Monday, January 4, 2010

आधी जली बीड़ी ...




खुद में
ठिठुरती सर्दी फ़िर से

धमकी है
फेंफडे जैसे जम जाए
साँसे दुबकती नज़र आती हैं
नसों का उबाल सिकुड़ने पर आमादा है
आधी जली बीड़ी
फ़िर सुलगाता है
धुएं कि गर्मी
है
रात
कि तपिश खातिर
दीमक लगी दिवार पर
पीठ टिकाते
दांत कटकटाते
यही
सोंचता है
क्या
आज कि रात
उसे
नींद आजायेगी ?



अर्श

34 comments:

  1. पता नहीं उसे नींद आ पायेगी या नहीं पर इतना तय है कि ये पढ़कर मुझे नींद न आ पायेगी। संवेदना को झकझोर दिया अर्श भाई। वैसे भी पद्माकर के प्रसिद्ध कवित्त में जिनका वर्णन है उन्हे छोड़कर किसे नींद आ सकती है जाड़े में?

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  2. बहुत मजबुरी दिख रही है आप की इस कविता मै, बहुत से भाव लिये है आप की रचना

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  3. अर्श जी,बहुत कुछ कह गई आपकी यह रचना। बहुत भाव पूर्ण रचना है।बधाइ।

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  4. अर्श जी, खूब खाका खींचा है
    बधाई
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  5. दर्द बोला तो सुनाई भी दिया .

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  6. काश!! कुछ पल को ही सही
    मुझे नींद आ पाती...

    झूठ ही सही, मन बहलाने को,
    शायद कुछ ख्वाब दिखाती...


    पलकों में कैद आंसू तो होते साथ,
    मगर एक छोटी सी मुस्कान
    मेरे उन ख्वाबों की
    उधार बन
    इन लबों पर आ जाती.....

    -कर्जदार सारे अहसान फरामोश तो नहीं होते!!!



    ---



    बहुत उम्दा दिल को छूती रचना!!


    ----


    ’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

    -त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

    नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

    कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

    -सादर,
    समीर लाल ’समीर’

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  7. वैसे इस रचना पर मैं बहुत कुछ कह देती अगर तुम मेरे बेटे न होते। आज तो यही कहूँगी कि जानती हूँ नींद उसे तो शायद आ जाये मगर तुम्हें नींद नहीं आयेगी। हर पल उसकी चिन्ता? और भी बहुत कुछ कह रही है तुम्हारी ये रचना। चन्द शब्दों मे बहुत सी संवेदनायें , उदासी, मजबूरी,किसी के लिये अन्दर से कोमल एहसास और भी बहुत कुछ । बहुत खूब । इस रचना के लिये बधाई , आशीर्वाद

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  8. आपने तो सामने दृश्य लाकर खड़ा कर दिया

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  9. कभी कभी यूँ भी होता है .सर्द मौसाम अपना असर जेहन पर यूँ भी छोड़ता है ....बरस भर पहले कुछ इन्ही ख्यालो से गुजरे थे ......
    कफ़न डालो तो छूते ही धू -धू कर जल जाता है
    सुर्ख़ लाल है जिस्म तप रहा है सूरज की माफ़िक

    धूप खाकर पेट भर पानी पी रहा था कई रोज़ से


    some times its too bad to be think like this..as most of the intelligent people said..its to foolish to be emotional...
    कौन है जो आसमां को लिहाफ़ बना के सो रहा है
    उसके होट चल रहे है आँखो मे रोटी है शायद

    मत जगाओ उसे सुबह की मज़दूरी नही मिली आज




    but god is favorable too...sont u think arsh...

    चिलचिलाती धूप ओर छाँव का बँटवारा हुआ
    ज़िन्दगी की कचहरी मे बेनामा लिखा है
    रसूखवालो ने मौसम को रिश्वत दी है

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  10. अनुराग जी के कमेन्ट ने मुश्किलें आसान कर दी हैं. बहुत बढ़िया, ये सही अर्थों में दो शब्दकारों का संवाद है. दोनों को बधाई कि मेरा मन तृप्त हुआ.

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  11. रचना पढ़ चुका तो कई पल उधेड़-बुन में रहा कि क्या लिखूँ...फिर सारी टिप्पणियां पढ़ी मैंने। उहुं...कोई मदद नहीं मिली। ...तो अब हताश-सा वापस जा रहा हूं कि लग रहा जैसे अकेला मैं ही हूं जिसे कुछ समझ में नहीं आया।

    फिर आऊंगा अन्य टिप्पणियों से टोह लेने।

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  12. उफ़! क्या रच दिया अर्श!! मैं बेहद खुश हूँ इस पर कि तुम्हारी दृष्टि ने व्यापकता पा ली है. कालजयी रचनाओं की तरफ कदम तुमने बढ़ा लिए हैं. देश की ४०% आबादी को नजर में रखते हुए तुमने जो रचा है उसके लिए बधाई नहीं---शाबाश.

