Wednesday, July 30, 2008

जिंदगी तुझसे कोई वादा....

जिन्दगी तुझसे कोई वादा निभाना तो नही था ,
मौत आई है, खड़ी है, कोई किस्सा सुनना तो नही था ॥
लम्हों की जागीर लुटाकर हम चल दिए ,
इस दीवाने को दिल से कभी लगाना तो नही था ॥
तू फकत मुझसे मिली होती तो कोई और बात थी ,
मौत को साथ लिए मुझसे मिलाना तो नही था ॥
तमाम शहर आज इक शक्श के जनाजे में गया था ,
ख़बर ये है के वो शक्श मुझसा दीवाना तो नही था ॥
फलक के पार कोई और शहर बसती है "अर्श "
उस इक शहर का खवाब मुझे दिखाना तो नही था॥
प्रकाश "अर्श"
३०/०७/२००८

2 comments:

  1. जिन्दगी तुझसे कोई वादा निभाना तो नही था ,
    मौत आई है, खड़ी है, कोई किस्सा सुनना तो नही था
    " very tocuhing and beautiful"
    जिन्दगी की बेवफाई पर और अब दिल को रुलाना तो नही था,
    मौत का तो फकत एक बहाना था,अब जहाँ मे हमारा कोई ठीकाना तो नही था....
    Regards

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  2. अर्श जी !आपका बयां तो बहुत अच्छा है , पर और भी अच्छा होता यदि आपग़ज़ल के मीटर पर भी ध्यान केंद्रित करते !वज़न के लिहाज़ से ग़ज़ल कहीं कहीं unbalanced लगती है ,लेकिन आपसे उम्मीद है सफर जारी रखें !

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