अभी हालिया के यात्रा से जो तज़रबा हुआ आप सभी के सामने है ...
गलियाँ तंग हो गयीं
कुछ ने करवटें बदल ली
कुछ थक सी गई हैं
कहती हैं
गाँव
घना हो गया,
दालान पर ताले लटक गए
दादा जी
नहीं रहे जब से
गोशाले का कोना ढह गया है
मगर
नीम का पेड़ अब भी है बाट में ,
पगडंडियाँ दूर तक हैं
कुछ उनसे भी निकल आयी हैं
खेत
क्यारियों में तब्दील हो गया ,
वो महुए का पेड़
पहुंचा
तो पूछ बैठा
अब क्यूँ नहीं आते चुनने ,
आम
छोटा था तब
अब मंजर आते हैं
पर क्या खुश है
वो ?
खलिहान ठिगना होता गया
पुआल के ढेर अब
नज़र नहीं आते
कोने
पर कुछ गिट्टी और बालू
आ धमके हैं
गिलावे के लिए ,
चबूतरा सिसक रहा था
अस्तित्व पर
बरबस मैं कह बैठा
घर की नींव
मजबूत है और
कद
अब भी उंचा है !
सच कहा न.....
अर्श
गलियाँ तंग हो गयीं
कुछ ने करवटें बदल ली
कुछ थक सी गई हैं
कहती हैं
गाँव
घना हो गया,
दालान पर ताले लटक गए
दादा जी
नहीं रहे जब से
गोशाले का कोना ढह गया है
मगर
नीम का पेड़ अब भी है बाट में ,
पगडंडियाँ दूर तक हैं
कुछ उनसे भी निकल आयी हैं
खेत
क्यारियों में तब्दील हो गया ,
वो महुए का पेड़
पहुंचा
तो पूछ बैठा
अब क्यूँ नहीं आते चुनने ,
आम
छोटा था तब
अब मंजर आते हैं
पर क्या खुश है
वो ?
खलिहान ठिगना होता गया
पुआल के ढेर अब
नज़र नहीं आते
कोने
पर कुछ गिट्टी और बालू
आ धमके हैं
गिलावे के लिए ,
चबूतरा सिसक रहा था
अस्तित्व पर
बरबस मैं कह बैठा
घर की नींव
मजबूत है और
कद
अब भी उंचा है !
सच कहा न.....
अर्श
waah .....aapne to tasveer kheech di shabdo se.....hamara bachpan aise nahi guzra...shahar ke siva kuch dekha hi nahi ....achcha laga padh kar
ReplyDeleteखलिहानो का नज़र न आना
ReplyDeleteपुआलो का कही खो जाना
वाह गाँव की बदलती तस्वीर ही खीच दी आपने तो
गांव की आज की तस्वीर सही खिची आपने . सब तो शहर मे बस गये रह गये जो बुढे लोग खन्डर मकान .
ReplyDeleteMujhebhi apne ganvka ghar yaad aa gaya...jiska pichhala darwaza khalihanome khulta tha, hamesha khulahi rahta tha..
ReplyDeleteआपके कलम में कैमरा लगा हुआ है क्या ?
ReplyDeleteआज के गांव के हालात पर सही लिखा आप ने
ReplyDelete..........गलियां तंग हो गईं....
ReplyDeleteदालान पर ताले लटक गए....
दादा जी नहीं रहे जबसे...गौशाला का कोना ढह गया है....
......खलिहान ठिगना होता गया.....चबूतरा सिसक रहा था...
अर्श जी, गांव का ऐसा मार्मिक शब्द चित्रण.....
सच में आंखें नम कर गया...बधाई.
बढ़िया है भाई ... अर्श !
