नुसरत दीदी , गुरु जी , मोनिका दीदी , गौतम भाई और वीनस
तमाम ब्यास्तताओं और कठिनाइयों के बावजूद जब डा. कुमार विश्वास गौतम बुद्ध की पावन धरती पर पहुंचे तो सारा सिद्धार्थ नगर झूम उठा !मैं ये बात कर रहा हूँ २६ जून की उस ऐतिहासिक शाम के बारे में , सिद्धार्थ नगर में एक कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया था , संस्था का नाम है नवोन्मेष !एक ऐसी संस्था जिसने नई पीढ़ी को साहित्य के दर्शन कराने का बीड़ा उठाया है , जीतनी इस संस्था की तारीफ की जाये कम है ! सारे ही नौजवान जिस लगन से इस आयोजन को सफल बनाने में जुटे थे लग रहा था हिंदी को अब को खतरा नहीं ! विजित सिंह जो मुश्किल से २१ या २२ साल का एक लड़का है , कहीं से भी कम आंकना इस नौजवान के लिए छोटी बात है
विजित के साथ मैं
इस कवि सम्मलेन को सफल बनाने में इस नौजवान ने जतनी मेहनत की वो काबिलेतारीफ है ! इस हसीन शाम का हिस्सा बनने का सौभाग्य मुझे भी मिला !
दो दिवसीय इस आयोजन में अंतिम दिन कवि सम्मलेन की तिथि तय थी, दिल्ली से डा. कुमार विश्वास , भोपाल से नुसरत दीदी , रमेश यादव जी ,लखनऊ से सर्वत जमाल जी , सीहोर से गुरु जी , मोनिका दीदी , और डा. आज़म साहब, सहरसा से गौतम भाई, अलाहाबाद से वीनस भी आमंत्रित थे , इस तरबतर कर देने वाली गर्मी में इतनी दूर पहुंचना ही अपने आप में साहस की बात है,मैं भी खुश था इन सभी लोगों से मिलने के लिए!अगर इन सभी को एक जगह लाने का श्रेय दिया जाये तो वो बहन कंचन को जाता है और एक मंच पर लाने का काम बखूबी गुरु जी ने किया !
मंच पर आसीन सभी
गुरु जी द्वारा मंच संचालन
करिश्माई डा. विश्वास

आज नौजवान की दिल की धड़कन बने इस करिश्माई इंसान के बारे में यही कहूँगा के सच में वो धडकनों में बसने का पूरा हक़ रखते हैं ! आज उनकी शोहरत से सभी रश्क करते हैं मगर उसके पीछे की उनके कठिन संघर्ष को कोई नहीं जानता , कितनी मेहनत की है उन्होंने इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए शाम को रेस्ट हाउस में बैठ कर गप्पे मरने के दौरान उन्होंने सारी बातें मुझसे और गुरु जी से की सच कहूँ तो उनके लिए करिश्माई इंसान ही कहूँगा उन्हें !
सभी ने अपनी प्रस्तुति से सिद्धार्थ नगर के लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया , दर्शकों की भी तारीफ़ करनी होगी जिस हिसाब से वो साथ दे रहे थे वो काबिले गौर बात थी! जो हज़ारों की संख्या में आकर और अपनी जिस शालीनता से सुन रहे थे दर्शा रहे थे ,सच कहूँ सिद्धार्थ नगर के लोगों को सलाम करता हूँ !
गुरु जी की कविता दर्द बेचता हूँ मैं , रमेश यादव जी की कविता ये पिला बासन्तीय चाँद , नुसरत दीदी की ग़ज़ल टूट जाऊं बिखर जाऊं क्या करूँ, मोनिका दीदी की सरस्वती वन्दना और , इससे बेहतर है के मुलाक़ात ना हो , गौतम भाई की उड़स ली चाभी गुछियों वाली , बहन जी की ज़मीं अपनी जगह आसमान अपनी जगह , वीनस की ग़ज़ल ना मुकदमा ना कचहरी , ने लोगों को झूमा कर रख दिया ,...
मगर जब डा. विश्वास की बारी आयी तो लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया अपना मज़ीद कलाम कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है जैसे ही शुरू किया लोग की धड़कने जैसे थम सी गयी , जब तक गाते रहे लोग खड़े होकर तालियों से स्वागत करते रहे! सही तौर पर कही जाए तो डा. विश्वास जो झंडा कविता के लेकर आगे आगे चल रहे हैं सच में कविता सुरक्षित है इस देश में ! अपने बिना रुके दो घंटे की कविता पाठ में दर्शकों को बांधे रखना डा. विश्वास के ही बूते की बात है! इस पुरे दौर में शुद्ध रूप से कविता पाठ के दौरान डा . साब ने चकित कर दिया पूरे सिद्धार्थ नगर को और कविता के जिस रस को सामने रखा सबके सभी आनंद विभोर हो गए !
अर्श