सर्दी अपने शबाब पर है , मगर तरही कि सरगर्मी भी खूब जोर पर है ... ये दोनों ही अपने अपने जगह मुकम्मल हैं॥ इन दो कुदरती हसीन और जहीन चीजों के बीच ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ ... आप सबी के प्यार के लिए गूरू जी के आशीर्वाद के बाद ... ग़ज़ल का तीसरा शे'र गूरू जी ने दिए हैं...
ग़मों से दूर जाना चाहता हूँ
मैं फ़िर से मुस्कुराना चाहता हूँ ॥
मैं बच्चा बन के मां की गोद से फ़िर
लिपट के खिलखिलाना चाहता हूँ ॥
पिता ही धर्म हैं ईमां हैं मेरे
वहीं बस सर झुकाना चाहता हूँ ॥
जहां कोई खड़ा है राह ताकता
वहीं फ़िर लौट जाना चाहता हूँ ॥
सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
उसे गुस्सा दिलाना चाहता हूँ ॥
लहू का रंग मेरा इश्क जैसा
मैं साँसे शाईराना चाहता हूँ
ग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल
जिसे उसको सुनाना चाहता हूँ ॥
अर्श
" me bachcha ban ke maa ki god me....."
ReplyDeleteaour
pita hi dharm he imaa he mere....."
arsh bhai, in dono shero pe salaam.
aapne..vo likhaa he..jo kaaljayi he.../
aapko ishvar sadev prasanna rakhe, apne maataa pitaa ke charano me rakhe.
पिता ही धर्म हैं इमां हैं मेरे
ReplyDeleteवही बस सर झुकाना चाहता हूँ
ग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल
जिसे उसकी सुनना चाहता हूँ
लाजवाब 'अर्श' जी बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए
arsh
ReplyDeletegazal ka har sher lajawaab hai.........behad umda gazal kis kis ki tarif karein.
अर्श जी, आदाब
ReplyDeleteमैं बच्चा बनके मां की गोद से फिर
लिपट के खिलखिलाना चाहता हूं
बहुत खूब,
काश ऐसा हो पाता.!!!
पिता ही धर्म हैं, ईमां हैं मेरे
वहीं बस सर झुकाना चाहता हूं
ये शेर कहीं ज्यादा कीमती है
क्योंकि
'मां' पर ही अधिकतर साहित्यकारों की नज़र जाती है
'पिता' के तमाम अहसान होने के बावजूद
उन्हें अकसर उपेक्षित रखा जाता है..
अर्श जी, बेहद भावुक हो गया हूं...
मुझे अपनी रचना कहने का कर्ज़ चुकाना है,
जल्दी ही जज्बात पर आप देख पायेंगे..
याद दिलाने के लिये
आपका और 'गुरूजी' का आभार
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
वाऽऽऽऽऽऽह... अब आई बात जो मैं अर्श में चाह रही थी।
ReplyDeleteजहां कोई खड़ा है राह ताकता
वहीं फ़िर लौट जाना चाहता हूँ ॥
आह सभी तो यही चाहते हैं.. मगर ये जिंदगी कहाँ करने देती है ऐसा....!! गुरु जी का यही शेर है ना ?
सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
उसे गुस्सा दिलाना चाहता हूँ ॥
सादा सच....! बहुत खूब..असरदार...
लहू का रंग मेरा इश्क जैसा
मैं साँसे शाईराना चाहता हूँ
बहुत खूब...ये बात है कोई, जो सुन कर जु़बाँ पर चढ़ती है।
ग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल
जिसे उसको सुनाना चाहता हूँ ॥
ऐसी चीजें कहाँ मुकम्मल होती हैं मेरे भाई.. वो गीत सुना है,
....आधी है प्यार की भाषा,
रहा राधा का प्यार भी आधा
बहुत अच्छा लिखा अर्श.. मन खुश कर दिया...!
