फागुन का महिना खत्म , सच में इस महीने में हवाओं में भी नशा छा जाता है, जिसका सबूत खुद गुरू देव के ब्लॉगपे तरही है ... अब बात करते हैं कुछ हक़ीकत की और इसी पेशकश में लाया हूँ एक ग़ज़ल बहुत दिनों बाद ... मेरा ये कहना होता है के, जब तुम नहीं होते हो , ग़ज़ल साथ होती है !.... गुरु देव के आशीर्वाद से सजी यह ग़ज़ल आप सभी के सामने है उम्मीद करता हूँ पसंद आएगी ...
आजकल हिचकियाँ नहीं आतीं
यादों की अर्जियां नहीं आतीं ।
रिश्ते जब तक न रूह तक पहुंचें
उनमे कुछ गर्मियां नहीं आतीं ।
पत्ते जब टूट कर के गिरते हैं
थामने टहनियां नहीं आतीं ।
अब यकीं हो गया जवानी पे
सामने तितलियाँ नहीं आतीं ।
उन घरों की भी सोचिये जिनमे
रोज दो रोटियाँ नहीं आतीं ।
जब से दीपक बुझा दिये मैंने
तब से ही आंधियां नहीं आतीं ।
बात रिश्तों की हो मगर उनमे
जामुनी* लडकियां नहीं आतीं ।
जामुनी*= डस्की ब्यूटी ।
अर्श
यादों की अर्जियां नहीं आतीं ।
रिश्ते जब तक न रूह तक पहुंचें
उनमे कुछ गर्मियां नहीं आतीं ।
पत्ते जब टूट कर के गिरते हैं
थामने टहनियां नहीं आतीं ।
अब यकीं हो गया जवानी पे
सामने तितलियाँ नहीं आतीं ।
उन घरों की भी सोचिये जिनमे
रोज दो रोटियाँ नहीं आतीं ।
जब से दीपक बुझा दिये मैंने
तब से ही आंधियां नहीं आतीं ।
बात रिश्तों की हो मगर उनमे
जामुनी* लडकियां नहीं आतीं ।
जामुनी*= डस्की ब्यूटी ।
अर्श
Hameshkee tarah behad sundar rachana...!
ReplyDeleteजामुनी*= डस्की ब्यूटी । Hichkiya and arziyan doesn't matter.....after reading your gazal .. you know wat Im thinking.... aapki shaadi zamuni ladki se honi chahiye :-) just kidding
ReplyDeleteअर्श जी ..देर से सही बहुत बढ़िया पोस्ट बधाई .....
ReplyDeleteपत्ते जब टूट कर के गिरते हैं
ReplyDeleteथामने टहनियां नहीं आती
प्रकाश जी, इस शेर की दाद के लिये अल्फ़ाज़ नहीं मेरे पास.
उन घरों की भी सोचिये जिनमें
रोज़ दो रोटियां नहीं आती....
जाने कितने घरों के हालात बयां हो गये इन दो मिसरों में
बहुत बहुत मुबारकबाद
बेहद खूबसूरत मियाँ
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना. धन्यवाद
ReplyDeleteपत्ते जब टूट कर के गिरते हैं
ReplyDeleteथामने टहनियां नहीं आती'
यह शेर बहुत ही उम्दा कहा है.
वाह!
बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल है.
''हिचकियाँ वाला शेर भी बढ़िया है..&...जामनी लड़कियाँ wala bhi :) ...
