परम श्रधेय गूरू देव श्री पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल कुछ कहने लायक बनी है आप सभी का भी प्यार और आशीर्वाद चाहूँगा...
बहरे-हजज मुसमन सालिम (१२२२*४)
हमारे नाम से वो इस तरह मशहूर हो जाए ।
के रिश्ता जो भी जाए घर वो ना-मंजूर हो जाए ॥
हिकारत से यूँ रस्ते में मुझे जालिम ना देखा कर
मुहब्बत इस कदर ना कर कोई मगरूर हो जाए ॥
जली होंगी कई लाशें दफ़न होंगे कई किस्से
संभलना शहर फ़िर कोई ना भागलपूर हो जाए ॥
कोई शिकवा हो तो कह दे इसे ना दिल में रक्खा कर
ज़रा सा जख्म है बढ़कर न ये नासूर हो जाए ॥
जिसे भी देखिये वो बेदिली से देखता है अब
मुहब्बत करने वालों का न ये दस्तूर हो जाए ॥
वो रोती है सुबकती है अकेले घर के कोने में
कमाई के लिए बच्चा जो माँ से दूर हो जाए ॥
है पीना कुफ्र ये जो"अर्श"से कहता रहा कल तक
वही प्याला लबों को दे तो फ़िर मंजूर हो जाए ॥
प्रकाश"अर्श"
११/०४/२००९
शानदार अभिव्यक्ति. बहुत शुभकामनाएं
ReplyDeletewo roti hai subakti hai jo..............man se door ho jaaye. lajawaab sher main mehsoos kar sakta hun is sher ka dard.bahut khoob sabhi sher kabil-e-tareef.dheron badhai.
ReplyDelete'संभलना शहर फिर ना कोई भागलपुर हो जाए।'
ReplyDeleteवाह।
वैसे सारे शेर अच्छे हैं।
just superb as usual..
ReplyDeleteHey Arsh bhai,
ReplyDeleteaapne to kamaal kar diya...
Matla, jo likhaa hai, uska to javaab nahi...kyaa baat kahii hai...lajavaab...
and I agree with swapn...
Second last sher is much far beyond to be appreciated in words.
arsh ji ,
ReplyDeletemain kya kahun ..
wo roti hai subakti hai jo ..ne aankho ko nam kar diya bhai mere..
main aur kya likhun ... mera salaam hai aapke is sher ko ,aur aapki lekhni ko ....
meri dua hai khuda se , aap aur likhe , behatar likhe ...
aapko dil se badhai ..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
आपकी ग़ज़ल में बहुत गहराई है..
ReplyDelete" bhut hi shandra prstuti.."
ReplyDeleteRegards
गहरी रचना है अर्श जी...........
ReplyDeleteगुरु जी के आशीर्वाद से निखार आ ही जाता है...........
सुन्दर हैं सब शेर
सारे शेर एक से बढ़ कर एक हैं भाई जान|
ReplyDeleteshabad nahi hai hai mere pass tippanni ke liye .woh roti hai subkatee hai.....sach kaha hai aapne
ReplyDeleteअर्श .........
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या बात है अर्श भाई....वाह ! क्या बात है
ReplyDeleteजबरदस्त मतला साब एकदम जबरदस्त
मेरा सलाम
सब के सब शेर खूब-खूब हैं
और विशेष कर भागलपूर वाला शेर और मक्ता तो आयहायहाय...
वाह वाह क्या गजल कही आपने दिल खुश हो गया
ReplyDeleteवीनस केसरी
बड़ी बातों का कहना और गहरा प्रभाव, ग़ज़ल का रस है।
ReplyDeleteकिन शेरों को को अलग से कहूँ कि अच्छे हैं
ReplyDeleteये जो अर्श है ना,....बड़ा ही बढ़िया कहता है !!
अरे बाबा इसीलिए तो हम सबके दिल में रहता है !!
बहुत बढ़िया। एक से बढ़ कर एक शेर।
ReplyDeleteवो रोती है सुबकती है अकेले घर के कोने में,
ReplyDeleteकमाई के लिए बच्चा जो माँ से दूर हो जाए।
वाह वाह अर्ष भाई क्या खूब लिखा है। जब प्यार में भीगी ग़ज़ल से दाल रोटी की खुश्बू आए तो मज़ा ही कुछ और बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है।
क्या बात है ! अतिसुन्दर ! ..ज़रा सा जख्म है बढ़कर न ये दस्तूर हो जाए .....!
ReplyDeletebahut khoobsurat sher....badhaai ho
ReplyDeleteवो रोती है सुबकती है...'
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा शेर लगा.
आखिरी शेर भी काबिले तारीफ़ है.
ग़ज़ल के सभी शेर बहुत खूबसूरत हैं.