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  13. ek sachcha dard aur samvedna samete dil ko chhooti rachna ke liye , arsh , badhaai.

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  14. बहुत ही बढ़िया भाव पूर्ण रचना किसी मजबूर के परिपेक्ष्य में...

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  15. अर्श भाई.. बहुत संवेदनात्मक रचना है.. पढकर अच्छा लगा..

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  16. आँख लग तो जाती है पर कमबख्त नींद नहीं आती..

    कई किरदार फूटपाथ पर लेते हुए मिल गए... कमाल लिखा है.. सिर्फ कमाल

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  17. अरे मेजर साब.....!!!
    हताश वापिस काहे जा रहे हैं आप...??
    कम से कम एक डांट तो लगाते जाइए...के ज्यादा बीडी सिगरेट पीने वालों पे ध्यान देकर अपनी नींद ना उड़ाया करे...

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  18. उफ़ ये ठिठुरन...
    जब तक गुजर नहीं जाती...

    हाँ आपसे गुरुकुल में भेंट हो चुकी है. अब तो सफ़र साथ साथ का है.

    - सुलभ

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  19. ठण्ड और बेबसी दोनों कैसे इंसान को छोटी छोटी ज़रूरतों के लिए भी परेशान कर देते हैं
    क्या नींद आ जायेगी
    बहुत अच्छी नज़्म

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  20. प्रकाश जी ........ कभी कभी दिल में निराशा और उदासी लंबी देर तक छाई रहती है और वक़्त के साथ जम जाती है ...... सर्द ठंड की तरह ........... मन की ये संवेदना बहुत कुछ कह जाती है .........मन की बीड़ी में अभी चिंगारी बाकी है ...... गर्मी बनी रहनी चाहिए ..... देरी हृदय को छूती है आपकी रचना ...........

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  21. KADAAKE KEE SARDEE MEIN SANVEDNA SE BHAREE
    KALPANAA.

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  22. muflis dk
    to me

    show details 8:57 PM (40 minutes ago)

    लफ़्ज़ चाहे जैसे भी हों....
    रचना में छिपी भावना बिलकुल सच्ची है
    संवेदनाओं का असर साफ़ नज़र आ रहा है
    आम आदमी के दर्द तक पहुँचने के लिए
    ऐसी ही आग की ज़रुरत है
    इंसानियत का सर बलंद करती हुई
    कामयाब रचना पर
    दाद देना.... बनता ही है
    और....
    मेजर साहब भी आते ही होंगे
    ऐसे रह भी कहाँ पाएंगे भला....!!


    muflis

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  23. कडवी सच्चाई... इस कडाके की ठंड में हम ऊपर से नीचे तक कितने गरम कपडे पहने हैं, पता नहीं ..फिर भी ठंड है कि जाती नहीं. ऐसे में वो जागता रहेगा और हम उस पर लिखते रहेंगे...यही सच है. मार्मिक कविता है.

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  24. अर्श भाई मज़ा नहीं आया.............
    मुझे जैसा लगा मैं वैसा कह रहा हूँ, बात वो निकल के नहीं आ रही है जो तुम कहना चाह रहे हो.
    तुम्हारे कहन में बहुत कमी दिख रही है.

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  25. गरीबी और कडकडाती ठंड पर एक संवेदनशील रचना, रचना को प्रभावशाली ढंग से तराशा गया है और अभिव्यक्ति भी प्रभावशाली है किंतु रचना की अंतिम पंक्तियों पर "...नींद आ जायेगी।" के स्थान पर "...रात कैसे गुजर पायेगी, सुबह होगी या फ़िर ..." क्योंकि इतनी ठंड मे ... उफ़.. !!!!!
    रचना को दाद मिल रही है और आगे भी सराही जायेगी, एक प्रसंशनीय रचना के लिये 'अर्श जी' को बधाई !!!

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  26. नव वर्ष की मंगलकामनाओं के साथ इस रचना को ढेर सारी मुबारकबाद जमीन से जुड़े हुए मुद्दों पर लिखना, आम आदमी को लेखनी के माध्यम से उजागर करना ,सिर्फ संवेदन शील कलम का ही काम हो सकता है आपका प्रभावी लेखन हमेशा की तरह सराहनीय है

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  27. जज्बाती रचना.... साधुवाद

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  28. मनु जी चलिए हमने डांट लगा दी .....अब तो गुरु जी से शिकायत करनी पड़ेगी .....बहुत दिनों की छुट्टियों ध्यान भटका दिया लगता है .....मुफलिस जी की बात के मद्देनज़र रचना तारीफ के काबिल है .....!!

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  29. एक कड़वी सच्चाई से रूबरू करती संवेदनशील और प्रभावशाली कविता.

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  30. अर्श जी
    बहुत सुन्दर ग़ज़ल.......नयी रचना का बेसब्री से इन्तिज़ार है.

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  31. ये दर्द भरी दास्तान रुलाती है.

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आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...