ReplyDeleteउन घरों की सोचिये
ReplyDeleteजिनमें दो वक्त रोटियाँ नहीं आती
शायद सोच से परे है
बहुत सुन्दर गज़ल
हर शेर झकझोरता है..बहुत उम्दा गज़ल!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteवाह वाह क्यों झूठ बोलते हो कि हिचकियाँ नही आती ? उस दिन मुझ से मिलने आये थे तो इतनी हिच्कियाँ आ रही थी मैने पूछा भी था कि कौन याद कर रहा है मगर तुम ने हंस कर टाल दिया था बेटा अब तो सब को बता दो चलो मुझे नही बताया तो कोई बात नही।
ReplyDeleteरिश्ते जब तक न रूह तक पहुँचे
उन्म कुछ गर्मियांम नही आती
वाह बिलकुल सही कहा
पत्ते जब टूट कर गिरते हों---- चंद शब्दों मे एक हकीकत ब्यां कर दी
जब से दीपक बुझा दिये ----- लाजवाब शेर है।
अब यकीं हो गया जवानी पर और जामुनी लडकियों पर--- क्या कहूँ अभी जरा सोच लेने दो फिर आती हूँ
क्या खूबसूरत गज़ल कही है। इसके लिये तुम से अधिक सुबीर को बधाई देना चाहती हूँ जिस ने इस कलम को बहुत खूबी से घडा है। दोनो को बधाई और आशीर्वाद्
सोच ही रहा था कि ये ग़ज़ल तुम कब लगाओगे। तुम्हारी आवाज में जो उस दिन सुना था...तब से पूरी ग़ज़ल पढ़ने को उतावला था। मतले पर सौ-सौ दाद कबूल फरमाओ..वैसे तो प्रत्यक्ष ही दे दिया था। फिर से एक बार...
ReplyDeleteसारे अशआर खूब बने हैं। "अब यकीं हो गया जवानी पे" तनिक विरोधाभास नहीं प्रकट कर रहा? होना तो उलटा चाहिये...कि तुम्हारे पास तो खूब तितलियां मंडराती हैं ;-)
पत्तों को थामने के लिये टहनियों के न आने वाली बात खूब सोची। एकदम नायाब शेर...
फिर से आऊंगा!
antim sher lajawaab hai bhai ... waah-waaah
ReplyDeleteअर्श जी !!
ReplyDeleteलख लख बार दाद कुबूल करें....सारे अशआर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं......
अर्श जी !!
ReplyDeleteलख लख बार दाद कुबूल करें....सारे अशआर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं......
aaj kal hichkiyaan nahin aati, yaadon kee arziyaa nahin aati .......kamaal likha hai
ReplyDeletebhaiya.. har baar ki tarah hi is baar bhi bahut achhi gazal hai...
ReplyDelete"रिश्ते जब तक न रूह तक पहुंचें
उनमे कुछ गर्मियां नहीं आतीं ।"
तुम्हारा ये जामुनी लड़कियाँ वाला शब्द शाब्दिक चमत्कार की श्रेणी का प्रयोग है। मगर मैं जब जामुनी लड़की की कल्पना करती हूँ तो विश्वास मानो वो डस्की नही होता। जामुनी पूरी तरह से भिन्न रंग है। एक विशेष क्षेत्र और जनसंप्रदाय के लोग सामने आते हैं....! इसलिये मैं वाह नही कह पाती..खैर
ReplyDeleteबाकी गज़ल तुम्हारी बहुत सुंदर लगी। मतला ही बेमिसाल है
आज कल हिचकियाँ नही आतीं
सच कहा हर तरफ व्यस्तता..कई ज़रूरी काम, जो साँस लेने जितने आवश्यक लगते थे कभी. अब छूट गये हैं।
दूसरा शेर ...
रिश्ते जब तक ना रूह तक पहुँचे
आह क्या सच कहा है। कहाँ आती हैं रिश्तो में गर्मियाँ जब तक वे रूह तक ना पहुँचें।
पत्ते जब टूट कर के गिरते हैं
ये गंभीर शेर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट ले आता है। तुम्हारे, मेरे और मनु भाई के बीच के पिछले प्रकरण की याद दिलाते हुए।
अब यकीं हो गया जवानी पर
यार तुम्हारी जवानी ना हुई प्रेम चोपड़ा की जवानी हो गई। सारी हिरोइनें सामने पड़ने से कतरा रही हैं। :)
अगले दो शेर भी बहुत अच्छे हैं। अंतिम से ठीक पहले का शेर बहुत बड़ी फिलॉसफी कह रहा है।
God Bless You
wah..wah ...wah! :)
ReplyDeletesabhi sher behatareen...........akhiri sher men apni pahli pasand bayan ki hai , ............meri shubhkaamnayen.........rang bhi kya pasand kiya hai..............wah.
ReplyDeleteअर्श जी यादें तो बेसाख्ता चली आती हैं ....उन्हें भला अर्जी देने की क्या जरुरत .....??
