दीपावली की असीम शुभकामनाओं के साथ,आप सब के सामने फिर से हाज़िर हूँ, एक नई ग़ज़ल के साथ जो हाल ही में गुरूकुल में तरही के लिए लिखी गई थी ! बगैर कुछ ज्यादा भूमिका बनाये सीधे ग़ज़ल के पास चलते हैं ... मिसरा-ए-तरह ... जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी
आँखों से मैं कहने लगा , आँखों से वो सुनने लगी !
कैसा है ये लहजा , इसी को कहते हैं क्या आशिकी !!
क़ाबिज हुआ चेहरा तेरा कुछ इस तरह से जह्न में,
खीचूँ लकीरें जैसी भी बन जाती हैं तस्वीर सी !!
जलते रहें दीपक सदा काइम रहे ये रौशनी ,
बस इस दुआ में हाथ ये उट्ठे हैं रहते हर घडी !
आहों में तुम, सांसों में तुम , नींदों में तुम,ख़्वाबों में तुम ,
कैसे रहूँ तेरे बिना तू ही बता ऐ ज़िंदगी !!
तौबा वो तेरी भूल से कल जुगनुओं में खौफ था ,
तू जिस तरह से चाँद को जुल्फों में ढक कर सो गई !!
कैसे कहूँ इस प्यास का रिश्ता नहीं तुझ से भला ,
पाऊं तुझे तो और भी बढ़ जाती है ये तिश्नगी !!
वो चाह कर भी रोक ना पायेगी अपनी ज़ुल्फ़ से ,
जब ले उडेंगी इस तरफ खुश्बू हवाएं सरफिरी !!
क्यूँ तंग नज़रों से मुझे वो देखती है बारहां ,
ऐसी अदा पे आज मैं कह दूँ उसे क्या चोरनी !!
आया न कर तन्हाई में यूँ छम तू ऐ दिलरुबा ,
ये जान लेकर जाएगी एक दिन तेरी ये दिल्लगी !!
अर्श
अर्श जी
ReplyDeleteपहले शेर ने तो खुद ही जुबाँ दे दी अल्फ़ाज़ों को।
दूसरे शेर मे ख्याल को शक्ल का जामा पहना दिया।
पांचवां शेर तो घायल कर रहा है आशिकों के दिल को।
छठे शेर मे तो बेचारे आशिक को मार ही डाला है।
आठवां और नौवाँ शेर मोह्ब्बत की इम्तिहाँ है………
आशिकी ने क्या क्या बना दिया
कभी साहिल तो कभी खुदा बना दिया
आज तो मोहब्बत के सारे रंग उँडेल दिये हैं गज़ल मे…………॥शेर कापी नही हो रहे थे इसलिये इस तरह लिखा है।
बहुत ही खूबसूरत तोहफ़ा दिया दिवाली का आपने अपने चाहने वालो को इस गज़ल के रूप में .
ReplyDeleteहर शेर लाजबाब है
बहुत सुंदर गजल अर्श भाई,
ReplyDeleteआप को दिपावली की शुभकामनायें
प्रकाश जी, तग़ज़्ज़ुल के रंग में डूबी ये ग़ज़ल बहुत अच्छी है.
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं.
सराहनीय लेखन........
ReplyDelete+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपको, सदा ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
लाजवाब।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteसबसे अच्छी पंक्तियाँ -
ReplyDeleteतौबा वो तेरी भूल से कल जुगनुओं में खौफ था
तू जिस तरह से चाँद को जुल्फों में ढक कर सो गयी
लेकिन आखिर के दो शेरों में बहर की कमी थी . शायद कोई शब्द छूट गया लगता है .
ग़ज़ल बहुत सुन्दर !
आहों में तुम, सांसों में तुम , नींदों में तुम,ख़्वाबों में तुम ,
ReplyDeleteकैसे रहूँ तेरे बिना तू ही बता ऐ ज़िंदगी !!
