इस महीने इतने हादसे हुए कवि जगत पे जिससे मन आहत है मेरे और मेरे परम आदरणीय गूरू जी के तरफ़ से इस अपुरनिया क्षति को तथा उन सभी वरिष्ठ और सम्मानीय दिवंगत कविओं को नम आंखों से श्रधांजलि ॥ आज मेरे इस ब्लॉग का भी एक वर्ष पूरा हो गया है ये मुमकिन सिर्फ़ आप सज्जनों के प्यार, स्नेह और आर्शीवाद से हुआ है , वरना मैं अदना ये सफर कैसे तय कर सकता था, जिसमे मेरे गूरू जी ने मुझे उंगली पकड़ कर चलना सिखाया ॥ ये गूरू शिष्य परम्परा ता-उम्र यूँ ही चलती रहेगी सीखने सिखाने की यही ऊपर वाले से दुआ करूँगा के गूरू जी का आर्शीवाद और आप सभी का प्यार बना रहे ... एक छोटी बह'र की बे-रदीफ़ ग़ज़ल आप सभी के सामने है ,प्यारऔर आर्शीवाद के इंतज़ार में .... आप सभी का "अर्श"
इश्क मोहब्बत आवारापन।
संग हुए जब छूटा बचपन ॥
मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन ॥
शीशे के किरचे बिखरे हैं ,
उसने देखा होगा दर्पण ॥
परदे के पीछे बज-बज कर ,
आमंत्रित करते हैं कंगन ॥
चन्दा ,सूरज ,पर्वत, झरना ,
पावन पावन पावन पावन ॥
बिकता हुस्न है बाज़ारों में ,
प्यार मिले है दामन दामन ॥
कौन कहे बिगडे संगत से ,
देता सर्प को खुश्बू चंदन ॥
दुनिया उसको रब कहती है ,
मैं कहता हूँ उसको साजन॥
प्रकाश "अर्श"
१८/०६/२००९
बहोत खूब ।
ReplyDeleteabhi to itna hi kahunga kyonki ..tour ki taiyaari kar raha hon.....
ReplyDeletebadhai ho badhai ..
ek baras poora ho gaya
aapko karte hue blogging
wah ji wah
dil ko jeet liye hai aapne
mera bhi aur dusaro ka bhi
likhkar gazale aur kavita
mera naman hai bhai mere bhai
badhai ho badhai
अर्श भाई, मन तो सचमुच बहुत आहत है एक साथ इतने विभूतियों के जाने से। पर लाचार मनुष्य करे तो क्या करे, दुआओं के सिवाय। मेरा मानना है कि इनके लिये सच्ची श्रधांजलि यही होगी कि काव्य की जो अलख इन्होने जगाई है उसे अपने-अपने तरीके आगे बढ़ाया जाये। और बहुत खूब गज़ल कही आपने। कुछ शेर बहुत ही मासूम हैं और सीधे दिल में उतर जाते हैं-
ReplyDeleteमैं मां से जब दूर हुआ तो,
रोया, घर, आंचल और आंगन
*****
दुनिया उसको रब कहती है
मैं कहता हूं उसको साजन
काफी दिनों बाद आप की नयी पोस्ट आई है.
ReplyDeleteछोटे बहर की ग़ज़लों में आप को महारत हासिल हो रही है..यह आप की शायद तीसरी ऐसी ग़ज़ल है..
-इस ग़ज़ल का हर शेर लाजवाब है--ख़ास कर 'माँ से जब दूर हुआ'...और 'शीशे के टुकड़े.'..वाले बहुत अच्छे लगे...
'सूरज'...'पावन पावन' वाला शेर तो एक दम अनूठा है..
बधाई .
