Tuesday, April 14, 2009

मेरे सिरहाने उड़नतस्तरी ...

हर सुबह की तरह आज की सुबह नही थी अगर ऐसा कहूँ तो कोई आश्चर्य की बात ना होगी.हालाकि सुबह तो आज भी हुई थी हर रोज अपने माता पिता को नमन कर बिस्तर त्यागता था मगर आज बिस्तर त्याग ही नही पाया कारण ये था के जैसे ही मेरी आँख खुली मेरे सिरहाने एक कुरियर था ,उन्धियाते आंख से देखा तो मेरे नाम से ही था मगर निचे छोटे अक्षरों में एक नाम था जो ब्लॉग जगत में उड़नतस्तरी के नाम से हर ओर जगमाता रहता है और वो नाम था प्रसिद्ध ब्य्न्ग्कार हास्य लेखक और मेरे बड़े भाई श्री समीर लाल जी का।

घोर आश्चर्य प्रफूलित और अपने आप पे गर्व महसूस कर रहा था मैं दिल ही दिल उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दे रहा था । और एक और सुबह जो जिंदगी में कभी ना भूल पाने वाली हो गई क्युनके मैं हमेशा कहता हूँ के हर दिन नही भूल पाने वाला दिन हो ये मुमकिन नही होता।और ये आज का दिन बड़े भाई के नाम कर दिया मैंने भी . हो सकता है इस पुस्तक को सबसे पहले पाने वाला शायद मैं बन गया जैसी की मेरी दिली खाहिश थी।
बस बिस्तर पे बैठे बैठे ही इस पुस्तक को पढ़ना शुरू कर दिया,जितने दिल के धनी वो है उसके क्या कहने पुस्तक को समर्पित किया है आपने माँ को मैं ये सवाल करता हूँ उनसे के ये सभी माये देखने में एक जैसी क्यूँ होती है ?
मैंने कभी उन्हें देखा नही मगर मेरा नमन है उनको।
माँ के तस्वीर के निचे बिखरे हुए पाँच मोती है क्रमशः गीत ,छंद मुक्तक कविताएं ,ग़ज़ल, मुक्तक और फ़िर क्षणिकाएं क्रमागत रूप से जैसे पुरी तरीके से माँ को समर्पित। इस भावविशेष पे उन्हें बधाई ॥
मैं पांचो को थोड़ा थोड़ा करके बताऊंगा ...
कल तक लोग सामील लाल जी के हास्य स्वरुप को देखा होगा और ख़ुद मैं भी उनके इसी स्वरुप से परिचित था मगर वो इस तरह के गंभीर विषय पे लिख सकते है या ये गंभीर स्वरुप भी उनका है ये समझ नही पाया था !!! चलिए मिलते है उनके कई स्वरुप से ..
गीत :- अपनी माता जी को समर्पित इस गीत के बारे में क्या कहने
सूरज क्यूँ इतना तपता है
मेरा अंग अंग जलता है
पहले सा सूरज लगता है
पर कितनी तेज चमकता है
मेरी चाट जाने कहाँ गई
छाँव पाने को दिल मचलता है
माँ ! तू जबसे दूजे जहाँ गई
ये घर बिन चाट का लगता है
माँ के बारे में इतनी गंभीर बात अगर कोई लिख सकता है तो उसके बारे में हास्य की अवधारण सिरे से खारिज हो जाती है स्वतः ही । बस ये कहूँ के मशहूर शईर जनाब मुनव्वर राणा साहिब के बाद समीर जी को ही पढा इस तरह से माँ पेइस कविता के लिए उनके लेखनी को सलाम

छंद मुक्तक कवितायें :- जरा इस गहरी और अप्रतिम सोच को पढ़े और कहें की क्या ये समीर लाल जी ने ही लिखी है ??? तो मैं कहता हूँ जरा मजाकिए किस्म के इंसान के इस गहरी सोच का क्या कोई अंदाजा लगा पायेगा। जो आपनी सरल भाषा शैली जो मूलतः बोल चाल के लिए इस्तेमाल किया जाता है मानस पटल पे इतनी गहरी छाप छोडेगी ...... ।
१. दालान से नीचे उतरती
दो सीढियों के
सिल के बीच से
उग आई
कहती है मुझसे
हमें अपनी स्पेस
बनाना आता है
मुझे अवाक देख
दीवार पर लगी काई
मेरी पतनशील सोच को
मुंह चिढा रही है...

