लंबे समय के बाद एक छोटी बह'र की ग़ज़ल कहने की कोशिश की है जिसे आर्शीवाद परम आदरणीय गूरू देव ने दिया है ... आप सभी के सामने इसे रख रहा हूँ प्यार और आर्शीवाद के लिए...
बह'र .... २१२२ १२१२ ११२
मुस्कुराकर वो जब बुलाए मुझे ,
हादसे पास नज़र आए मुझे ॥
मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
कोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
लोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
उम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे ॥
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
प्रकाश"अर्श"
१३/०८/२००९
आईला......
ReplyDeleteपहला कमेन्ट..मेरा...
मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
ReplyDeleteकोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
wah sone ki mala men do heere zyada pasand aye,
tumhari aunty ko bhi sunai, wo senty ho gain, bhai unka beta bhi to bahar hai na.
शुक्र है...पहला मेरा ही निकला...
ReplyDeleteअर्श भाई...
मतला बड़ा खतरनाक....
वेरी डेंजरस
इसके बाद डगमगाते ईमान को बचाते हुए..
पत्थर के करीब से दिल लगाकर गुजरते हुए..
मान के हाथ से बनी रोटी की खुशबू को सांस भर के महसूस करते हुए..
गले लग के थकान मिटाने के बाद...
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
इस शे'र पे आके ठोकर सी लगती है...और
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
ये आखिरी शे'र समझिये के ठिठक कर खडा रह जाने को मजबूर करता है..
अगर ये सबसे पहले होता तो ये गजल किश्तों में पढ़ी जाती हमसे ..
लाजवाब है
बहुत लाजवाब पेशकश!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया है अर्श.
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई .
ReplyDeleteलाजवाब रचना।
ेअब मैं सोच रही हूँ कि क्या कहूँ अब तो तुम मेरे उस्ताद भी हो और ये भी सोच रही हूँ कि किस किस शेर की बात करूँमां के हाथों ॥
ReplyDeleteमां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
उम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे ॥
माँ को कभी नहीं भूलते इसी लिये तो बेटा बनाया है लाजवाब शे र
मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
कोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
पूरी राजपूती शान दिख रही है बहुत बडिया क्या कहने
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
अब इस पर मनु जी ने कह दिया है तुम्हारे इश्क पर कुछ नहीं कहूँगी मगर इस शे र पर दाद दिये बिना रहा भी नहीं जाता लाजवाब अद्भुत सुन्दर बडिया । बहुत सुन्दर गज़ल है बधाऔर आशीर्वाद
मुस्कराकर +हादसे |ईमान +_झुकना |पत्थर नहीं मैं मॉम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा |माँ के हाथ की रोटियों की तो बात ही अलग है |हंस कर जब वो गले लगाये सारी थहन मिटे और गले लगा कर एक दो घंटे छोडे ही नहीं तो भी थकन होने लगती है |तेज़ रफ्तार में चलने पर ठोकर लगती ही है |सरे शेर ला जवाब
ReplyDeleteमाँ के हाथों में जादू जो होता है...सच है,
ReplyDeleteउम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
ReplyDeleteशहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
har sher lajawab,sunder gazal.
ख़ुश नसीब है वो माँ ,जिसे उसकी औलाद इस तरह याद करे ! बधाई हो उन्हें ...साथ आपके ..!
ReplyDelete'मां के हाथों की…'
ReplyDelete'तेज़ रफ़्तार थी…'
बहुत ख़ूब!
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
ReplyDeleteदर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥ bahut acchey
अर्श भाई, क्या कमाल लिखते हो आप, जैसे जैसे आपको पढता जाता हूँ दीवानगी बढ़ती जाती है
ReplyDeleteलोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे ॥
मतला और दूसरा शेर तो मुझे औसत लगा मगर तीसरा शेर पढ़ा तो बहुत जोर का झटका सा लगा और उठ कर बैठ गया और इस शेर को ३ बार पढ़ा वाह क्या बात है,....
