दिनों बाद एक पुरानी ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ , सोंचा कुछ न कुछ तो चलता रहे ! सबसे पहले आप सभी को ईद , गणेश चतुर्थी और हरियाली तीज की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ! ये ग़ज़ल साल के शुरुआत में तरही के लिए लिखी गयी थी आदरणीय गुरु देव के लिए ! आप सभी का प्यार फिर से चाहता हूँ अगले अंक में नई ग़ज़ल के साथ आऊंगा इसी वादे के साथ !!
हवाओं में खुशबू ये घुल के बताए!
वो खिड़की से जब भी दुपट्टा उडाए !!
मचलना बहकना शरम जैसी बातें ,
ये होती हैं जब मेरी बाँहों में आए !!
उनींदी सी आँखों से सुब्ह को जब भी ,
मेरी जान कह के मेरी जां ले जाए !!
अजब बात होती है मयखाने में भी ,
जो सब को संभाले वो खुद लडखडाए !!
वो शोखी नज़र की बला की अदाएं ,
ना पूछो वजह क्यूँ कदम डगमगाए !!
वो हसरत से जब भी मुझे देखती है ,
मुझे शर्म आए मुझे शर्म आए !!
नज़ाक़त जो उसकी अगर देखनी हो ,
मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाए !!
शरारत वो आँखों से करती है जब भी ,
मेरी जान जाए मेरी जान जाए !!
मुझे जब बुला ना सके भीड़ में तो,
छमाछम वो पायल बजा कर सुनाए !!
उम्मीदों में बस साल दर साल गुजरे ,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !!
अर्श
हवाओं में खुशबू ये घुल के बताए!
वो खिड़की से जब भी दुपट्टा उडाए !!
मचलना बहकना शरम जैसी बातें ,
ये होती हैं जब मेरी बाँहों में आए !!
उनींदी सी आँखों से सुब्ह को जब भी ,
मेरी जान कह के मेरी जां ले जाए !!
अजब बात होती है मयखाने में भी ,
जो सब को संभाले वो खुद लडखडाए !!
वो शोखी नज़र की बला की अदाएं ,
ना पूछो वजह क्यूँ कदम डगमगाए !!
वो हसरत से जब भी मुझे देखती है ,
मुझे शर्म आए मुझे शर्म आए !!
नज़ाक़त जो उसकी अगर देखनी हो ,
मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाए !!
शरारत वो आँखों से करती है जब भी ,
मेरी जान जाए मेरी जान जाए !!
मुझे जब बुला ना सके भीड़ में तो,
छमाछम वो पायल बजा कर सुनाए !!
उम्मीदों में बस साल दर साल गुजरे ,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !!
अर्श
हवाओं में खुशबू ये घुल के बताए!
ReplyDeleteवो खिड़की से जब भी दुपट्टा उडाए !!
इस रचना ने दिल को छुआ! भावनाएं आपके आभार से सरोबार है।
आपको भी को ईद , गणेश चतुर्थी और हरियाली तीज की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं!
अंक-8: स्वरोदय विज्ञान का, “मनोज” पर, परशुराम राय की प्रस्तुति पढिए!
Nihayat khoobsoorat alfaaz!
ReplyDeleteबहुत खुब सुरत गजल लगी, एक एक शॆर एक से बढ कर एक, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत अच्छी रही है आपकी ये ग़ज़ल...
ReplyDeleteसुबीर जी के ब्लॉग पर भी खूब पसंद की गई...
आपको और आपके परिवार को
ईद-उल-फ़ितर...
गणेश चतुर्थी...
और....
हरियाली तीज...
की ढेर सारी शुभकामनाएं.
अर्श मियाँ पंक्ति दर पंक्ति तुम दिल जीतते गए ....जीतते गए...जीतते गए
ReplyDelete... bahut sundar !!!
ReplyDeleteबहुत खूब .
ReplyDeleteas usal beautiful!
ReplyDeleteअर्श भाई
ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल है.... " मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाये...." बहुत उम्दा शेर कहा. नयी ग़ज़ल का बेसब्री से इन्तिज़ार है...!
नया साल जरूर कोई नया गुल खिलाये इसकी कामना करती हूँ और बहुत बहुत आशीर्वाद इस सुन्दर गज़ल के लिये बधाई। ईड गणेश चतुर्थी की बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteअर्श जी,
ReplyDeleteगज़ब कर दिया……………आपके शेर तो दिल चुरा कर ले गये………………बडा भीना भीना अहसास भरा है………………आज के सारा दिन मे ऐसी रोमांटिक गज़ल अभी तक नही पढी………………बहुत ही सुन्दर्।
ग़ज़ल ये तुम्हारी मुहब्बत का नग़्मा
ReplyDeleteजिसे दिल सुने है औ दिल ही सुनाये।
बहुत खूबसूरत गज़ल अर्श भाई.
ReplyDeleteअर्श जी ... बहुत मुदत बाद आज ब्लॉग पर दुबारा आपको देख कर बहुत खुशी हो रही है ... आपकी ये लाजवाब ग़ज़ल तो पहले भी पढ़ चुके हैं .... अब तो बस उस दुपट्टा उड़ाने वाली के बारे में बताएँगे तो और भी मज़ा आ जाएगा ....
ReplyDeleteअर्श भाई...............
ReplyDeleteएक बार फिर से ताज़ा कर दिया, वैसे ग़ज़ल जितनी पुरानी होती है, उतनी अच्छी और अज़ीज़ भी हो जाती है.
ये ग़ज़ल तो आपने ना जाने कौन सा शर्मों हया का लिबास पहन के लिखी है ये तो अभी तक छुपा है मगर धुएं के पीछे कोई ना कोई चिंगारी तो होगी ही...........
ये शेर तो....."मेरे नाम से कह दो........." .....खतरनाक
सारे के सारे नगीने मुहब्बत की चाशनी में डूबे हुए हैं.
शुक्र है कुछ तो हरकत हुई ’अर्श’ पर।
ReplyDeleteमुझे शर्म आये मुझे शर्म आये ....वल्ल्लाह!
bahut hi khubsurat panktiyaan....
ReplyDeleteachhi gazal...
bahut khub.......badhai...
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
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ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
अर्श भाई, कमाल किया है आपने। बधाई तो बनती है।
ReplyDelete................
खूबसरत वादियों का जीव है ये....?
वो हसरत से जब भी मुझे दखती है,
ReplyDeleteमुझे शर्म आये मुझे शर्म आये.....
" वाह , क्या नजाकत है......."
regards