साल पुरे होने की बधाई स्वीकारें| वैसे तो पूरी ग़ज़ल लाजवाब है खासकर "बिकता हुस्न" दिल को छु गयी|
ReplyDeleteहाँजी बेटा अब बताओ मेरे ब्लोग पर तो बहुत शर्मा रहे थे अब पकड लिया ना
ReplyDeleteपरदे के पीछे बज-बज कर ,
आमंत्रित करते हैं कंगन ॥
सब सही कह रहे थे कि बेटा अब बडा हो गया है कर दो शादी
मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन ॥
इस को पढ कर तो आंम्ख भर आयी कितनी सही बात कही
इश्क मोहब्बत आवारापन।
संग हुए जब छूटा बचपन ॥
अब इसका इलाज करना पडेगा और तुम्हरे ब्लोग की वर्षगाँठ पर बहुत बहुत मुबारक
दिवंगत महान वि्भूतिओं को विनम्र श्रधाँजली
अगली पोस्ट जल्दी लिखना आशीर्वाद्
वाह अर्श भाई कमाल कर दिया
ReplyDeletearsh, blog par ek saal poora hone ki badhai, aur agle varshon ke liye shubhkaamnayen.
ReplyDeletegazal bahut hi achchi lagi, har sher lajawaab hai.
आपके ब्लॉग की प्रथम वर्षगाठ पर हार्दिक शुभकामनाएं. ग़ज़ल तो सुन्दर ही थी.माताजी की भी सुन लो.
ReplyDeleteदुनिया उसको रब कहती है ,
ReplyDeleteमैं कहता हूँ उसको साजन॥
वाह भाई जबाब नही , बहुत गहरी बात लिख दी आप ने इन पक्तियो मे, आप की सारी ही गजल बहुत अच्छी लगी.
ब्लांग के साल गिरह की बहुत बहुत बधाई.
दिवंगत महान वि्भूतिओं को श्रधाँजली
दुनिया उसको रब कहती है ,
ReplyDeleteमैं कहता हूँ उसको साजन॥ultimate....
First of all... Congratulation! for you blog Anniversary......I think it's time to celebration.
ReplyDeleteIInd. Han ham sab aahat hue asamay bharteey sahitya se sitaron ko kho kar......lekin unki rachnao ke roop mein wo sada hi hamare saath rahegay.
IIIrd. aap to khud jantey han ki aap gazal mein perfect hain to kya bol sakte hain sivay iske ki bahut achchi hain.
सुंदर नहीं बहुत सुंदर अर्श जी....
ReplyDeletebahut hi khoob bhaiya...
ReplyDelete"बिकता हुस्न है बाज़ारों में ,
प्यार मिले है दामन दामन ॥
कौन कहे बिगडे संगत से ,
देता सर्प को खुश्बू चंदन ॥"
अच्छी रचना . भाई अर्श जी ब्लागजगत में एक वर्ष सफलतापूर्वक पूरे होने पर बधाई और ढेरो शुभकामना .
ReplyDeleteचन्दा ,सूरज ,पर्वत, झरना ,
ReplyDeleteपावन पावन पावन पावन ॥
...बहुत सुन्दर, बेहद गंभीर शेर, इस शेर की जितनी भी तारीफ की जाए कम है, .... बहुत खूब !!!!!!
bahut sundar rachanaa hai
ReplyDeleteअर्श,
ReplyDeleteसफ़र के अपनों का साथ हो तो पता ही नहीं चलता की कितना वक़्त बीत गया
हार्दिक बधाई आपको
आज तो कमाल ही हो रहा है अभी अभी रवि भाई के ब्लॉग से आ रहा हूँ और फिर आपके ब्लॉग पर भी एक खूबसूरत गजल पढने को मिली गुरु जी का स्नेह आपको साछात मिला ये आपके सौभाग्य की बात है देखिये हमारे भाग्य कब खुलते हैं ....
वीनस केसरी
PROSINGH . BLOGSPOT . COM EK VARSH POORE
ReplyDeleteHONE PAR AAPKO HAARDIK BADHAAEE. AAPKEE
GAZAL ACHCHHEE LAGEE HAI.