२ साहिल पे बैठा
वो जो डूबने से बचने की
सलाह देता है
उसे तैरना नही आता
वरना
बचा सकता था ...

धन्य हुआ मैं तो इस तरह पे सोच को पढ़ के कमाल कर दिया है समीर लाल जी ने॥
अब चलते है ग़ज़ल की ओर जो मेरा सबसे पसंदीदा साहित्यिक भाग है या ये कहूँ के मेरे रगों में बसी है तो ग़लत ना होगा मगर इस पहचानने वाले मेरे गूरू श्री पंकज सुबीर जी है तो इसे निरंतर निखारने में लगे है ॥मगर अभी बात करते है समीर लाल जी के ग़ज़ल लेखन की.........
ग़ज़ल:-
देखता हूँ बैठ कर मैं इस चिता पर कब्रगाह
छोड़ दो इस बात को,ये मजहबी हो जायेगी
समाज में धर्म के नाम पर जो दंगे फसाद हो रहे है और जो आतंक देखने में आ रहा है क्या ये शे'र मुकम्मल तरीके से प्रर्दशित नही कर रहा है इस शेर पे आज के जाने माने ग़ज़लों में खासा दखलंदाजी रखने वाले डाक्टर कुवंर बेचैन साहिब ने उनकी पीठ थपथपाई है, किसके मुंह से इस शे'र पे वाह वाह नही निकलेगी... ये इंसान इंतनी गहरी बात को इतनी आसानी से लिख लेगा हतप्रभ हूँ मगर कोई शक नही॥

एक और शे'र लिखने से अपने आपको रोक ना सका॥

फ़ैल कर के सो सकूँ इतनी जगह मिलती नही
ठण्ड का बस नाम लेकर,मैं सिकुड़ता रह गया
क्या ये शे'र गहरे भावबोध का परिचय नही करा रही है मानसपटल पर...

और छोटे बहर के ये दो शे'र ....

मौत से दिल्लगी हो गई
ज़िन्दगी अजनबी हो गई

साँस गिरवी है हर इक घड़ी
कैसी ये बेबसी हो गई ॥

जैसा की मेरे गूरू देव कहते है के छोटे बहर पे लिखना जितना आसान दीखता है उतना होता नही क्युनके आपको कम शब्द में पुरा का पुरा कथ्य को सम्पूर्ण करना होता है ,इस बात पे समीर जी के क्या कहने छोटी बहर के उस्ताद शाईर ....

मुक्तक:-
सिर्फ़ एक मुक्तक ने मेरा दिल लूट लिया .....
नज़र पड़ती है धरती पर,वहाँ तारे भी रोते है
असर है खौफ का ऐसा खुली आँखों ही सोते है
सजगा जब तलक होगी,ज़रा हम चैन पा लेंगे
अधिकतर चुक के किस्से,बड़े शहरों में होते है॥

कितने खुले विचार को शब्द बोध में बाँध कर के रखा है समीर लाल जी ने ॥

क्षणिकाएं:-
एक गरीब और बेचारी मान को देखिये कैसे बच्चे को जीना सिखाती है...

रोटी के लिए
बच्चे की जिद
और वो बेबस लाचार माँ
उसे मारती है,
वो जानती है भूख का दर्द
मार के दर्द में
कहीं खो जायेगा
कुछ देर को ही सही
बच्चा रोते रोते
सो जायेगा
एक और समसामयीक पे क्षणिका इसके बाद आपको भी पता लग जायेगा के समीर लाल जी कितने ठोस ब्यंग्कार है ...

ऊँचे अंक लाने के बाद भी
वो प्रतिक्षा सूचि में
खडा है...
आरक्षण का तमाचा
सीधा उसके गाल पर
पडा है....

