नमस्कार आप सभी को , देरी के लिए मुआफी भी चाहूँगा ! कुछ ऐसी मसरूफियत जिसकी कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती ! और इसी वजह से ग़ज़ल को आप सभी तक लाने में देर हुई ! चलिए एक पुरानी ग़ज़ल आप सभी को सुनाता हूँ ! बह'र वही खफिफ़ .......इधर हाल ही में सीहोर जाना हुआ और पूरे गुरुकुल का जमावड़ा रहा ! बहुत मज़ा आया ! अगली बार फिर से एक नई ग़ज़ल के साथ हाज़िर होने के वादे के साथ ...
उम्र का ये पड़ाव कैसा है !
ख्वाहिशों का अलाव कैसा है !!
हसरतें टूट कर बिखर जाये ,
काइदों का दबाव कैसा है !!
जो कभी सूख ही नहीं पाता,
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!
मैं उलझ कर फंसा रहा जिनमें,
इन लटों का घुमाव कैसा है !!
जिसको देखो बहा ही जाता है,
इस नदी का बहाव कैसा है!!
बेमज़ा जिंदगी है इसके बिन,
तेरे ग़म से लगाव कैसा है!!
कर चुके दफ़्न अर्श ख्वाबों को
फिर ये जीने का चाव कैसा है!!
अर्श
वाह - वा !
ReplyDeleteवाह - वा !!
हुज़ूर ,,,, माना क आप बहुत बहुत देर से तशरीफ़ लाये
लेकिन ऐसा आना ......... सुब्हान अल्लाह !!
क्या खूब अश`आर कहे हैं जनाब
उम्र का ये पड़ाव कैसा है
ख्वाहिशों का अलाव कैसा है
मतला,,, अपनी बात बखूबी कह पा रहा है
और
मैं उलझ कर फँसा रहा जिसमे
उन लटों का घुमाव कैसा है
ये घुमाव का इस्तेमाल तो वाक़ई सभी पढने वालों को
अपने तिलिस्म में फँसा ही रक्खेगा ...
बाक़ी सभी शेर भी
बार बार ,,, बार बार
पढने को मन करता है ...
बहुत बहुत बहुत मुबारकबाद कुबूल फरमाएं .
"दानिश"
लाजवाब ग़ज़ल।
ReplyDeleteKya gazab gazal kahee hai!Baar baar padhee!
ReplyDeleteहसरतें टूटकर बिखर जाएं
ReplyDeleteकायदों का दबाव कैसा है
अर्श जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है. मुबारकबाद कबूल फ़रमाएं.
जो कभी सूख ही नहीं पाता
ReplyDeleteये मेरे दिल पे घाव कैसा है
बहुत ख़ूबसूरत !
वाह !
मक़ता भी अच्छा है
उम्र का ये पड़ाव अच्छा है
ReplyDeleteखाहिशों का अलाव अच्छा है
:):):)
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आकार आपके विषय में जाना ..बहुत अच्छा लगा .....आशा है अब आपकी रचनाएँ अब पढने को मिला करेंगी .....प्रस्तुत गजल में आपने जीवन के विविध सन्दर्भों को बखूबी अभिव्यक्त किया है .....आपका आभार
ReplyDeletebadiya gazal bhai......aapne subeer ji nirdeshan me khoob pakad banai hai...aapko badhai..subeer ji ko sadhuwaad...
ReplyDeletebehatarin nagmon ki numayas ,pratirakshan ki gunjais nahin .utkrist najm . sadhuvad ji singh
ReplyDeletesahab.
waah
ReplyDeletewaah
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteअच्छी गजल ,बधाई
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल है अर्श जी ! हर शेर लाजवाब है ! आज आपके ब्लॉग पर आना बहुत सुखद अनुभव रहा ! इतनी सुन्दर रचना के लिये मेरी बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteBahut khoob bhaiya... Kaafi lambe samay baad kuch padhne ko mila aapke blog par :) Superb! :)
ReplyDeleteअर्श जी
ReplyDeleteकौन से शेर की तारीफ़ करूँ और कौन से शेर को छोडूँ?
क्या गज़ल लिखी है हर शेर ना जाने कौन सी दुनिया मे ले जाता है……………शानदार्।
बहुत ही बढ़िया गज़ल है. मतला तो बहुत ही ज़ोरदार है. सभी अशआर बहुत खूब कहे हैं. "काइदों को दवाब", "लटों का घुमाव" और "बहाव" वाले शेर खास तौर पर पसंद आये.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गज़ल!.....
ReplyDeleteक्या बात है भाई बहुत ही अच्छा लगा पड़कर क्या composition है ......
ReplyDeleteअक्षय-मन
देर आयद दुरस्त आयद
ReplyDeleteaapki gazal itni saadgi liye umda hai ki lagta hai jaise har koi gazel likh le. lekin itna aasan to nahi...ye me janti hun. bahut acchhi gazal ke liye badhayi.
ReplyDeleteदिनो बाद आए हो और छा गए बरखुदार...!
ReplyDeleteमतले ने तो जान निकाल दी| बहुत खूब....और कायदों का दवाब वाला मिसरा तो कसम से जानलेवा है|
बहुत सुंदर ग़ज़ल बुनी है अर्श| बधाइया....
arsh ji ...jabardast dastak detey hai aap...lajwaab soch..kamaal ki ghazal!
ReplyDeleteजिसको देखो बहा ही जाता है,
ReplyDeleteइस नदी का बहाव कैसा है!!