lलहू का रंग मेरे इश्क जैसा
ReplyDeleteमैं सासें शायराना चाहता हूँ
वाह वैसे तुम्हारी हर अदा ही शायराना है
मै बच्चा बन के माँ के गोद से फिर
लिपट के खिलखिलाना चाहता हूँ
और
पिता ही धर्म हैं इमाहैं मेरे
वहीं बस सै झुकाना चाहता हू
ये दोनो शेर दिल को छू गये। सुबीर जी को दाद देनी पडेगी। पता चल रहा है कि इतने दिन वो तुम्हारे पास रह कर गये हैं तो यादें ताज़ा हैं
जहां खडा है कोई राह तकता\
वहीं फिर लौट जाना चाहता हूँ ।
इस के लिये निशब्द हूँ।
सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
उसे गुस्सा दिलाना चाहता हूँ
ग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल
जिसे उसकी सुनना चाहता हूँ
अरे तो करो न पूरी अब कितना इन्तज़ार करवाओगे उस स। ऐसा करो एक बार जोरदार गुस्सा दिलवा दो फिर दोनो काम हो जायेगे खोपोबसूरती भी और गुस्से को शान्त करने के लिये गज़ल भी बन जायेगी। है न सही बात? लाजवाब्
आज की गज़ल ने तो दिल लूट लिया है । मेरे पास तो शब्द नहीं हैं कि क्या कहूँ। आज तबीयत बहुत खराब है इस समय सिर्फ तुम्हारी गज़ल पढने ही आयी थी। एक शेर सुना कर ही तुम ने उत्सुकता इतनी बढा दी कि रहा नहीं गया।। ये आना सफल रहा । आब जाती हूँ इसी तरह लिखते रहों सुबीर जी का फिर से धन्यवाद करती हूँ कि इसके सिर पर इसी तरह हाथ रखें। बहुत बहुत आशीर्वाद
"pitaa hi dharm haiN, imaaN haiN mere
ReplyDeletewaheeN bs sr jhukaana chaahta hooN"
chaahe kitne bhi deewaan likh diye jaaeiN, tb bhi baat adhoori rehti hai,,,lekin aapne ek saada-se sher mein mukammil kar di hai wo baat...waah !!
aur ye sher....
gazal hoti nahi bs wo mukammal
jise usko sunaana chaahta hooN
bs dil meiN kaheeN gehre utar gayaa hai
arre jawaani ke din yaad dilaa diye haiN...
bahut hi payaara aur nafees sher hai
gungunaae ja rahaa hooN
ek achhee gzl kehne par mubarakbaad .
एक वेहद सकारात्मक सोच की ऊर्जा से भरपूर गज़ल
ReplyDeleteमुकम्मल तो प्रकाश भाई दुनिया मे कुछ भी नही प्यार तो शुरू ही अधूरे प से होता है. प्यारी गज़ल मुकम्मल भले ना हो प्रेमिक को पसन्द आ जाये सम्झो दुआ कबूल हुई.
'लहू का रंग……'
ReplyDelete'जहां कोई……'
बहुत ख़ू्ब!
मैं बच्चा बनके मां की गोद से फिर
ReplyDeleteलिपट के खिलखिलाना चाहता हूं
har dil ki khawhish
जहां खडा है कोई राह तकता\
वहीं फिर लौट जाना चाहता हूँ ।
सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
उसे गुस्सा दिलाना चाहता हूँ
ye bahut bhola sa sher hai
waah waah kamaal ki gazal hui hai Sakha
magar ye sher bahut bahut pasand aaye
बेहतरीन! लाजवाब!!
ReplyDeletemain bachcha ban ke................
ReplyDeleteaur-------- pita hi dharm hai.................
bahut pyari panktian lagi.......... vaise sabhi sher behatareen hai, bahut bahut badhaai.
ऐसे वक़्त में ग़ज़ल पढवाई है आपने...के ग़ज़ल के लिए सीरियस होने तक का मूड नहीं है..
ReplyDeleteमन पल में कैसा...और पल में कैसा हुआ जाता है...
फिलहाल का मूड देखिये....
उसे किडनेप क्यूं करते हो बोलो..?
के जिसको मैं पटाना चाहता हूँ...