देखिये इस लेख और रचना को कितनी गंभीरता लिए हुए है ...

बस यही कहूँगा के कौन कहता है के ये बिखरे मोती है, मैं तो कहता हूँ के ये तो मोतिओं से भरी हुई और सजी हुई माला है जिसके सारे के सारे मोतियाँ मुकम्मल है...आख़िर में मैं समीर लाल जी और अपने बड़े भाई को दिल इस पुस्तक के लिए दिल से बधाई और ढेरो शुभकामनाएं देता हूँ और इसकी असीम सफलता की कामनाएं करता हूँ... साथ में शिवना प्रकाशन का भी आभार....

पुस्तक प्राप्ति :-
मूल्य मात्र रु २००/-
प्रकाशक; शिवना प्रकाशन
पी सी लैब,सम्राट काम्प्लेक्स बेसमेंट
बस स्टैंड के सामने, सीहोर,
मध्यप्रदेश ४६६००१ भारत ॥
दूरभाष: ९१-९९७७८५५३९९

प्रकाश"अर्श"
१४/०४/२००९

33 comments:

  1. बधाई हो अर्श जी किताब प्राप्ति पर...आपने जिन रचनाओं के अंश यहाँ प्रकाशित किये हैं वो काफी हैं ये बताने को की इस किताब में अनमोल मोती हैं...जिन्हें पंकज जी ने प्रकाशित कर बिखरने से बचा लिया है...समीर जी की लेखनी के तो हम कायल हैं...उनकी पुस्तक मंगवाने में अब देरी नहीं है...
    नीरज

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  2. हम अपने कुरियर का इंतज़ार कर रहे है भाई .....

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  3. आपने तो पूरी किताब को बहुत ही सहज रूप से उसके हर पहलू से मिलवा दिया ..............
    अब तो बेताबी से इंतज़ार रहेगा किताब का

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  4. अर्श , भाई आपने रू-ब-रू करा दिया समीर जी की पुस्तक से ।

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  5. आपने पुस्तक पढ़कर
    बढ़िया खासी समीक्षा कर डाली . बधाई. अर्श जी

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  6. हर सुबह की तरह आज की सुबह नही थी अगर ऐसा कहूँ तो कोई आश्चर्य की बात ना होगी.हालाकि सुबह तो आज भी हुई थी हर रोज अपने माता पिता को नमन कर बिस्तर त्यागता था मगर आज बिस्तर त्याग ही नही पाया कारण ये था के जैसे ही मेरी आँख खुली मेरे सिरहाने एक कुरियर था ,उन्धियाते आंख से देखा तो मेरे नाम से ही था मगर निचे छोटे अक्षरों में एक नाम था जो ब्लॉग जगत में उड़नतस्तरी के नाम से हर ओर जगमाता रहता है और वो नाम था प्रसिद्ध ब्य्न्ग्कार हास्य लेखक और मेरे बड़े भाई श्री समीर लाल जी का।

    घोर आश्चर्य प्रफूलित और अपने आप पे गर्व महसूस कर रहा था मैं दिल ही दिल उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दे रहा था । और एक और सुबह जो जिंदगी में कभी ना भूल पाने वाली हो गई क्युनके मैं हमेशा कहता हूँ के हर दिन नही भूल पाने वाला दिन हो ये मुमकिन नही होता।और ये आज का दिन बड़े भाई के नाम कर दिया मैंने भी . हो सकता है इस पुस्तक को सबसे पहले पाने वाला शायद मैं बन गया जैसी की मेरी दिली खाहिश थी।
    बस बिस्तर पे बैठे बैठे ही इस पुस्तक को पढ़ना शुरू कर दिया,जितने दिल के धनी वो है उसके क्या कहने पुस्तक को समर्पित किया है आपने माँ को मैं ये सवाल करता हूँ उनसे के ये सभी माये देखने में एक जैसी क्यूँ होती है ?
    मैंने कभी उन्हें देखा नही मगर मेरा नमन है उनको।
    माँ के तस्वीर के निचे बिखरे हुए पाँच मोती है क्रमशः गीत ,छंद मुक्तक कविताएं ,ग़ज़ल, मुक्तक और फ़िर क्षणिकाएं क्रमागत रूप से जैसे पुरी तरीके से माँ को समर्पित। इस भावविशेष पे उन्हें बधाई ॥
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    KYA VAAKAI AAPKA BLOG SURAKSHIT HAI?
    ISE ANYATHA NA LIJIYEGA, JISE KUCHH BHI CHURANA HAI WO TO CHURA HI LEGA. AAP NAAHAK HI PARESHAN HO RAHE HAIN.
    KITAB SE PARICHAY KARAANE KE LIYE AABHAR.