ReplyDeleteका जी हमारा कमेन्ट जा ही नहे रहा है
ReplyDeleteपाहिले मोबाईल से किया आऊर इहाँ आ के देखा तो नादारद
अब फिर लंबा वाला किया तो गूगल बाबा अटकाव के लिए माफी मागे लगेंन
अब कापी तो किया नाही रहा सो फिर से टिपिया रहे है :(
गाँव क्या होता है कभी मई जान ही नहीं पाया क्योकि शहर में पैदा हुआ यही पाला बढ़ा
आपकी कविता मन को छु गई
कभी अपने गाँव ले चलिए ना
बिल्कुल सच कह रहे हैं आप .. बहुत कष्ट होता है यह सब देखकर !!
ReplyDeleteitana achchha likha kiapane gaawn ki yaad se. aankhen bheeg gayin . bahut sunder.
ReplyDeleteबदलते परिवेश को ... सामाजिक मूल्यों और व्यक्ति के के बदलाव को बहुत सही तहर से रखा है आपने इस रचना में ... चबूतरा सिसक रहा है ... सच में आज कितने ही आँगन, खेत, खलिहान, चोबारे दम तोड़ रहे हैं आधुनिकता की आँधी दौड़ में ...
ReplyDeletebahut hi badhiyaa.......chabutre ki siski ! kya kahun
ReplyDeleteek-ek shabd gaaoN ki poori tasveer
ReplyDeleteaankhoN ke saamne la paane meiN kaamyaab
ho gayaa hai...aapki bhaavnaaeiN aur samvednaaeiN saaf jhalak rahi haiN
bahut achhee rachnaa bn padee hai .
badhaaee .
wah arsh ji wah... badiya bhavabhivyakti..wah
ReplyDeleteमुझे भी बहुत याद आया अपना गांव..खलिहान...पेड़ और खेतों के बीच का रास्ता...
ReplyDeleteहमने तो सोचा था कि इस यात्रा में वो नथ मिल ही जाएगी पर ......आपने फिर करवटें बदल लीं ....तभी तो सबकुछ उदास दिखा ......!!
ReplyDeleteक्या खुश है वो ......????
flashback चला दिया आपने...
ReplyDeleteगलियाँ तंग हो गयी
ReplyDeleteकुछ ने करवटें बदल ली---- वाह इन पँक्तियों पे आ कर रुक गयी हूँ
और कुछ थक सी गयी हैँ ------ मुझे लगता है जरूर तुम्हारी राह देखते थक गयी होंगी। कितनी जल्दी कितना कुछ बदल जाता है जो कभी हर पल अपना सा लगता है जब हम उन गलियों मे होते हैं मगर अपने जाने के बाद लगता है जैसे सब कुछ बदल गया है उनमे वो जीवन नही रह गया। तुम्हारी अनुभूतियाँ बिलकुल सही हैं। दादा जी के लाडले थे तो दादा के जाने का एहसास सब चीज़ों मे ढूँढते रहे हो। उनके जाने पर बहुत कुछ नही रहा। बेशक ताले लटक रहे हैं मगर फिर भी उनकी जडों मे तुम्हारे रूप मे कुछ एहसास अब भी जिन्दा हैं सही कहा जडें मजबूत हैं। गावों मे आज कल जो बदलाव हो रहा है उसकी सही तस्वीर खींची है। हर एक एहसास को याद को बखूबी शब्दों मे ढाला है। बहुत ही अच्छी लगी ये नज़्म ।
चबूतरा सिसक रहा था
अस्तित्व पर
बरबस मै कह बैठा
घर की नींव मजबूत है
और कद अब भी ऊँचा
बिलकुल सही कहा तुमने। जब तक बच्चों के मन मे बडों के लिये और अपनी मिट्टी के लिये प्यार है तब तक घर का कद ऊँचा ही रहता है
बहुत अच्छी लगी रचना बधाई और अशीर्वाद
कल दिल्ली मे तुम मिले बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद तो नही कहूँगी क्यों कि बेटे को माँ से मिलना ही था। सदा खुश रहो सुखी रहो आशीर्वाद।
अच्छा चित्रण किया है.
ReplyDeleteaapki yah post apani ganva kiyad taza kar gayi aakhen nam hi gagi aapki is post se bahut hi badhia.