बेमज़ा जिंदगी है इसके बिन,
तेरे ग़म से लगाव कैसा है!!
वाह!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
चलो देर आये दुरुस्त आये। जब देर से आते हो तो समझ जाती हूँ कि कुछ खास ले कर ही आये होगे। मेरे लिये तो ये नै गज़ल ही है---- तुम्हारे शेर पर कुछ कहूँेअभी इस काबिल तो नही लेकिन तुम जो भी लिखते हो मेरे दिल को छूता है। आज कल तो और भी गज़ब का लिख रहे हो।
ReplyDeleteकुछ शेरों पर दाद दिये बिना भी रहा नही जा रहा---
हसरतें टूटकर बिखर जाएं
कायदों का दबाव कैसा है
जो कभी सूख ही नहीं पाता
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है
कर चुके दफ्न अर्श ख्वाबों को----
ये शेर तो सब से अच्छा लगा जीने का चाव तो इन्सां मे होना ही चाहिये। खूब लिखो खूब जीओ यही आशीर्वाद है।
पंकज भाई के चहेते शिष्य से ऐसी ग़ज़ल की ही उम्मीद रहती है
ReplyDeleteAhem Ahem :-)
ReplyDeleteलटे अच्छी लगी हमें तो.. बहुत खूब
ReplyDeletebahut badhiya ghazal kahi hai... saare sher badhiya lage.
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल.
ReplyDeleteमैं इसे अपने ब्लॉग पर डालना चाहता हूँ.
उम्मीद है इजाज़त मिलेगी :)
जो कभी सूख ही नही पाता ...
ReplyDeleteवाह प्रकाश जी ... क्या कमाल किया है आपने तो इस ग़ज़ल में ... हाथ चूमने को दिल करता है ... सुभान अल्ला ...
उम्र का ये पड़ाव कैसा है
ReplyDeleteख्वाहिशों का अलाव कैसा है
-बहुत खूबसूरत शेर.
ग़ज़ल भी अच्छी लगी मगर
इस में इतनी मायूसी क्यों है?
wah bhaiya aapki itni achi Gajal ko padh yeh ahsas hota hai ki ................ aapne sachmuch
ReplyDeletekitni gahrayi se ye Gajal likhe hai, You deserve 5 out 5. I feel proud Bhaiya
वाकई बहुत बढिया
ReplyDeleteबहुत शानदार लिखा आपने...
ReplyDeletenice post...
वाह!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
देर से आये मगर इत्मिनान से एक एक शेर घूँट घूँट पिआ...भरपूर आनन्द आया.
ReplyDeleteवाह, शानदार गज़ल, प्रकाश!! बधाई.
हसरतें टूटकर बिखर जाएं
ReplyDeleteकायदों का दबाव कैसा है
जो कभी सूख ही नहीं पाता
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है
.....दिल का हाल सुने दिल वाला. बेहतरीन ग़ज़ल है.
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ReplyDeleteअधिक जानकारी के लिए पढ़ें:
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बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है... एक एक शे'र लाजवाब है ...
ReplyDeleteबहुत बधायी ...
sabhi ek se badhkar ek.....
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत
ReplyDeleteआपकी गज़ल पढ़ कर आनंद आ गया| बधाई हो...|
ReplyDeleteअचानक एक शेर आपकी बहर पे आ गया...... .................................................
"डंडा" का दंडवत प्रणाम उसे,
यूँ अदब में झुकाव कैसा है ||
बहुत सुन्दर गजल
ReplyDeleteआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
अगर आपको love everbody का यह प्रयास पसंद आया हो, तो कृपया फॉलोअर बन कर हमारा उत्साह अवश्य बढ़ाएँ।
mari aak request hai ki aap ka vject niche rake taki likne vale ki subedha ho
thanks
बेहतरीन पोस्ट आभार.
ReplyDeleteबेहतरीन अभिवयक्ति जिन्दगी जीने की....
ReplyDeleteअर्श भाई
ReplyDeleteअब फिर से ब्लॉग्गिंग शुरू कर रहा हूँ ,... तो बस आपको फोल्लो कर रहा हूँ .. गज़ल तो लिखना नहीं आता , लेकिन आप जैसे गज़लकारो के फन का मुरीद हूँ ..
जो कभी सूख ही नहीं पाता
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है
इसके बाद तो कुछ कहने को बाकी नहीं रह जाता है ... सलाम कबुल करे.
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
It's great stuff. I enjoyed to read this blog.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , खूबसूरत प्रस्तुति .
ReplyDeleteस्वतन्त्रता दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें
I like your excellent lyrics. each and every day your blog having some interesting topic. It's great stuff.
ReplyDeleteSuperb lines and really i inspired from this write up, I really appreciate your work here.
ReplyDeleteachha hai...
ReplyDeletedil ko choo lene wali panktiyan likhi hai aapne.
ReplyDeletemaine bhi haal hi main deshbhakti poorn ek kavita likhi hai samay mile to awashya padhare.
http://meriparwaz.blogspot.com/2011/08/blog-post_18.html
जंग में ना जा सको तो जाने वालों को आधार दो
नारे ना लगा सको समर में तो कम से कम शब्दों को तलवार दो
और कुछ ना कर सको तो , क्रांति को विस्तार दो
इस बार कम से कम अपने अन्दर के कायर को मार दो.
बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भाव , आभार
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
Nice Blog
ReplyDeleteYour Blog is Really Very Inspiring
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I Like This Very Much.......