लफ्ज़ पर चली तरही पर एक ग़ज़ल मेरी भी हुई थी , आइये उसी को सुनते हैं !
ये पीपल हो गया पागल ख़ुशी से
कि बगुले लौट आये नौकरी से
कि बगुले लौट आये नौकरी से
सफ़र पर आज भी मैं इक सदी से
गुज़रता जा रहा हूँ ख़ामुशी से
गुज़रता जा रहा हूँ ख़ामुशी से
मेरे क़िरदार में है रात होना
मुहब्बत कैसे कर लूँ रौशनी से
मुहब्बत कैसे कर लूँ रौशनी से
ख़ुदा क़ुर’आन की इन आयतो को
हक़ीक़त कर दे अब तो कागज़ी से
हक़ीक़त कर दे अब तो कागज़ी से
मेरे भीतर ही इतने मस’अले हैं,
शिक़ायत क्या करूँ मैं ज़िंदगी से
शिक़ायत क्या करूँ मैं ज़िंदगी से
ये सूरज डूब कर जाता कहाँ है
चलो हम पूछ लें सूरजमुखी से
चलो हम पूछ लें सूरजमुखी से
तुला हूँ नींद अपनी बेचने पर ,
मेरे जब ख़ाब निकले मामुली से
मेरे जब ख़ाब निकले मामुली से
तबाही का वो मंज़र है अभी तक ,
कभी गुज़रे नहीं क्या उस गली से
कभी गुज़रे नहीं क्या उस गली से
मेरे इस राज़ को रखो दबा कर
कि तुमको चाहता हूँ बेरुख़ी से
कि तुमको चाहता हूँ बेरुख़ी से
सज़ा में ख़ुदकुशी बरतो मुझे अब
मैं उकताया वकीली पैरवी से
मैं उकताया वकीली पैरवी से
रवायत की गली वाली तुम्हारी
“मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से
“मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से
अर्श
बहुत खूब कही है ग़ज़ल.काबिलेतारीफ!
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया अल्पना जी , ग़ज़ल को पसंद करने के लिए !
ReplyDeleteवाह ... अर्श जी ... मज़ा आ गया इस गज़ल का ... अरसे बाद आप आए तो साथ में ये गज़ल की खुशबू भी आई ...
ReplyDeletebahut lambe arse ke baad aapki kalam padhkar achcha laga ....khub surat gazal ...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर पहली बार आया,बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखा आपने ,बधाई !
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post'वनफूल'
उम्दा शायरी एक बेहतरीन गजल
ReplyDeleteVERY NICE
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...शुभकामनायें
ReplyDeleteShukriya sabhi ka
ReplyDelete