Thursday, March 8, 2012

मैं लम्हा हूँ कि अर्सा हूँ कि मुद्दत

होली की सभी को बहुत शुभकामनाएँ ! और इसी के साथ आईए सुनते हैं एक नई ग़ज़ल !


बडी हसरत से सोचे जा रहा हूँ
तुम्हारे वास्ते क्या क्या रहा हूँ

वो जितनी बार चाहा पास आया
मैं उसके वास्ते कोठा रहा हूँ

कबूतर देख कर सबने उछाला
भरी मुठ्ठी का मैं दाना रहा हूँ

मैं लम्हा हूँ कि अर्सा हूँ कि मुद्दत
न जाने क्या हूँ बीता जा रहा हूँ

मैं हूँ तहरीर बच्चों की तभी तो
दरो-दीवार से मिटता रहा हूँ

सभी रिश्ते महज़ क़िरदार से हैं
इन्ही सांचो मे ढलता जा रहा हूँ

जहां हर सिम्‍त रेगिस्‍तान है अब
वहां मैं कल तलक दरिया रहा हूँ

अर्श

26 comments:

  1. बहुत बहुत खुबसूरत ग़ज़ल .... हर पंक्ति दिल को छूती है....

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  2. बहुत उम्दा ग़ज़ल है अर्श भाई

    सभी रिश्ते महज़ क़िरदार से हैं
    इन्ही सांचो मे ढलता जा रहा हूँ

    जहां हर सिम्‍त रेगिस्‍तान है अब
    वहां मैं कल तलक दरिया रहा हूँ

    वाह वाह वाह

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  3. वाह ... प्रकाश जी लाजवाब ... मज़ा आ गया इतने दिनों के बाद पढ़ के आपको ... हमारे न सही चलो किसी के कहने का कुछ असर तो जरूर हुवा होगा ... और होना भी चाहिए ... हा हा ...

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  4. ar sheir lajawab!!ek mukammal gazal!!dili-daad Arsh sahab!!..:)

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  5. पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

    इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कबूल करें.

    नीरज

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  6. बहुत सुन्दर , सार्थक सृजन.

    कृपया मेरे ब्लॉग meri kavitayen पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा .

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  7. बहुत खूबसूरत गज़ल...
    दाद कबूल करें.
    सादर.

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  8. प्रिय अर्श जी
    क्या बढ़िया ग़ज़ल लिखी है..... सारे शेर नगीने हैं..... !
    पर यह दो शेर लाजवाब और पुरनूर है_____

    कबूतर देख कर सबने उछाला

    भरी मुठ्ठी का मैं दाना रहा हूँ

    मैं लम्हा हूँ कि अर्सा हूँ कि मुद्दत

    न जाने क्या हूँ बीता जा रहा हूँ
    क्या सच्चा शेर कहे हैं ..... वाह वाह !!!!

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  9. सुंदर शायरी ...
    शुभकामनायें ...!!

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  10. बहुत सुन्दर, बधाई.
    कृपया मेरे ब्लॉग "meri kavitayen"पर भी पधारने का कष्ट करें, आभारी होऊंगा.

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  11. शादी के बाद घूमने के लिए खोपोली से अगर कोई दूसरी बेहतर जगह बताये तो उसकी बात मत मानना...बस चले आना ...जुलाई अंत से सितम्बर के बीच कभी भी...

    नीरज

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  12. bahut sundar gazal likhi hai aapne.. aanand aa gaya.

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  13. वाह प्रकाश जी
    बहुत ही सुंदर ,,,,, लाजवाब !
    बधाई !

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  14. वाह प्रकाश जी
    बहुत ही सुंदर ,,,,, लाजवाब !
    बधाई !

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  15. बढ़िया, एक खूब्सूरल गज़ल...

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  16. बहुत सुन्दर , बधाई स्वीकारें.
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें, आभारी होऊंगा .

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  17. वाह बहुत सुन्दर भाव पूर्ण ..शुभ कामनाएं प्रकाश जी .....

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  20. वो जितनी बार चाहा पास आया
    मैं उसके वास्ते कोठा रहा हूँ

    कबूतर देख कर सबने उछाला
    भरी मुठ्ठी का मैं दाना रहा हूँ

    बहुत ही उम्दा गज़ल,हर शेर लाजवाब हैं ।

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