बाकी ये शेर भी खूब पसंद आये
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
वीनस केसरी
bahut hi khubsurat gazal hai yeh to... JAi Guru dev...!
ReplyDeleteअच्छे शेर निकाले अर्श...१ माँ वाला शेर सबकी तरह मुझे भी अव्वल लगा। तेज़ रफ्तार और लकीर वाला भी उम्दा...! मानव स्वाभाव ही है कि वो निषिद्ध चीजों की तरफ अधिक बढ़ता है। मगर हाँ ऐसा नही लगता तुम्हे कि तुम्हारा पहले और आखिरी शेर एक दूसरे का विरोध कर रहे हैं। हा हा
ReplyDeleteमगर ये तो यूँ ही कह रही हूँ.....! यही तो खूबी होती है शायर की। कि वो जो भी कहे अंदाज़ अलग हो उसका
बढ़िया...!
sahi kaha manu ji....
ReplyDelete...qutil matla hai !!
...der aaiyed durust aaiyed.
मुस्कुराकर वो जब बुलाए मुझे ,
हादसे पास नज़र आए मुझे ॥
abhi to isi pe comment karoonga...
kyunki pata hai ab aapne likh diya to ek mahiney ki chutti...
to baar baar aake padhne ka bahana aur kuch na kuch comment dene ka bahana bana rahe.....
...khuda hafiz bhaizaan.
लोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
ReplyDeleteऔर तुम भी समझ ना पाए मुझे ॥
बहुत खूब ..
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
एक एक शेर खुबसूरत है और बहुत सच्चा है ..बेहतरीन लगी यह गजल आपकी लिखी हुई ..शुक्रिया
ख़ूब कहते हो ग़ज़लें 'अर्श' मियां,
ReplyDeleteक्या कहूं ये समझ न आए मुझे.
behteen
ReplyDeleteज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
ReplyDeleteदर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
bahut khoob kaha aapne arsh !!waah
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
ReplyDelete----
INDIAN DEITIES
लोग पत्थर मुझे समझते हैं
ReplyDeleteऔर तुम भी न समझ पाए मुझे
बहुत सुन्दर....
सच्चाई का सामना कराती ग़ज़ल .....
खूबसूरत !
ReplyDeleteक्या कहने ....
ReplyDeleteभावपूर्ण और सच्चे शेर कहे हैं आपने अर्श भाई
इसी तरह लिखा करें ..
और गाते तो और बढिया लगता --
स स्नेह,
- लावण्या
मनु जी ने मेरे शब्द चुरा लिये...तो मैंने उनकी पूरी की पूरी टिप्पणी:-
ReplyDelete"मतला बड़ा खतरनाक....
वेरी डेंजरस
इसके बाद डगमगाते ईमान को बचाते हुए..
पत्थर के करीब से दिल लगाकर गुजरते हुए..
मान के हाथ से बनी रोटी की खुशबू को सांस भर के महसूस करते हुए..
गले लग के थकान मिटाने के बाद...
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
इस शे'र पे आके ठोकर सी लगती है...और
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
ये आखिरी शे'र समझिये के ठिठक कर खडा रह जाने को मजबूर करता है..
अगर ये सबसे पहले होता तो ये गजल किश्तों में पढ़ी जाती हमसे ..
लाजवाब है"
इन शब्दों को मेरा माना जाये....
एक बेहतरीन ग़ज़ल प्रकाश..."उस्तादों" के "उस्त" तक पहुँचाती हुई तुम्हें, यकीनन!
आखीरी शेर पे मेरा सब लिखा कुर्बान!
