काश मेरे साथ भी ऐसा होता :)}
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
और हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
(इस शेर को पढ़ते ही तुंरत गौतम साहब की याद आई )
चीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
जनपदों में दर्ज शिकवे रहते है बेकार से ॥
(सरकार का निकम्मापन और हो रहे अत्याचार की सजग दास्ताँ )
अर्श कातिल कर रहा है मुन्सफी ख़ुद कत्ल का
फैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अखबार से ॥
(देश दुनिया में इसके सिवा क्या हो रहा है )
वीनस केसरी
रतजगों की सुर्ख आँखों का सबब .....??
ReplyDelete(वो ही मस्त पार्टी.....)
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर...
क्या कहा है अर्श भाई...
कतला और मक्ता शानदार बने हैं....
गिरह भी मस्त लगाया है.........
इसी पर उस दिन गौतम भाई के मुंह से सूना था ;;
"चीड के जंगल खड़े थे देखते लाचार से.''
वो धुन जबान पर उसी दिन से चढी हुयी है ..उसी पे गाया है इसे...
है खबर उसको भी मैं ज़िंदा हूँ बस दीदार से...
pahli baar mera pahlaa comment hogaa ye...
तरही मुशायरे में भी अभी तक दाद मिल रही है इस ग़ज़ल पर । यहां पर भी दाद की बाढ़ आनी है । क्योंकि ग़ज़ल है ही उस लायक ।
ReplyDeleteबहुत खूब अर्श. बहुत उम्दा शेर हैं.
ReplyDeleteवो मेरे कहने पे . .....
क्या बात है !!
चीखती हैम अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
ReplyDeleteजनपदों मे दर्ज शिकवे रहते हैं बेकार से
बहुत खूब संवेदन्शील दिल का आक्रोश और समाज के प्रति भावनाओं को सुन्दर शब्द दिये हैं
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया गालिब के कहने भर इसी मझधार मे
अरे बेटा कब तक डरते रहोगे कोई उस पार से आवाज़ दे रहा है और तुम अभी किनारे पर खडे डरे जा रहे हो अब छोडो अपनी ये गम्भीरता और शर्माना
तुम्हारे गुरू जी जिस तरह से तुम्हें तराश रहे हैं उससे लगता है कि गज़ल के कोहेनूर बन के चमकोगे सारी गज़ल ही लाजवाब है मगर तुम्हरे व्यक्तित्व को देख कर मुझे इस अश आर पर हैरानि और खुशी हो रही है
रतजगों सुरख आँखों का सबब बतलायें क्या
र्रात को आवाज़ देता है कोई उस पार से
लाजवाब इसी पर बहुत बहुत आशीर्वाद और शुभकामनायें और तुम्हारे गुरूजी का धन्यवाद उन का आशीर्वाद तुम पर बना रहे
अर्श जी ,कल रात गौतम जी के ब्लॉग पर आपकी बंदिश ' संवरिया.................ने तो मन मोह लिया ! बहुत मीठा स्वर है आपका ,लगता है बंदिश कलेजे से उठ रही है ,बहुत खूब !
ReplyDeleteप्रस्तुत ग़ज़ल अच्छी बन पड़ी है !
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
ReplyDeleteरात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
वाह वाह बहुत खूब ..बहुत सुन्दर गजल लगी आपकी ...आपके लिखे के साथ आपकी आवाज़ भी बहुत पसंद आई है ..शुक्रिया
लाजवाब, इससे जुदा भी हर्फ़ है क्या?
ReplyDelete---------
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
भाई वाह .ये शेर तो कई महफिलों में सुनाने जैसा है किबला....जेहन की डायरी में लिख लिया गया है .....
ReplyDeleteइश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
दर गया गालिब के कहने भर इसी मझधार में.......
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
ReplyDeleteरात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
bahut achcha lajawab
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालाबी
ReplyDeleteअब तलक भी दूर है बस एक निगाहे यार से
अर्श जी............. इतनी खूबसूरत ग़ज़ल चाहे जितनी बार पढो मज़ा आता है..........गुरु देव ने ठीक कहा है........... टिप्पणियों की बहार अ रही है इस ग़ज़ल पर.......... दिल से वाह वाह निकलने वाला शेर हैं .... अपने तो जान ले ली इस ग़ज़ल में...........
बेहतरीन रचना.. आभार
ReplyDeleteगज़ल वाकई में बहुत अच्छी है।
ReplyDeleteआभार!
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है तरही के बहाने. दूर तक और देर तक मनोमस्तिष्क को झंकृत करेगी.
ReplyDeleteवो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
ReplyDeleteऔर हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
- सुन्दर.
Wah Arsh! Sabne itna kuch bola hain.... hum to samajh hi nahi paa rahe ki kya bole.....Shaandaar composition hai
ReplyDelete'वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
ReplyDeleteऔर हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥'
--
'इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥'
वाह!बहुत ही उम्दा शेर हैं...
--'बेहद उम्दा ग़ज़ल है.हर शेर तारीफ़ के काबिल है.