:)
:)
और सुनिए...
रखी है जान पत्ते पर तुम्हारी..
मैं बस टहनी हिलाना चाहता हूँ....
हो हो हो हो हो हो हो हो हो...
हमारा कमेन्ट छाप दीजिएगा बाबू.......
दोबारा जाने किस मूड में आएं...
सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है ......अच्छा जी ....?????
ReplyDeleteजाइये जल्दी राह तकी जा रही होगी ....रूठाइए और मनाते रहिये ......!!
Gazal to mukammal hai!Harek sher dohraya ja sakta hai!Bahut khoob!
ReplyDeleteबहुत खूब. कभी कभी, वाकई मे, दुनियाँ की कशमकश को भूलकर, फिर से बच्चा बन माँ के आँचल में लिपट्ने का मन करता हैं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल जी धन्यवाद
ReplyDeleteअरे जियो अर्श मियां...क्या शेर लेके आये हो अबके। भई वाह!!
ReplyDeleteसबसे पहले तो आखिरी शेर पे करोड़ो दाद कबूल फरमाओ...हम सारे शायरों का दर्द समेट कर रख दिया है तुमने इस एक शेर में।
...और फिर सुना है रूठ कर सुंदर लगे है वाले का अंदाज़े-बयां तो क्या कहने।
बहुत खूब!
हूं मुझसे तो कहते हो कि कहीं कोई नहीं है और शायरी तो बता रही है कि कहीं होई है जो रहा तक रहा है और जिसके लिये गज़ल मुकम्मल करने में जुटे हो । सुंदर ग़ज़ल । दूसरे शेर में मिसरा उला में कि को की कर लो ।
ReplyDeleteक्या बात कही अर्श भाई, दिल सुबह सुबह पढ़कर खुश हो गया ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteलहू का रंग मेरा इश्क जैसा
ReplyDeleteइतनी बढ़िया बात कि कई कहानियां चंद शब्दों में समा गयी हैं.
इतने सारे लोगों ने इतना कुछ लिख दिया की मेरे लिखने के लिए कुछ भी नहीं बचा. अगर हर बच्चा अपने माँ और पिता के लिए ऐसे सोचे तो आज हमारे वयोवृद्ध इस तरह दर दर की ठोकरें नहीं खा रहे होते बहुत बेहतरीन लिखा है
ReplyDeleteसुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
ReplyDeleteउसे गुस्सा दिलाना चाहता हू
classic........
लहू का रंग मेरा इश्क जैसा
मै साँसे शाइराना चाहता हूँ..........
इस शेर को कोपी राईट करवा लो....सच्ची !
अर्श भाई ....... सलाम कबूल क्सरें इस मुकम्मल ग़ज़ल पर ........ मैं बच्चा बन के माँ की गोद से फिर ......... पहले अपना और फिर अपनी बेटी का बचपन याद हो आया ....... उफ्फ ... .. दिल को चीर गया ये शेर ..... फिर ये शेर ... जहाँ कोई खड़ा है राह तकता ... विदेश में बैठे न जाने कितनी बार ऐसा होता है की चल अब लौट चलें ..... पर हिम्मत नही जुटा पाता .... और आखरी शेर तो सच कहा है .... ज़िंदगी की ग़ज़ल पूरी नही हो पाती .....
ReplyDeleteबहुत ही कमाल की ग़ज़ल ..... बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर ग़ज़ल लगी है ..... मज़ा आ गया ...