प्रिय अर्श इन दिनों मैं काफी व्यस्तता से गुजर रहा हूं । कुछ परेशानियों से उलझा हूं और कुछ व्यवयास की व्यस्तताएं हैं । आज दो या तीन दिन बाद यहां आया तो तुम्हारी ये सुंदर ग़ज़ल पढ़ी । सबसे पहले तो एक वर्ष पूरा होने की शुभकामनाएं । किन्तु ये एक वर्ष पूरा होने का अर्थ होता है कि अब चिंतन किया जाये कि हम आगे की ओर कितना बढ़ पाये । साहित्य तो अवधूत की साधना होती है । साहित्य में भी औघड़ की तरह श्मशान साधना करनी होती है । शून्य में बैठकर विचारों की साधना । केवल लिखने के लिये नहीं लिखा जाता बल्कि लिखा तब जाता है जब विचार कलम नोक से फूट पड़ने को आतुर हो रहे हों । विचारों का कच्चापन साहित्य को कमजोर करता है । इसलिये पहले विचारों में पक्कापन लाओ । खूब पढ़ो । एक साल में तुमने काफी प्रगति की है किन्तु अभी मंजिल काफी दूर है । केवल ये सोच लेने से कि अब तो लोग हमारा लेखन पसंद कर रहे हैं अब हम तो महान हो गये, कुछ नहीं होने वाला है । हर एक ग़ज़ल एक ज्वालामुखी होती है । जब दिमाग में विचारों का लावा उलबता है तो अंतत: कविता या ग़ज़ल फूट पड़ती है । अपने विचारों को आग दो, गरमी दो ताकि ये लावा दिमाग से फूट पड़े ।
ReplyDeleteमेरी शुभकामनाएं ।
शीशे के किरचे बिखरे हैं ,
ReplyDeleteउसने देखा होगा दर्पण ॥
बहुत खूबसूरत शेर कहा है अर्श जी...वाह. ब्लॉग की वर्ष गांठ की बहुत बहुत बधाई...गुरुदेव ने जो बात कही है वो हमसब को गाँठ बाँध लेनी चाहिए...हमारा प्रतिद्वंदी और कोई नहीं हम खुद ही हैं...हमारी स्पर्धा खुद से ही है...हमें अपने कल से आने वाला कल बेहतर करना है...ऐसा करना आसान काम नहीं...पाठकों द्वारा की गयी प्रशंशा,जो वास्तव में औपचारिकता से अधिक नहीं होती, हमारी रचनाओं की श्रेष्ठता का माप दंड नहीं होनी चाहिए...आप लिखें और खूब आगे बढ़ें ये ही कामना है.
नीरज
bahut khoob
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ReplyDeleteनमस्कार अर्श जी,
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल, वाह-वाह-वाह-वाह
आजकल आपने छोटे बहर से कहर ढहा रखा है.
मिसरा बहुत खूबसूरत है........
ब्लॉग की वर्ष गांठ की बधाई
परदे के पीछे बज-बज कर ,
ReplyDeleteआमंत्रित करते हैं कंगन ॥
दुनिया उसको रब कहती है ,
मैं कहता हूँ उसको साजन॥
अर्श जी...........
सबसे पहले तो एक वर्ष पूरा होने पद बधाई.............
गुरु जी की बात आपने पढ़ ली होगी उसकू गाँठ बाँध लें और सागर में छलांग लगा लें ........
अब आपकी ग़ज़ल...........तो जनाब इतने अच्छे शेर लिखे हैं आपने की मन से वाह वाह निकलती है........ कोमल कवी मन साफ़ नज़र आता है इन शेरों में.......... lajawaab और badhaai
Harek pankti daad maangtee hai! Jab itne sabhee ne mere pehle keh diya..mai naye alfaaz kahanse le aaoon?