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  7. आपने तो पढ़ते ही अच्छी समीक्षा कर डाली .मैं भी इन्तजार कर रही हूँ किताब का .कल संदेसा आया था कि किताब चल पड़ी है उड़नतश्तरी जी ki तरफ से :)

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  8. Itni achhi kitaab ke liye aapko aur aapke bhai ko badhai..... sach me bahut gehrai hai har rachna me.....
    Dekhta hu baithkar main is chita par kabragah
    Chhod do is baat ko ye majhabi ho jaayegi...
    Bahut Ache...!


    Mere blog pe aapke comment ke hawaale me...
    Jab ache nahi to badhai kyun....???

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  9. waah badhaayee ho!
    bahut hi achchee samiksha bhi kar di aap ne..
    bahut achchee lagin unki sabhi rachnayen..jo bhi aap ne yahan prastut kin.
    abhaar.

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  10. bahut sahi . aap to kismat ke dhani nikale .. badhai ho ..

    unki rachnaayen padhkar acchi si anubhooti hui ..

    meri shubkaamnayen unke liye ..

    aapka

    vijay

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  11. समीर जी की लेखनी में दम है, यह पहले ही पता था अब यह तथ्य और पुख्ता हो गया.

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  12. अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की है अर्श भाई!

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  13. @कुमारेन्द्र सिंह जी,

    आपने सही फरमाया, जो चुराने के इरादे से ही आयेगा, उसको कौन रोक सकता है। सब से आसान चीज़ तो आप ये देखिये, वो टाइप तो कर ही सकता है, देख देख कर
    बाकी, अर्श ने सही किया है, कम से कम कुछ लोगों को तो रोका जा सकेगा। क्योंकि चोर इतनी मशक्कत नहीं करते कापी करने के लिये।

    नये नये, खिलाड़ी तो देखते हैं, कि नहीं हो रहा कापी, चलो छोड़ो

    अर्श भाई,
    सच में बहुत ही बढ़िया किताब लग रही है। बधाई स्वीकारें

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  14. शुक्रिया अर्श भाई....मैं तो बहुत पिछड़ गया हूँ इस मामले में....कमबखत ऐसी जगह बैठा हूँ कि
    लेकिन आपका दिल से शुक्रिया कि कुछ झलकें दिखला दीं आपने "बिखरे मोती’ के

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  15. ... बेहद खूबसूरत शेर, प्रभावशाली अभिव्यक्ति.... दिल को छू लिया !!!!!!!!

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  16. वाह अर्शजी आप तो बहुत अच्छे समी्क्षक भी हैं आपके लेख ने किताब पडने की उत्सुकता बडा दी है बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है सभी रचनाओं की धन्यवाद्

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  17. शायर अर्श समीक्षक भी बन गए . बल्लाह

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  18. तक़दीर वालो हो भैया।बधाई हो।

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  19. बिखरे मोती से परिचय पाकर अच्छा लगा।
    ----------
    तस्‍लीम
    साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

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  20. आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !

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  21. 200 rupiye koi badi baat nahi hoti
    Aap chahte to ise khareed ke bhi la sakte the

    (shayad agle mahine ....ha ha)

    par yakeen maniyea, jo pustak lekhak ke hatton se prapt ho uski baat hi kuch aur hoti hai apki kya feelings rahi hongi main samajh sakta hoon....

    apke liye khush bhi hoon aur manav sulabh irshya bhi hai. ki main bhi kyun nahi ( joking...)



    on a serious note.....

    dehrron badhai....

    waise aap hain hi itne acche ki....