ReplyDeleteपर ये हिचकियाँ क्यों बंद हो गयीं .....???
हाँ 'रूह तक पहुंचे रिश्ते' बेहद प्रभावशाली लगा ......दीपक और आंधियां वाला भी बेमिसाल लगा ....!!
गज़ल मै बहुत कुछ समेट दिया है
ReplyDeleteहिचकी नही तो यादो की अर्ज़ी बैऱ्ग वापिस
रिश्तो का रूह तक ना पहुचना
जवानी क्या आयी तितलियो क आना बन्द
दो रोटी की फ़िक्र यानि जीवन का असली सन्घर्ष
दीपक बुझे आन्धिया गायब
और अन्त मै जामुनी लडकिया
सारे शेर बहुत बढिया है. बधाई
बहुत अच्छी गज़ल है.
ReplyDeleteपत्ते जब टूटकर गिरते हैं
थामने टहनियाँ नहीं आतीं.
,,गजब का शेर है....हाँ..'जामुनी' का जवाब नहीं..!...इसका यह अर्थ नहीं जानता था. जानकर गुदगुदी सी होने लगी.
...बधाई.
वाह अर्श भाई आपके हर शेर दिल चीर गए,, और उफ़ करने की भी फुरसत नहीं मिली क्योकि अगले शेर पर फिर वही हाल हुआ
ReplyDeleteकसमिया कहता हूँ बहुत इंतज़ार करवाया आपने मगर जो मजा मिला है आत्मा तृप्त हो गई
आपकी गजलों में कहन की गहराई जिस हिसाब से बढ़ रही है मेरे लिए गर्व की बात भी है और रश्क की भी समझ नहीं आ रहा की कौन सा भाव प्रबल है गर्व वाला या रश्क वाला
खैर आज तो मजा आ गया हर शेर बेहतरीन और पूरी गजल ने चमत्कृत कर दिया
मतला तो खूब याद है...एकदम लाइव..
ReplyDeleteसबसे पहले बात उस शे'र की..
जिसने पहले सोचने पर,..
और फिर जोर से ठहाके लगाने पर विवश किया....
ग़ज़ल पढ़ते ही सबसे लहले तितलियों वाले शे'र ने अटकाया...
एकदम यही सोचा पहली नज़र में..जो मेज़र साहिब कह चुके हैं...
तनिक और नीचे उतरा तो इसी शे;र को कंचन चुंगा ने एक नए ही ढंग से पेश किया हुआ था....
यार तुम्हारी जवानी ना हुई...प्रेम चोपड़ा की जवानी हो गयी....
अकेले में रोना तो जब चाहे आ जाता है...
पर अकेले में ऐसे जोर से ठहाके कभी कभार ही लगते हैं....
बोबी याद आ गयी....''प्रेम नाम है मेरा.......!....प्रेम चोपड़ा......!!!
हा हा हा हा हा हा हा हा......................
सेकण्ड लास्ट शे'र को कंचन की ही नज़र से देख रहे हैं...
मगर आखिरी वाले को शायद नहीं.... या शायद ..
दोबारा आते हैं...
chandrabhan bhardwaj
ReplyDeleteto me
show details 10:57 AM (36 minutes ago)
Bhai Arsh ji,
Patte jab toot kar ke girate hain
Thamne tahaniyan nahin aatin
Sunder ghazal badhai.
Chandrabhan Bhardwaj
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ReplyDeleterishte jab tak na rooh tak pahunce.... ye sher rooh tak pahunchta hai arsh sahib!aur bhi kai sher dil ko chhute hain.dad kabool farmayen.
ReplyDeleteLoved this word ..for dusky beauty...Jamuni ladkiyan ..:))really wonderful !
ReplyDeletechandrabhan bhardwaj
ReplyDeleteto me
show details Mar 17 (4 days ago)
Bhai Arsh ji,
Patte jab toot kar ke girate hain
Thamne tahaniyan nahin aatin
Sunder ghazal badhai.
Chandrabhan Bhardwaj
"आज कल हिचकियाँ नहीं आतीं "
ReplyDeleteअकेला ये नन्हा-सा ,,,मासूम-सा मिसरा ही काफी है
बार-बार,,
बार-बार आपको याद करने के लिए...वाह !
