हालाँकि गर्मी से निजात अभी पूरी तरह से नहीं मिल रही , मगर कुछ बुन्दा बांदी होने लगी है !और अब ग़ज़ल जो धडकनों में दफ्न है, मचलने को आतूर होने लगी है , इसी सिलसिले में आज एक मुक्तक पेश कर रहा हूँ , अगर कभी ग़ज़ल मुकम्मिल बन गयी तो जरुर आप सभी के सामने रखूँगा ....
सितारे हाँथ अपने मल रहे हैं !
मेरे महबूब से वो जल रहे है !!
सियासत करने वालों को भी देखा
यक़ीनन पहले वो अजमल रहे हैं !!
अर्श
वाह…………दोनो ही मुक्तक लाजवाब्।
ReplyDelete्बहुत सुंदर जी
ReplyDeleteAah ! Bahut sundar!
ReplyDeleteवाह अर्श भाई !
ReplyDeleteग़ज़्ज़ब मोबाइल शायरी !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
कता खूबसूरत है...
ReplyDeleteपहले दो मिसरे खास तौर से पसंद आए.
दूसरा शेर पसंद आया.....इतनी बारिशे ब्लॉग पे .कुछ बादल इधर भेजो भाई....
ReplyDeletewaah waah kya baat hai !
ReplyDeleteगज़ल का इन्तज़ार
ReplyDeletebahot achche.
ReplyDeleteअर्श भाई,
ReplyDeleteबहुत खूब.
'सितारे हाथ अपने मल रहे हैं,
मेरे महबूब से वो जल रहे हैं.'
बहुत अच्छा लगा.
-राजीव
bahut hi achhe bhaw....
ReplyDeletebahot achha hai sir
ReplyDeleteवाह ... गजब ...
ReplyDeleteदूसरा शेर तो तीर है जी तीर ... क्या बात कही है ...
bahut bahut sunder
ReplyDeletehttp://liberalflorence.blogspot.com/
http://sparkledaroma.blogspot.com/
इन्तेज़ार है ग़ज़ल का, फ़िलहाल इस उम्मीद भरी दाद से काम चलाएँ।
ReplyDeleteसितारे हाँथ अपने मल रहे हैं !
ReplyDeleteमेरे महबूब से वो जल रहे है !!
इस खुबसूरत शेर के साथ आपकी ग़ज़ल मुक्कमिल हो शुभकामना के साथ इन्तजार रहेगा...
regards
arsh ji.... :)))
ReplyDeletePuri gazal ka intezaar..... is baar badi der nahi kar di ........
ReplyDeletesitaare haath...... bahut khoobsurat sher :-) hame bhi dikhao aakhir koun hai
पढ़ भी लिया है और तुम्हारे मुँह से सुन भी लिया है, ग़ज़ल तो अबतक मुकम्मल हो ही गयी होगी।
ReplyDeletesundar!
ReplyDeleteARSH JI AAPKI GAJAL WAKI ME LAJAWAB HE [SWARUP]
ReplyDeleteARSH JI AAPKI GAJAL PADI OR AAPKE BARE ME JANKARI MILI BEHAD KHUSHI HUIE......[SWARUP]
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