    ...aur haan mujhse promise kijiye ki jab apki pustak ka vimochan ho to mujhe wo kharidni na pade. :)

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  22. अर्श भाई,
    अब तो गजल ही पोस्ट करूंगा क्योकि ये श्रंखला तो मैंने समाप्त कर दी है पहले तीन भाग पोस्ट करने के लिए सोंचा था मगर फिर कुछ और अनोखे वालपेपर छुट गए इसलिए मजबूरी में चौथा भाग भी प्रकाशित किया

    आपका वीनस केसरी

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  23. ऐसी गजब समीक्षा ने तो किताब में चार चांद लगा दिये.

    काहे चिन्ता करते हो भाई..आप तक अब तक मय हस्ताक्षर भी किताब पहुंच गई होगी. :)

    बहुत आभार इस बेहतरीन समीक्षा के लिए.

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  24. छोड़ दो इस बात को ये मजहबी हो जायेगी
    वाह साहब ;वाह
    यहाँ तंज भी है और रंज भी है क्या खूब कहन है वाह वाह वाह
    तीर ऐ जुबां खामोश भी है तलवार भी है ये वाह वाह वाह

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  25. और हमारा क्या होगा उडन तश्तरी जी,......??? बल्कि दर्पण जी को ही कहना था के एक से मेरा क्या होगा,,,,,दर्पण जी को तो पता ही है के वैसे तो दो सौ रुपये कुछ नहीं होते पर हस्ताख्षर वाली प्रति.............
    :::::::::::::::)))))))))
    ,,,बेशक किताब अह्छी होगी ,,,समीक्षा से ही मालूम चल रहा है,,,,,
    यदि आपने नहीं भेजी तो अर्श भाई से मांग... या चुरा... या छीन लेंगे.....
    हा...हा...हा....हा....हा.......

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  26. अर्श जी

    किताब की समीक्षा सरल और रोचक तरीके से कर दी आपने .
    इसके लिए तो आप निस्संदेह बधाई के पात्र हैं !!

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  27. सच कहा अर्श जी
    भाई समीर हैं ही ऐसे साहित्य के बहुरंगी गुलदस्ते की तरह.
    मैंने उन्हें पढ़ा भी है सुना भी है और सानिध्य भी प्राप्त किया है.
    "बिखरे मोती" के रूप में उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें ढेरों बधाई
    साथ आपको भी इस प्रस्तुति के लिए.
    - विजय

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  28. jab padhha to padhhtaa hi rahaa...
    par apni kismat kuchh esi he ki hame poochhane vaale jyada nahi..so aksar achhi kitaabo se vanchit rah jaate he...post se koi aaye isakaa to bas sapnaa hi dekhate he.../ koi itana pyara gift hame de yaa bhai..gift naa sahi..mol se hi sahi hame bhijvaaye..esa hota nahi../hame hi khojte rahna padtaa he ki kab kounse pustak aai jise padhhnaa chahiye../// kher..sameerji ki baat hi niraali he, unke alfaaz unki kahaani kah dete he.../ marm par seedhe halchal peda karne vaale unke shabd..sach me jhakjhor deta he../ aapko bhi mubarak

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  29. शेयरों का चयन बहुत अद्भुत है। अर्श जी।

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  30. aapki smiksha swadisht vyanjno se bhri thali hai.mashallh vo rsoi kaisi hogi jha ye pkwan pkte honge .smeerji our aap , dono dono ko bhut bhut bdhai

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  31. aapki smiksha swadisht vyanjno se bhri thali hai mashaallah vo rsoi kaisi hogi jha aise ljij pkwan pkte hai smeerji our aap dono ko bhut bhut bdhai
    aasha krti hu yu hi hum pathko ko pthneey samgri se prcit krate rhenge
    dhnywad

    ReplyDelete

आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...