ACHCHHEE GAZAL HAI.
ReplyDeleteदैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे सम्बंधित लिंक पर जाकर देखें:- http://dakbabu.blogspot.com/2009/04/blog-post_08.html
ReplyDeleteमैं शायर तो नही,
ReplyDeleteमगर ए शायर , जबसे पढा है, मैने तुझको , मुझको शायरी आ गयी !
समझ कम है, मगर दो शेर- भागलपुर, और कमाई, अपने आप में अलग संपूर्ण विशय है.
हिकारत से यूँ रस्ते में मुझे जालिम न देखा कर
ReplyDeleteमोहब्बत इस कदर न कर कोई मगरूर हो जाये
अर्श जी...क्या बात है....!!
जलीं होंगीं कई लाशें दफ़न होंगे कई किस्से
संभालना शहर फिर न कोई भागलपुर हो जाये
वाह...वाह....बहुत उम्दा ....!!
खूबसूरत गजल है अर्श भाई,,,,
ReplyDeleteइस के अलावा और भी कुछ कह जाती है आपकी गजल,,,
जो आप ने नहीं कहा होता,,,
पर आपके मोदिरेशन से जरूर शिकायत है थोडी सी,,,
पहले कमेंट करो,,,,फिर चेक करने आओ के क्या हमारा कमेंट प्रकाशित होने लायक था भी या नहीं,,,..
बस कमेंट ऐसा हो के उसी गजल की तरह छापा नजर आ जाए ...
"चुटकी में,,,,,,,,,,"
श्री पंकज सुबीर जी अगर किसी रचना पर अपनी कलम चला देते है तो उसका निखारना स्वाभाविक ही है. हालांकि मै कभी मिला नहीं हूँ उनसे किन्तु उनकी guruta से parichaya है आपकी तरह उन्हें चाहने वालो के माध्यम से.
ReplyDeleteअब आपकी तथा उनकी सुधारित रचना के लिए सिर्फ मै तालिया ही बजा सकता हूँ. बहुत खूब लिखा है. आपके गुरु को नमन करता हूँ. काश मुझे भी मिले होते.
हे मेरे सदैव ऑनलाइन रहने वाले मित्र,
ReplyDeleteअब तो मेरी टिपण्णी छाप दो...
वो रोती है सुबकती है अकेले घर के कोने में,
ReplyDeleteकमाई के लिए बच्चा जो माँ से दूर हो जाए।
बेहद रोमांचक लब्ज़।
Arsh bhai ,
ReplyDeleteKya Gazal likhi hai aapne, realy superb...
Maine Ropam Chppra ki Gajale padhi hai unhone bhi bahut jaldi bahut gahari Gazale likhana sikha hai aur ab aapko dekhata hoo ki kuchh hi time me aapne kamal kar diya...
Regards
अर्श,
ReplyDeleteआपकी रचनाएँ मुझे हमेशाही निशब्द कर देती हैं...औरोंने जो कहा उसके अलावा और क्या कह सकती हूँ?
पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
ReplyDeleteआप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है !
भाई अर्श...देरी से आने की मुआफी चाहता हूँ...आपकी ग़ज़ल पढ़ कर आनंद आ गया और इस ग़ज़ल का ये शेर:
ReplyDeleteवो रोटी है सुबकती है अकेले घर के कोने में
कमाई के लिए बच्चा जो मां से दूर हो जाए
लाजवाब ही नहीं बेमिसाल है....आप नहीं जानते आप क्या लिख गए हैं...गुरुदेव पंकज जी ऐसे शेर के लिए कहा करते हैं की ये लिख्खे नहीं जाते मां सरस्वती खुद लिखवाती है...सुभान अल्लाह ....वाह...लिखते रहें.
नीरज
Arsh ji..... Bahut hi umda ghazal kahi hai aapne.... saare hi aashar bahut ache hai....
ReplyDeleteAapki ghazloN mein ab tak ki sabse achchi ghazal. Isi tarah ka likkha kariye...baaki SC ki kahaani tou chaltee hi rahegi...;-)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!आप
ReplyDeleteका ब्लाग बहुत अच्छा लगा।
मैं अपने तीनों ब्लाग पर हर रविवार को
ग़ज़ल,गीत डालता हूँ,जरूर देखें।मुझे पूरा यकीन
है कि आप को ये पसंद आयेंगे।
Bhai arsh ji
ReplyDeleteBahut hi sunder ghazal hai.
koi shikwa ho to kah de ise ne dil men rakkha kar,
jara sa zakhma hai badkar na ye nasoor ho jaye.
bahut bahut badhai.
are ye gazal to meri nazar se kese chhip gayee sada ki tarah behtreen badhai
ReplyDeleteबहुत उम्दा ग़ज़ल है.............दाद कबूल हो
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