तौबा वो तेरी भूल से कल जुगनुओं में खौफ था ,
तू जिस तरह से चाँद को जुल्फों में ढक कर सो गई !!
अर्श भाई ये दो शेर जितनी बार पाढता हूं बस लाजवाब हो जाता हूं
prakaash ji .... dubaara padh कर और bhi jyaada आनंद आ रहा है .... muhabbat के rang nazar आ रहे हैं .... ab तो raaz khol ही den .....
ReplyDeletekhoobsoorat rachna!
ReplyDeleteलो बेटा गया काम से। आगे निशब्द हूँ। फिर आती हूँ जरा मन को ढाढस बन्धा लूँ और गाजे बाजे की तैयारी कर लूँ। आशीर्वाद।
ReplyDeleteखूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
तौबा वो तेरी भूल से कल जुगनुओं में खौफ था ,
ReplyDeleteतू जिस तरह से चाँद को जुल्फों में ढक कर सो गई !!
क्या बात है! इस शेर में नया ख्याल मिला.
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'कैसे कहूँ ..'शेर में अनकही कही गयी..बहुत खूब!
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बहुत अच्छी लगी यह ग़ज़ल..
khubsurat gajal har sher men jan hai mubarak ho
ReplyDelete"कैसे कहूँ इस प्यास का रिश्ता नहीं तुझ से भला...."
ReplyDeleteवाह-वा, बहुत खूबसूरत शेर है.
ये शेर भी दिल को छू गया,
"क़ाबिज हुआ चेहरा तेरा कुछ इस तरह से जह्न में,
खीचूँ लकीरें जैसी भी बन जाती हैं तस्वीर सी !!"
अच्छे शेर कहें हैं.
"क्यूँ तंग नज़रों से मुझे.........." में बारहां को टाइप करने में शायद टंकण त्रुटी हुई है.
बहुत ही अच्छी गज़ल हैं.
ReplyDeleteमैं तो तरही में ही इस गज़ल का फैन हो गया था.
बहुत सुंदर अशआर हैं.
umda!
ReplyDeleteगज़ल का हर शेर एक अलग अंदाज से ..बहुत खूब...
ReplyDeleteaakhiri sher me kya bimb diya hai aapne ! bhut jivant ! jaise chhmmm ki aawaj sunai deti ho .wah !
ReplyDeletebahut achchi lagi.
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ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ,अच्छी रचना , बधाई ......
ReplyDeleteपहली बार आपका ब्लॉग देखा , दिल खुश हो गया |
ReplyDeleteबहुत अच्छी गजल है
zadid shayiri ke prakash hain aap..............bahut khubsurat ghazal............hamen bhi ilm-e-aruz batayenge?
ReplyDeleteअहों मे तुम साँसों मे तुम ----- वाह वाह क्या बात है बेटा हमे तो बताया ही नही । चलो अब करें बाजे का इन्तजाम?
ReplyDeleteकैसे कहूँ इस प्यास का -------- लाजवाब शेर
वो चाह कर भी रोक ------ कमाल कमाल कमाल
वैसे तो हर शेर ही दाद के काबिल है मगर उपरोक्त शेर बहुत ही अच्छे लगे। तुम गज़ल के बादशाह हो। आशीर्वाद।
अर्श साहब गज़ल का हर शेर खूबसूरत है.
ReplyDeleteअक्सर किसी की याद में जाने को जब होती है जान..
ReplyDeleteफिर किसी की चाह में नादान रुक जाती है जान..
बहुत सुन्दर लिखा है आपने अर्श भाई..::))
bahut sunder gazal haa mazza aa gaya padh kar....
ReplyDeleteतौबा ये तेरी भूल से कल जुगनुओं में खौफ था..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आप की गजल व् अन्य रचनाएँ क्षणिकायें बहुत सुन्दर बन पड़ी हैं
बधाई हो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
बहुत ही अच्छी गज़ल हैं....दिल खुश हो गया |
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