बहुत ही खूबसूरत ख्याल...समय मिले तो अपनी आवाज़ में भी इसे ब्लॉग पर रखें.
आप को गौतम जी की पोस्ट में सुना था.
और हाँ,अच्छा किया जो अपने ब्लॉग पर भी ग़ज़ल लगाई है.
३ हफ्तों से आप के ब्लॉग पर कोई पोस्ट भी नहीं दिखी थी.
--और भी अच्छी- अच्छी गज़लें लिखीये..शुभकामनायें हैं.
अर्श,
ReplyDeleteदिल से बधाई एक नायाब ग़ज़ल पर।
दिल से...बहुत सुंदर शेर निकाले हैं और खास कर ग़ालिब वाला मुझे अपने टाइप का लगा...
"दीदार से" को पढ़ कर लग रहा है कि कोई आ चुकी हैं{????}
और हम जल्द मिलने वाले हैं? इसे गा कर सुनाना।
ज़िंदगी भर पाला पोसा जिसको इतने प्यार से
ReplyDeleteकर दिया बूढा बता के बेदखल घर बार से ॥
har ghar ki nahi to kam se kam har doosre ghar ki yahi kahani hai..., lekin itihaas khud ko doharta hai....
रतजगों का सुर्ख आंखों का सबब बतलायें क्या
रात भर आवाज देता है कोई उस पार से ॥
prachi ke paar.... maybe :)
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
डर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥
galib ke ke ashar ke saath mujhe bhi prayog karna accha lagta hai...
aur kiya bhi hai (mail to mili hi hogi...)
par hat's of to you aap chacha jaan ka sher nibha gaye....
मेरी धड़कन, मेरी साँसे, मेरी ये तश्नालाबी
अब तलक भी दूर है बस एक निगाहे यार से ॥
....is sher ke awaiz main lily tumahri... (obviously with her consent)
ab koi doori nahi !!
वो मेरे कहने पे देखो आगया था बाम पर
है ख़बर उसको भी मैं जिन्दा हूँ दीदार से ॥
(yaad aa gaya 'naya daur' ka wo dogaana....)
वो जवानी भूल बैठा चौकसी सीमा पे कर
और हम सोते रहे निर्भय किसी भी वार से ॥
(no comments, infact yes i have to comment if i have to choose b'wwn god and nation i will choose the later one. and whosoever respect and make it save place is also respecteble in my eyes)
चीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
जनपदों में दर्ज शिकवे रहते है बेकार से ॥
(
In the High Courts, a little over 37 lakh cases are pending.
As against the sanctioned strength of 877 judges, only 593 posts have been filled. Considering the backlog of cases, there is a move to increase the strength of judges in various High Courts also. Though formal approval has been accorded, the government is yet to issue the notification.)
अर्श कातिल कर रहा है मुन्सफी ख़ुद कत्ल का
फैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अखबार से ॥
Behteerin nazm....
hamesha ki tarah....., kam bolte hai , kam likhte hain par jab bhi likhte hain....
...........taaref ke liye shabd kam pad jaate hai.
tom ek baar fir aapne kamal kar diya !!
गिरह वाला शेर और मक्ता अलग से तारीफ़ माँग रहा था तो उनके लिये ये अतिरिक्त टिप्पणी....
ReplyDeleteचीखती है अस्मतें और चुप है सारी गोलियां
ReplyDeleteजनपदों में दर्ज शिकवे रहते है बेकार से ॥
.....Bahut sundar jajbat!!
Me.Addy.Sharma.
ReplyDeleteto me
show details 8:33 PM (43 minutes ago)
Reply
Follow up message
aapke blog main us shandaar ghazal par tippani karna chah rahii thee ,,,par ho nahi paa raha ....strange ??
aap bahut sundar to likhteyn hee hain Arsh ji ,,aapki aawaaz main bhee utna hee madhurya hai ...Gautam ji kee blog main suni thee ..
Stay blessed !!
M A sharma 'Sehar '
जो मै कहना चाहता था लगभग बहुत कुछ वीनस केसरी जी ने कह दिया,इस रचना को आदरणीय सुबीर जी के संवाद में भी पढ़ चूका हूँ.कितनी मौजूदा समस्याओं का चित्रण कर दिया है इस ग़ज़ल में आप ने,बुजुर्गों की उपेक्षा,देश की कानून व्यवस्था,और ग़ालिब को जो जगह दी वह बहुत आपकी पैनी दृष्टि और प्रखर सोच का परिणाम है .
ReplyDeleteसभी शेर कबीले तारीफ है .
लेकिन "चीखती है अस्मते और चुप है सारी गोलियाँ " क्या खूब लिखा गया है .......
अब भाई उस पार जाओ और उस आवाज़ को गाजे बाजे के साथ ले आओ, बारातियों की लिस्ट में हमारा नाम भूल न जाना
बूढा बता कर क्या भैया - कर दिया ,बूढा हुआ तो , बेदखल घरबार से |रात भर आवाज़ देता है पर से आपने एक पुरानी गजल (राग भैरवी में गई हुई ) आपकी याद आती रही रात भर ,कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा एक आवाज़ आती रही रात भर
ReplyDeleteवाह अर्श जी,
ReplyDeleteबहुत खूब !!!