ReplyDeletepoonam
कहाँ से शुरू करूँ अर्श ? No words !
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद आ रही हूँ इधर ....पहले केवल; आपकी शानदार ग़ज़लें ही पढी थी...
bahut hi achha laga aapki rachna padhkar...gaon kya waqai aise hote hain...waise nahi jaise filmon mein dikhate hain
ReplyDelete'नीम का बाट जोहता पेड़ और सिसकता चबूतरा'...कविता में गाँव की वर्तमान स्थिति का बहुत ही सही चित्रण किया है.
ReplyDeleteआप की कविता शब्द चित्र की भांति लगी...जैसे सब कुछ आँखों के सामने से गुज़र गया हो.
अर्श आज कल आप बहुत अंतराल में लिखते हो लेकिन जो भी प्रस्तुत करते हो .. बहुत अच्छा होता है.
बधाई
अभी एक कमेन्ट में पढ़ा..
ReplyDeleteआपकी कलम में कैमरा लगा हुआ है क्या....?
शायद... कैमरा ही लगा हुआ है...
बहुत बचपन की याद आ गयी ..
ReplyDeleteजैसे कैमरे से कोई वीडियो फिल्म बना कर दिखा रहा हो..
खलिहान ठिगना होता गया
ReplyDeleteपुआल के ढेर अब
नज़र नहीं आते
कोने
पर कुछ गिट्टी और बालू
आ धमके हैं
गिलावे के लिए ,
वे इस बदलती दुनिया के असर में अपना विद्रोह करने का नजरिया तलाश रहे है ....ओर कही कही विलुप्त होने का डर भी है ..ओर हैरानी है के कोई उनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी नहींलिखाता
गलियाँ तंग हो गयीं
ReplyDeleteकुछ ने करवटें बदल ली
कुछ थक सी गई हैं
aap kya likhte hai,batane ki jarurat nahi.. :)
कुछ बहुत ही खूबसूरत इमेजों से सजी कविता। बीच-बीच में गाँव हो आया करो नियमित अंतराल पर..हमें ऐसी ही धाँसु कविता मिलती रहेंगी पढ़ने को।
ReplyDeleteपगडंडियों से नयी पगडंडियां निकलने वाला इमेज तो वो उफ़्फ़्फ़ वाला है...
शुक्रिया ,
ReplyDeleteदेर से आने के लिए माज़रत चाहती हूँ ,
उम्दा पोस्ट .
bahut accha likha h badhiya
ReplyDeleteमैं तो आज नयी पोस्ट देखने के लिये आयी थी बेटा अब चबूतरे से बाहर आओ। अब आसमां को देखो और नई गज़ल पोस्ट करो। ।इतने दिन मर लगाया करो पोस्ट लिखने के लिये। बहुत बहुत आशीर्वाद । नव वर्ष की मंगल कामनायें
ReplyDeleteअर्श भाई, अच्छा लिखा है..........................
ReplyDeleteएक बात कहना चाहूँगा कौमा (,), फुल स्टॉप (.) का उपयोग कीजिये ये भी ज़रूरी है (ऐसा मुझे कहीं कहीं लगा है)
जैसे.................
"वो महुए का पेड़
पहुंचा
तो पूछ बैठा
अब क्यों नहीं आते चुनने,"
अरे भाई महुए का पेड़ कहाँ लेके जा रहे हो, गए तो आप हो ना............................
आम पे मंजर नहीं आते शायद उसे "बौर" कहते है क्या आपके गाँव में उसे मंजर कहते है अगर हाँ तो सही है.
ख्याल बहुत अच्छे हैं उसके लिए बधाई
बहुत ही प्यारी नज़्म है दोस्त... गाँवो की आजकी तस्वीर है ये..
ReplyDeleteबहुत उम्दा नज़्म | पढ़कर आनंद आया | आज के गाँवों को देखते हुए विचारणीय रचना | बधाई |
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें और लेखन पसंद आने पर अनुसरण करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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