और
"रिश्ते जब तक न रूह तक पहुंचें
उनमे कुछ गर्मियां नहीं आतीं.."
एक....युगों - युगों से समझाया जाने वाला सच
हर इंसान की बुनायादी ज़रूरत ....
और इसी सच का अनुमोदन करता हुआ ये शेर....
फिर से वाह !
...
"पत्ते जब टूट कर के गिरते हैं
थामने टहनियां नहीं आतीं...."
सलाम,,,सलाम,,,सलाम,,,,
कितनी बारीक़ी से कहा गया शेर है....तौबा
और हुज़ूर....
'जामुनी' लफ्ज़ के बारे में तो बात हुई थी हमारी
अछा इस्तेमाल किया है....
कंचन जी की बात पर मत जाना ,,,
नहीं तो मन बदल जाएगा
और अब एक बहुत अछा ,,,
"झूठा शेर"
"अब यक़ीं होगया जवानी पे
सामने तितलियाँ नहीं आतीं..."
वाक़ई झूठा शेर ....
जैसे मैं घूमा नहीं हूँ न तुम्हारे साथ !!!
बस दो ही तो समूह बन जाते थे हर जगह
एक तुम और तितलियाँ
और दूसरा
बेचारा मुफलिस ..... ):
अर्श भाई, छुरिया चला रहे हो........................
ReplyDeleteजान ले ली तुमने आज इस ग़ज़ल से,
मतले की वाहवाही के लिए लफ्ज़ कहाँ से लाऊ, अरे मियाँ दिल जीत लिया.
पत्ते जब टूट के गिरते हैं................
वाह वाह, एक शेर ने ना जाने कितनी बात कह डाली, हर कोई अपने तरेह से इसे देखेगा इसमें बहुत से मतलब छिपे हैं.
"अब यकीं हो गया जवानी पे"....................
इस शेर के लिए कमेन्ट कंचन दीदी के कमेन्ट से अच्छा नहीं हो सकता,
"बात रिश्तों की हो मगर..........."
अरे भाई, विज्ञापन में लिख दिया करो जामुनी लड़की चाहिए................................
देर लगी आने में उनको... शुक्र है फिर भी आए तो ...
ReplyDeleteऔर आए तो बहुत धमाकेदार आए ... लाजवाब ... निखार आता जा रहा है, धार तेज़ होती जा रही है .... प्रकाश जी .... बहुत अच्छा लगा आपसे बात करके ...
बहुत अच्छे।
ReplyDeleteसोच ग़ज़ब, अन्दाज़ वाह!
जामुनी- मज़ाज़ लखनवी के बाद अब ये लफ़्ज़ सही उरूज़ पे आया
और कितना दाद चाहिए…
पकने के बाद अक्सर दो चार शे'र बाहर ही छोड़ने पड़ते हैं, क्योंकि उनसे ग़ज़ल का वज़्न कम होता है। आप को नहीं छोड़ने पड़े ये अच्छी बात है।
ग़ज़ल कहते रहिए,
kya baat hai arsha ji
ReplyDeletegazal padhkar to man meetha ho gaya ...specially last para me ... kya khoob likha hai ji wah wah .... ye sher mujhe bahut accha laga .. jab se diye bhuja diye hai mein e aandhiya nahi aati ... mera salaam kabul kare....
aabhar aapka
vijay
Waah waah Kya matla kaha hai .....
ReplyDeleteroj do rotiya.N ........ kamal ka sher hai .....
Aandhiyan nahi aati ........aha kya kah diya ...
प्रकाश भाई
ReplyDeleteयह शायरी `अर्श' की शायरी है और फर्श की भी
उन घरों की भी सोचिये जिनमें
रोज़ दो रोटियाँ नहीं आती
बहुत ख़ूब
अगली पोस्ट का इंतज़ार रहेगा
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है ! "जामुनी लड़कियां" .... क्या बात है ! और सबसे अच्छा लगा ये शेर:
ReplyDeleteउन घरों की भी सोचिये जिनमे
रोज दो रोटियां नहीं आती
बहुत खूब !
arey bhai dil ke arman sulga diye
ReplyDeletebhai avsad se nikliye
ReplyDeleteumeed pe duniya kaym hai
shubhkamnaye