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
ReplyDeleteशहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
सोधी खुश्बू माँ के हाथो की रोटियाँ लिये हुए आ गयी यादो मे आपकी पोस्ट पढकर
बहुत सुन्दर
अर्श मियां! क्या शेर निकाला है आपने!! मां वाली सबसे जियादह पसंद आई। बधाई इसलिये भी क्योंकि छोटी बहर में लिखना बहुत मुश्किल होता है।
ReplyDeleteआज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
ReplyDeleteरचना गौड़ ‘भारती’
मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
ReplyDeleteकोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
AB KAREIN DOOSRE SHER KI BAAT...
...YE KEWAL TUMAHARI GHAZAL KA EK SHER NAHI BALKI JITNA TUMEHIN JAANA HAI, TUMAHARE JIVAN KA SAAR BHI HAI...
...BADIYA !!
WAPIS AATA HOON...
ma to ma hoti hai dada
ReplyDeletechahe roti ki mahak
ya dat dapat
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
ReplyDeleteरचना गौड़ ‘भारती’
guru dev के aashirvaad से सजी लाजवाब ग़ज़ल है...........
ReplyDeleteलोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे
aksar ऐसे ही होता है इस दुनिया में............ आज का प्यार ऐसा ही है........
मां के हाथों की रोटियों की महक
शहर से गांव खींच लाए मुझे
इस शेर में दनिया के सब शेर न्योछावर हैं अर्श जी........... कितनी मार्मिक अभिव्यक्ति है........ माँ का प्यार सच मच ऐसा ही होता है
'मां के हाथों की रोटियों की महक ,
ReplyDeleteशहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
उम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे ॥'
- सुन्दर.
मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
ReplyDeleteकोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
kya baat hai
लोग पत्थर मुझे समझते हैं ,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
aha khoobsurat sher
उम्र भर की थकन मिटे पल में ,
हंस के वो जब गले लगाए मुझे ॥
wah ji
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
hmm bahut gahri baat bahut sach
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
bahut hi gahra maqta
Arsh ji ek shaandaar gazal par meri badhayi
अर्श बहुत खूबसूरत लगा रहा पन्ना, कितने सारे बदलाव किये है ? मजा आ गया.
ReplyDeleteग़ज़ल के सब शेर उम्दा हैं, हों भी क्यों ना, चित्र में भी गुरु जी साथ खड़े दीख रहे हैं. मुझे जो शेर पसंद आया वो है
"तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
ReplyDeleteशहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
इस एक शेर ने सब कुछ कह दिया अब मेरे कहने को और बचा भी क्या है...बेहतरीन ग़ज़ल...मेरी बधाई स्वीकार करें...
नीरज
वाह वाह वाह !!!! अर्श जी वाह !!
ReplyDeleteमन में गहरे उतर गयी आपकी यह ग़ज़ल....जैसे भाव वैसी ही रवानगी....लाजवाब लिखी है आपने...
ab itne aalim-faazil log itna kuchh
ReplyDeletekeh chuke haiN,,maiN bhalaa aur kayaa kahooN,,
un sb ki taa`eed kartaa hooN . . .
मेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
कोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
तेज रफ़्तार थी बहुत मेरी ,
दर्द ठोकर का ये बताए मुझे ॥
हुज़ूर....
इतनी प्यारी और उम्दा ग़ज़ल कही है आपने
हर शेर पर मुहं से बे-साख्ता वाह निकलती है
एक अच्छी ग़ज़ल में जितनी मुमकिन खूबियाँ हो
सकती हैं वो तमाम इस ग़ज़ल में मौजूद हैं
संजीदगी का लहजा आपकी मेहनत की तस्दीक करता है ...मुबारकबाद
पुख्तगी की मिसाल क़ाइम है
शेर इक-इक यकीं दिलाए मुझे
है सुकूँ-बख्श बानगी सारी
'अर्श'की ये ग़ज़ल लुभाए मुझे
---मुफलिस---
क्या बात है अर्श साहब.. बहुत खूब ग़ज़ल कही.. :)
ReplyDelete"मेरा ईमान डगमगाता नहीं,
ReplyDeleteकोई कैसे भला झुकाए मुझे|
लोग पत्थर मुझे समझते हैं,
और तुम भी समझ ना पाए मुझे|"
इन पंक्तियों का जवाब नहीं...बहुत उम्दा शेर...
रचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
बेहतरीन ग़ज़ल है.
ReplyDeleteमेरा ईमान डगमगाता नहीं ,
कोई कैसे भला झुकाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
छोटी बहर में लिखना भी एक कला है जो इस ग़ज़ल
में उभर कर आई है.
बधाई.
बहुत ख़ूब अर्श भाई शेर बहुत व्यापकता लिए हुए हैं इस गुलदस्ते में। माँ के लिए कहे गए शेर सचमुच सुन्दर कहे हैं आपने।
ReplyDeleteछोटी बहर में तो आज तक सर्वत जी की गजलें ही पढता रहा ,आज आपकी पढने को मिल गयी ,...पसंद आयी ...बधाई
ReplyDeleteEK ACHCHHEE GAZAL KE LIYE MEREE BADHAAEE AUR
ReplyDeleteSHUBHKAMNA SWEEKAR KIJYE.ISEE TARH GAZAL KAHTE
RAHEN.
kafi dino baad aai aapke blog par..... sabne itna kuch kaha .....ham kuch bole ya khamosh rahe ? khamoshi acchi hoti hai isliye chup.....likhte rahiye :-)
ReplyDeleteमुस्कुराकर वो जब बुलाए मुझे ,
ReplyDeleteहादसे पास नज़र आए मुझे ॥
हादसे....??
सही कहा जी आपने इस मुस्कराहट से कई बड़े बड़े हादसे हो जाते है ....लड़कियां उम्र भर के लिए गले पड़ जातीं हैं .....!
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
चलो जी कामयाब रहे आपका इश्क ...बहुत बढिया .....!!
मैंने कहा अरस जी.....आप इए किया कर रिये हो जी.....अजी अरस जी आपको पढ़कर ऐसा लगता है कि मेरे हरफ तडपाये हैं मुझे.....मेरी ग़ज़ल को बनाने के लिए बुलाए है तुझे......!!
ReplyDeleteमैंने कहा अरस जी.....आप इए किया कर रिये हो जी.....अजी अरस जी आपको पढ़कर ऐसा लगता है कि मेरे हरफ तडपाये हैं मुझे.....मेरी ग़ज़ल को बनाने के लिए बुलाए है तुझे......!!
ReplyDelete..पेशे की कुछ जरूरी ओर कुछ गैर जरूरी मसृफियत में फंसा था .कुछ मूड नहीं हुआ कम्पूटर में झाँकने का ....इसलिए देर लगी आपके दर पे आने में .....पर ये दो शेर खूब है..
ReplyDeleteमां के हाथों की रोटियों की महक ,
शहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
खींच दी है लकीर तुमने जहां ,
इश्क मेरा वहीं बुलाए मुझे ॥
मां के हाथों की रोटियों की महक ,
ReplyDeleteशहर से गांव खींच लाए मुझे ॥
Yun hi likhte rahiye.
नमस्कार अर्श जी,
ReplyDeleteवाह-वाह हर शेर अपनी मौजदगी का एहसास इतनी खूबसूरती से करा रहा है जिसके कुछ कहने नहीं.
कुछ शेर जैसे "मेरा ईमान.........", "माँ के हाथों.........", ...ओफ ओह्ह किस किस शेर के बारे में कहूं कोई कमतर नहीं.
मज़ा आ गया, मेरा दिन कुबूल हो गया.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बेहतरीन रचना .
ReplyDeleteतेरी नज्मों का दीवाना तेरा दर्द बाँट नहीं पाता
ReplyDeleteक्यों तेरी आँखों से गम का साया नहीं जाता
बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने.... अर्श जी, बधाई...
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