ReplyDeletehttp://kavitasbyshama.blogspot.com
( Waise aapko mere is blog kaa URL dete hue sankoch mehsoos hota hai...)
http://lalitlekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
Any blogs kee URL in blogs pe milhee jayegee..."The light by..." pe ab alagse nahee likhtee...
sneh sahit
shama
सर्प ओर चन्दन वाला शेर अच्छा लगा..आपकी डायरी के पन्ने किसी दुसरे ब्लॉग पे पढ़े थे .लगता है हमारी सलाह मानी नहीं गयी...
ReplyDeleteअर्श जी, ब्लॉग के एक वर्ष होने पर आपको हार्दिक बधाई. ग़ज़ल बहुत पसंद आई है. बधाई.
ReplyDeleteअर्श भाई, ब्लाग की वर्षगांठ मुबारक हो. आदरणीय सुबीर जी ने वर्षगांठ पर विचारों का बहुत मूल्यवान उपहार दिया है. अगर उस पर सच्चे मन से अमल किया जाय तो जीवन में क्रांति आ जाय. हम साहित्यकार है. बहुत बडी जिम्मेदारी है हमारे कंधों पर इस संक्रमण युग में. कितनी अच्छी बात कही है कि हम सिर्फ़ लिखने के लिये न लिखें. मनोरंजन करना या तमाशा दिखाना हमारा काम नहीं है. मानव जाति की चेतना आज जहां तक पहुंची है हमें वहां से आगे लेकर जाना है. आपके अंदर बहुत संभावनाएं हैं. विश्वास है बहुत आगे जाओगे. बहुत-बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई. बहुत सुन्दर गजल लिखते रहे यूँ ही यही दुआ है
ReplyDeleteachchha laga aapke blog par aakar aur ek pyari rachna padh kar.
ReplyDeletedhanyawad
Navnit Nirav
भाई
ReplyDeleteइतनी असर दार बात
दिल से दुआ मित्र
आनंद आ गया
अरे एक साल पूरा ?
ReplyDeleteपता ही नहीं चलता
समय-पाखी कितना
ज़ल्द उड़ता है,,,,
बधाइयां
bahut khoob arsh jee.
ReplyDeletetujhse milna, tera aana...
ReplyDeletebharamar, koplein, khusboo, madhuban.
khoob jami mile baithe kal jab
muflis,tu,gautam,manu,darshan.
maaf kariyega "aap" behar main nahi tha isliye "tu"... :)
mukul ji ki baat se sehmat hoon (lekin doosre sandarbh main):
samay pakhi kitne zaldi bitata hai...
इतना खूबसूरत कैसे लिख लेते हैं आप...बधाई स्वीकारें
ReplyDeletebahut accha bhai....
ReplyDeleteun sabka aashirwaad aap par hai tabhi aap itna accha likh paate ho aur unka aashirwaad hamesha aap par rahe main yahi kaamna karta huin......
aur un sabhi mahanubhav ko naman karta huin .....
ek baar fir sew aapne man ki gehraaiyon ko chu liya apni is rachna se..
दिवंगत कवियों को नमन,,,
ReplyDeleteऔर आपके ब्लॉग की पहली सालगिरह मुबारक हो अर्श भाई,,,
निर्मला जी कुछ विशेष बात की तरफ इशारा दे रही हैं,,(प्रो सिंह जी,,,,)
हमें भी कुछ कुछ शक हो रहा है,,इन के कमेन्ट से पहले भी था,,,,पर अब आप इस शक के दायरे में और भी आ चुके हैं,,,,
और क्या लिखा है दर्पण ने,,,मजा आ गया,,, और वो सुहानी शाम भी आखों में नाच गयी,,,
खूब जमी मिल बैठे कल जब
मुफलिस,तू,गौतम,मनु,दर्शन,,,
क्या बात है ,,,ये कमेन्ट पढ़कर तो मजा ही आ गया,,,,
शीशे के किरचे बिखरे हैं
ReplyDeleteउसने देखा होगा ''दर्पण''
नहीं जी,,,
अपना दर्पण कोई इतना खतरनाक तो नहीं दिखता के शीशा ही टूट जाए,,,
वो तो काफी क्यूट है ,,,
वाकई,,,
क्या तुम्हीं नहीं लगता डेविड,,,,??
arsh ji ,aapki gazlo ka main hamesha hi deewana raha hoon .. aur bhavishya me aur behtar gazlo ka intjaar rahenga ..