आपका पहला शेर तो लाजवाब था
वाकई !!
Wishing "Happy Icecream Day"...aj dher sari icecream khayi ki nahin.
ReplyDeleteSee my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"
kishore choudhary
ReplyDeleteto me
show details 9:39 PM (11 hours ago)
Reply
Follow up message
अर्श, ग़ज़ल से मेरा वास्ता आकाशवाणी में आने से कोई दो तीन पहले शुरू होता है इसे कोई बीस साल पुराना कह सकते हैं ये मैं शायर बदनाम या फिर शायरी आ गयी जैसा ना हो कर एक श्रोता भर का है जो ग़ज़ल को हज़ार बार सुन सकता है फिर इधर रेडियो में सोलह सालों से सुगम संगीत में गज़लें ही बजाता रहा हूँ, पिछले तीन साल "शाहिद मीर" साहब को उनके सम्मुख बैठ कर सुनता रहा हूँ आपको शाहिद जी याद आये ? जगजीत साहब की आवाज़ में एक ग़ज़ल भी है "ऐ खुदा इस रेत के सहारा को समंदर कर दे ..." वैसे उनकी पहचान मात्र ये नहीं हैं. मीर साहब ने गला भी बड़ा सुरीला पाया है तो आप में मुझे कुछ ऐसा दीखता है जो जाना पहचाना है. ग़ज़ल का फ़न और तालीम दोनों मिल कर ही वो जादू जगा सकते हैं जो आपके कुछ एक शेर से फूटता है.
ब्लॉग पर कौन किसकी ऐसी तैसी कर रहा है पता नहीं चलता कुछ शेर धोखा सा पैदा करते हैं फिर किस से कहिये और क्यों कहिये ? गौतम जी की पोस्ट से पहले भी मैं मुफलिस जी को पढ़ता रहा हूँ गौतम जी का फीलिंग्स लेवल बहुत गहरा है और भी कुछ शायर हैं, फिर भी मेरा ग़ज़ल का व्याकरण सम्बन्धी ज्ञान शून्य के बराबर ही है तो क्या कमेन्ट करता उनको ? आपसे हाल ही मैं परिचय हुआ तो मैंने पिछली बार लिखा था कि आपका काम ओरिजनल लगता है जब तक ऐसा रहेगा आपके चाहने वाले बढ़ते जायेंगे. सोचता हूँ किसी दिन सुगम संगीत के कार्यक्रम में बोलना पड़े ... लीजिये सुनिए प्रकाश अर्श का कलाम... वैसे अभी रेडियो वाले मुझे बीस पच्चीस साल नौकरी से नहीं निकालेंगे तो ये उदघोषणा करने का अवसर मिल ही जायेगा आमीन
बहुत ख़ूब! मतला बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteजिंदगी भर पाला पोसा जिसको इतने प्यार से
कर दिया बूढा बता के बेदखल घर बार से.
सारी ही ग़ज़ल अच्छी लगी, मक़ता तो जैसे बोल रहा है.
'अर्श' क़ातिल कर रहा है मुन्सफ़ी ख़ुद क़त्ल का
फ़ैसला पढ़ लेना ये तुम भी किसी अख़बार से.
बधाई.
भई, टंकण में शायद तश्नालबी की जगह तश्नालाबी छ्प गया है.
महावीर
कभी तो ऐसा हो ,की , पहले 10 मे न सही 20 मे मेरा क्रमांक हो ...! इतने दिग्गजों के आगे मै कहूँ भी तो क्या ?
ReplyDeleteअर्श ,क्या ,' बुलबुल का घोंसला 'ये पोस्ट पढी ?
http://shamasansmaran.blogspot.com
उसे मन किया थाकि ,यही नाम दूँ ..मेरे घर आना ज़िंदगी .. बार बार आना ज़िंदगी ..
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
अर्श साहब,
ReplyDeleteइतने लोगों ने इतनी सारी सच्चाई बयाँ कर दी आपकी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए..
मैं तो इस काबिल हूँ भी नहीं की आपकी तारीफ में कुछ कहूँ..
बस दुआ देती हूँ आपकी कलम ऐसी ही चलती रहे और सब की दुआएं आपको मिलती रहे...
इश्क के दरिया को सोचा पार कर लूँ डूब के
ReplyDeleteडर गया ग़ालिब के कहने भर इसी मझधार से ॥
मुझे बेहद भाया
किन्तु किस बेक ग्राउंड पर किस रंग के फॉण्ट यूज़ करना है
भाई साहब थोडा पुनर्विचार कीजिए
जैसे ये
"तरही चल रही है गूरू देव के आश्रम में ,........... गूरू देव से क्षमाप्रार्थी हूँ बहोत जगह पे ..."
क्या ही ख़ूब कह गए अर्श, ज़िन्दाबाद। एक लगाव सा पैदा कर रहे हो आप ग़ज़लों में । क्या कहना!
ReplyDelete