कुछ तो है भाई यहाँ रिदमिक। मनु भईया का कमेंट देख कर लंच करने गई और खाते खाते मुस्कुराती रही और मुस्कुराते मुस्कुराते ये गज़ल बन गई़। पहली बार हमसे हास्य रस में कुछ बना।
ReplyDelete@ दर्पण की पोस्ट पर किया गया अर्श के इक़बालिया बयान
हमी हैं जान डिक्लेयर हुआ ये,
खुदी को मैं बचाना चाहती हूँ।
@ मनु भाई का शेर
कि जिस टहनी पे ये पत्ता फँसा है,
वहीं एक गुल खिलाना चाहती हूँ।
उसी इक खूबसूरत गुल से भाई,
तेरा गुलशन सजाना चाहती हूँ।
औ उस टहनी पे काँटे से निकल कर,
ननद का हक़ निभाना चाहती हूँ। :)
मनु भईया से निवेदन
मेरा छोटों से झगड़ा ना करायें,
बड़ों को ये बताना चाहती हूँ।
है छोटे भाई में थोड़ा लड़कपन,
उसे बस मैं चिढ़ाना चाहती हूँ।
अब तो गुरु जी ने भी कह दिया अर्श जी .....वो नथ का मोती भी तो चमकता रहा था कई दिन .....??????
ReplyDelete'मैं बच्चा बनके मां की गोद से फिर
ReplyDeleteलिपट के खिलखिलाना चाहता हूं'
bahut khoob!
poori gazal hi bahut khoob kahi hai!
hello bhaiya...
ReplyDeletebahut dino baad aapke blog par aana hua....
bahut hi achhi ghazal padhne ko mile...
2nd, 3rd, 6th sher achhe lage... :)
सुना है रूठकर........
ReplyDelete.... बहुत खूब !!!!!
जहां कोई खडा .......
...... बेहतरीन !!!!
अर्श भाई, क्या जबरदस्त गज़ल है!! भरपूर आनंद आया। अब अंतिम शेर की बाबत कुछ निवेदन करता हूं, संभवतः मख्मूर सईदी का है-
ReplyDeleteसोचता हूं उसीके बारे में, मंज़िले फ़िक्र से गुज़रता हूं
खामुशी भी मेरी इबादत है, यूं भी मैं उसका जिक्र करता हूं
कोई बात नहीं गज़ल मुकम्मल नहीं होती तो!
वैसे भी, सयानों का कहना है-
इज़हारे तमन्ना भी तौहीने मोहब्बत है
तू खुद ही समझ जा तेरा नाम न लूंगा
ग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल
ReplyDeleteजिसे उसको सुनाना चाहता हूँ ॥
वाह भई वाह
अर्श भाई कमाल धमाल गजल है पढ कर मजा आ गया मक्ते तक आते आते तो सासे अटक गई... एक सान्स मे पूरी गजल पढी और फ़िर एक लम्बी सान्स ले कर फ़िर से पढी :)
एक गुजारिश है बढिया गजल ज्यादा लम्बी ना लिख्ना करो... कही ऐसा ना हो आप्को चाह्ने वले इस बन्दे की सान्स हि रुक जये :)
--वीनस
अभी अभी एक कमेन्ट किया है पता नही पोस्ट हुआ या नही :)
ReplyDeleteक्या बात है सब शेर एक से बडकर एक
ReplyDeleteदेर से आने का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि आप जो भी, जितना भी कहना चाहते हैं, ऊपर वाले उससे कहीं ज्यादा कह चुके होते हैं. खैर, देर की है तो भुगतना भी है. गजल के मामले में जिन कुछ बन्दों से खौफ महसूस होता है, उनमें अब आप भी शामिल हो गए हैं. 'पिता' वाले शेर पर आप को बधाई और सुबीर जी का शुक्रिया. गजल के सारे अशआर अंगूठी में नगीने की तरह फिट हैं, कहीं से, कोशिश के बावजूद मैं कुछ कर नहीं पा रहा हूँ--- बधाई. कभीमौक़ा दे दिया करो!
ReplyDeleteअर्श ग़ज़ल बहुत अच्छी बनी है...............
ReplyDeleteमतला ख़ुद में सादगी समेटे हुए है, क्या ये ग़म शादी का है???????????
"जहाँ है कोई खड़ा.................", वाह वाह वाह वाह...................क्या शेर कहा है, ये शेर अपने साथ ले जा रहा हूँ
"सुना है रूठ कर.........", अरे भाई कौन है अगर तुम बात नहीं कर पा रहे हो तो मुहे बताओ.....रेअद्य फॉर अन्य हेल्प
"ग़ज़ल होती नहीं..............." कुछ ना कुछ बात तो है.