ReplyDeleteek saal ke poore hone ki paarty chahiye..
अहा...इस ग़ज़ल की तारीफ़ तो यही है प्रकाश कि विगत दो दिनों से इसे ही गुनगुना रहा हूँ।
ReplyDeleteऔर जान तुम शरारतों से बाज आओ अब
अर्श जी,
ReplyDeleteये डेविड कौन है भई ....? और आप तो क्या गजब का गाते हैं ....????? हमारे ब्लॉग जगत में कितनी महान हस्तियाँ हैं ....वाह.... नमन है आपको ....!!
"इश्क मोहब्बत आवारापन।
ReplyDeleteसंग हुए जब छूटा बचपन ॥
मैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
रोया घर, आँचल और आँगन ॥"
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
Mai maa se jab door huaa to, roya ghar, aanchal, aur agna...BAhur sundar kaita...
ReplyDeleteRegards.
दुनिया उसको रब कहती है
ReplyDeleteमै कहता हूँ उसको साजन
आपके
ब्लोग्की वर्षगाँठ पर आपको दिल से मुबारिकबाद
....साथ ही साथ आप के commentbox में आदरणीय सुबीर जी का मशवरा तो सभिलिखने वालों के लिए ब्बहुत ही कारगर साबित होगा .
साजन को समर्पित
ReplyDeleteसाल पूर होने के लिये बधाई!!
ReplyDeleteमैं माँ से जब दूर हुआ तो ,
ReplyDeleteरोया घर, आँचल और आँगन ॥"
शीशे के किरचे बिखरे हैं
उसने देखा होगा ''दर्पण''
bahut achcha qabil-e-tareef
Arsh ji
ReplyDeletechhoti bahar mein itni kamaal ki gazal hai kis sher ko kam kahun samjh nahi aa raha
Main maan se door hua .......... kya baat kahi hai
bikta husn hai bazaron mein........ aaj ke zamane ko likh diya
parde ke peeche baj baj kar .......... kitna bhola meetha gudgudta hua sher hai
likhte rahe
1 varsh pure hone par meri taraf se bhi hardik badhayi sweekaren
हाँ हाँ जी यही है यही है वह अर्श ! आपने ठीक पहचाना जी। यही है जो हर मर्तबा हमारा दिल लूट कर ले जाया करता है। पकड़िए पकड़िए भागा जाता है देखिए। हा हा।
ReplyDeleteक्या बात है भाई बहुत ख़ूब कहा आपने अपने ब्लाग की पहली सालगिरह पर। हमारी ढेरों बधाइयाँ स्वीकार करें।
'दुनिया उसको रब कहती है ,
ReplyDeleteमैं कहता हूँ उसको साजन॥'
- यहाँ परमात्मा और आत्मा एक हो गए हैं.
दुनिया उसको रब कहती है ,
ReplyDeleteमैं कहता हूँ उसको साजन॥
अर्श जी वाह....अगर हर कोई साजन में रब ढूँढने लग जाये तो दुनिया कितनी सुहानी हो जाये ....!!
muflis dk
ReplyDeleteto me
show details 9:23 PM (12 hours ago)
Reply
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प्रकाश सिंह "अर्श" साहब
नमस्कार !
ब्लॉग पे गया था . हर बार " " आ जाता है ...मालूम नहीं क्यूं ??
ग़ज़ल पढ़ कर बहुत ही ज़्यादा आनंद आया
इस फन में आपको ख़ास महारत हासिल है .
आपका कहन , लहजा , तर्ज़े-अदा हमेशा हमेशा दिलचस्प और
मज़ेदार होता है .......
ये ग़ज़ल भी ..."इश्क़ मुहोब्बत आवारापन ..." लाजवाब है .
मुबारकबाद
"इतने प्यारे शेर पढ़े जब ,
खुश हो-हो कर मस्त हुआ मन ."
"रूप भला , अंदाज़ सुहाना ,
'अर्श' ! ग़ज़ल में इतनी बनठन"
दुआओं के साथ .....
---मुफलिस---
तलाश है,,,
ReplyDeleteएक मेजर की,,,
जो दिल्ली आया ... मुशायरे में हमें पकाया....
सुबह राजा नल की तरह हम दमयंतियों को सोते छोड़ कर निकल लिया...
सुंदर चेहरा ,आकर्षक व्यक्तित्वा,,, भोली मुस्कान ,,, मासूमियत से निहारती आँखें,,,,
(ओल्ड-मोंक का विशेष शौकीन....)
जहां भी किसी को मिले ...सूचित करे..
काफी लोगों का चैन लूट कर फरार है...
सूचित करने वाले को
उचित
धन्यवाद दिया जाएगा...
आमंत्रित करते हैं कंगन...
ReplyDeleteतुम्हारे जैसा गाने की कोशिश करता हूँ और फिर छोड़ देता हूँ।
वो दिलकश आवाज तो बस- पावन, पावन, पावन, पावन ~~
bahut khoob
ReplyDeleteumda ghazal
padhkar dil ko achha laga
hardik shubh kamnayen
प्यारे अर्श भाई,
ReplyDeleteआपकी अगली ग़ज़ल का इंतज़ार है जल्द आइएगा लेकर।
प्रकाश "अर्श" जी,
ReplyDeleteब्लॉग जगत में पहली वर्षगांठ मुबारक हो।
गुरू जी की सीख और सबक से भरा हुआ पत्र मिलना ही बड़ी बात है। निर्मला जी ने कुछ बताया है आपके बारे में, मैंने भी पढा था।
इस बार तो नही मिल पाया आगे जब भी दिल्ली आ रहा हूँ तो कुछ गज़लें सुने बिना नही जाऊँगा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
एक महिना होने को आया आप के ब्लॉग का भी नवीकरण नहीं हुआ ..भाई जान आप कहाँ रहे कुछ हक दो तो पूछें,
ReplyDeleteकहीं किसी कंगनों का आमंत्रण तो स्वीकार ......
या फिर दुनिया के रब ( आपके साजन )को तो नहीं खोजने निकल पड़े थे
........... मानसून भरे सप्ताहांत में मूड थोडा सहज है इस लिए सोचा भाई जान का मन टटोल लिया जाये....
कभी जीवनदायी जल को तरसे
या फिर आपकी गजल को तरसे
आ भी जाओ ब्लॉग पर भैया
अब जब बादल भी जम बरसे
अर्श बरस जाये तो सावन शुरू हो
कहते है कंगन निकलो घर से .............
हमने तो तुकबंदी कर दी अब अच्छी सी गजल तो आप ही बना सकते है.........
अर्श भाई
ReplyDeleteएक साल साहित्य प्रेम सृजन मेँ बीता आगे के प्रयासौर यात्रा के लिये बहुत शुभकामना व सस्नेहाशिष
आपके सभी शेर पसँद आये ..
'साजन ' की किरपा बनी रहे जी
स्नेह,
- लावण्या
बचपन से ले चलकर कहाँ पहुंचा दिए.............
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर.........
वाह पूरी रचना ही लाजवाब है. शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
साहित्यजगत के लिए अपूरणीय क्षति है सभी को मेरी और से श्रद्धांजलि.
ReplyDelete