अच्छी गजल है. तीसरा शेर वाकई बेहतरीन है.
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है!
ReplyDeleteलहू का रंग ........बहोत ख़ूब !
Saanse hi nahi lagta hai heart, brain,liver, kindney, intestine sabhi shayrana hai .....badiya gazal :-)
ReplyDeleteBadi Muddat Ke Baad Gazal Esi Mili Hi, Mai Bas Itna Batana Chahta Hu ... :)
ReplyDeleteहर बार की तरह इस बार भी दिल को छूते शब्दों के साथ बेहतरीन गजल, आभार आपकी लेखनी यूं ही दिनों दिन निखरती रहे,शुभकामनाओं के साथ 'सदा'
ReplyDelete@kanchan...
ReplyDelete:)
यहाँ तो महफ़िल ज़माने वाली जगह है भाई... क्या कहते हैं मजमा लेय जाये ? रखा जाये अपना तकिया... पर याद रखिये हम शाम के बैठे हुए दोपहर में उठते हैं... सोच लीजिये ... बड़ा नाम सुना था आपका आज तो साबित भी हो गया...
ReplyDeleteArsh jee,dekhte hee dekhte aapkee shaayree mein
ReplyDeletekhoob nikhaar aayaa hai.Is gazal ke adhikaansh
ashaar mujhe achchhe lage hain.Isee tarah sher
kahte rahiye.Aapse bahut ashaayen hain.
गजल की उतनी समझ नहीं है पर चाहत शायद हम सब की यही है
ReplyDeleteदिल की बात लिखी है आपने
aaj fir se gajal padhee aur fir se vo hee lutf milaa
ReplyDeletemaktaa to dil loot le gayaa
मेरे ख्वाब में जब तेरा इश्क़ झांके
ReplyDeleteतो रातों में सांसे बनें शाईराना
निभाना तुझे है तू ये भी समझ ले
कि ले नींद तू या जग कर निभाना
हर शेर उम्दा...लाजवाब.....वाह...एक से बढ़कर एक....
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस मुबारक हो.
बच्चा बड़ा ही प्यारा है.. वाकई..
ReplyDeletedig ji ,bahut khoob likha hai
ReplyDeletegazal vo poori nahi hoti
jise use sunana chahata hoon.
bahut mast hai
lajawaab........keep it up sir!
ReplyDeletelajawaab..............
ReplyDeleteदेर से आय हूँ. मगर ग़ज़ल का स्वाद तो बढ़ा हुआ और पका हुआ मिल रहा है.
ReplyDeleteशुक्रिया जी, कुछ शे'र से नाजुक से हैं.
मैं बच्चा बनके मां की गोद से फिर
ReplyDeleteलिपट के खिलखिलाना चाहता हूं
पिता ही धर्म हैं इमां हैं मेरे
वही बस सर झुकाना चाहता हूँ
लहू का रंग मेरा इश्क जैसा
मैं साँसे शाईराना चाहता हूँ
किस किस शेअर की दाद दें, हर शेअर अपनी अपनी जगह अपनी छटा दे रहा है. बधाई.
महावीर शर्मा
सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
ReplyDeleteउसे गुस्सा दिलाना चाहता हूँ
अभी पिछली पोस्ट में से निकला नहीं था की 'इस वाले' शे'र ने 'उस वाले' एहसास की Over Dose कर दी.
साधू ! साधू !! ऐसा पढ़ के तो बस बाछें खिल जाती हैं, और कुछ पलों को याद करके मन उदास भी होता है, इसलिए उतने ही अच्छे लगते है ये शे'र जितने बुरे.
:(
लहू का रंग मेरा इश्क जैसा
मैं साँसे शाईराना चाहता हूँ.
वाह! यानि पूरे इश्क -इश्क हुआ चाहते हो? बड़े नासमझ हो ये क्या चाहते हो?
हासिल-ए-ग़ज़ल है ये शे'र-
ReplyDeleteग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल…
bahut sunder , anand aa gaya aapki yeh rachna padh kar
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