गूरू जी के आर्शीवाद से छोटी बह'र की एक और ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ... आप सभी का प्यार और आर्शीवाद चाहूंगा...
बह'र - १२२ १२२
फ़ऊलुन फ़ऊलुन
मैं खुश हूँ उड़ा कर ।
यूँ हस्ती मिटा कर ॥
ये कैसे कहूँ मैं ,
हूँ जिंदा भुला कर ॥
वो आया नहीं क्यों ,
बता दो पता कर ॥
सुना फैसला अब ,
तू हां कर या ना कर ॥
मुझे उसने लूटा ,
पड़ोसी मिला कर ॥
लिखा है ये माँ ने ,
तू आजा खुदा कर ॥
दुआ ज़िन्दगी की ,
हलाहल पिला कर ॥
वो बदनामी को भी ,
गया ले भुना कर ॥
करे अर्श अब क्या ,
वो बैठा है आ कर ॥
प्रकाश"अर्श"
यूँ कहने से कभी हस्ती मिटा नहीं करती
ReplyDeleteयूँ उडाने से कोई कसक उडा नहीं करती
मगर जीते हैं वही शान से सदा
जिनकी जिन्दादिली होती है अदा
अर्श 1 सदा की तरह एक बेह्तरीन गज़ल है आज मैने तुम पर एक पोस्त अप्ने ब्लोग पर लिखी है मुझे लगता है तुम्हारे ब्लोग पर आने वले सभी पाठक इसे पढना पसंद् करेंग मेरी तरफ से बहुत बहुत आशीर्वाद और तुम्हारे गुरूजी का भी धन्यवाद जो तुम्हें तराश रहे हैं
दुआ ज़िन्दगी की ,हलाहल पिला कर ..बहुत खूब ..पसंद आई आपकी यह गजल अर्श जी
ReplyDeletearsh bhai ,
ReplyDeletehamesha ki tarah ek freshness , ek ada aur ek apnapan is gazal me dik raha hai ..
aap abhi maa se mil kar aaye ho ..gazal me iski jhalak dik rahi hai ..
yaar , meri khuda se dua hai ki wo aapko hamesha khush rakhe aur salamat rakhe ..
badhai..
खुश हूँ उड़ा कर
ReplyDeleteयूँ हस्ती मिटा कर
ये कैसे कहूँ मैं
हूँ जिंदा भुला कर
बहुत बढ़िया रचना अर्श जी बधाई.
छोटी बहर पे काम करना बहुत कठिन होता है । क्योंकि एक छोटे से स्पेस में बात को पूरा करना होता है। कठिन कार्य को कुशलता से पूरा करने की बधाई ।
ReplyDeleteये कैसे कहूँ मैं ,
ReplyDeleteहूँ जिंदा भुला कर ॥
वाह वाह..! सुंदर अशआर निकाले हैं अर्श..!
दुआ ज़िन्दगी की
ReplyDeleteहलाहल पिला कर!'
बहुत खूब लगा यह शेर!
छोटे बहर की यह ग़ज़ल भी अच्छी कही गयी है.
ये कैसे कहूँ मैं
ReplyDeleteहूँ जिन्दा भुला कर
एक शेर की काफी है इस ग़ज़ल को बुलंदियों पर पहुँचाने के लिए...छोटी बहार में कमाल किया है आपने अर्श जी ...वाह...बहुत बहुत बधाई..
नीरज
अर्श भाई, सुंदर गज़ल है। खासकर अंतिम तीन शेर खूब पसंद आये। वैसे तो छोटी बहर में लिखना अपने आप में बहुत मुश्किल काम है पर जिस तरह से आपने लिखा है.....मन वाह कर उठता है।
ReplyDeleteदुआ ज़िन्दगी की,
ReplyDeleteहलाहल पिला कर
--छोटी बहर की इस गज़ल में क्या क्या न कह गये आप..बहुत खूब!!
क्या खूब लिखे हो "अर्श" भाई मजा आ गया पढ़कर
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है.......';
अक्षय-मन
बहुत ही बढिया.....इसे कहते हैं ग़ज़ल
ReplyDeleteWaah !! Bahut bahut sundar.....Badhai.
ReplyDeletewah, meri achchi nano, pyari nano.
ReplyDeletebahut bahut badhai,behad umda rachna ke liye.
"ये कैसे कहूँ मैं
ReplyDeleteहूँ जिन्दा भुला कर"
क्या शेर है अर्श जी..वाह....
plz see www.samkalinghazal.blogspot.com [ग़ज़ल पर एक पत्रिका]
Welcome Back! Aapke guru ji ko salam.... Lucky hain aap jo guru mila hain aapko...... Bahut acchi lagi ye choti si gazal
ReplyDeleteits really really wonderful...
ReplyDeleteवाह वाह इसके आलावा कोई शब्द नही मिल रहा इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए
ReplyDeleteekdum mukammal shayar lagte haai aap :)
ReplyDelete... वाह वाह ... उम्दा-उम्दा !!!!
ReplyDeleteदिल में गहरे उतर गयी आपके शेर.............छोटी बहर में लिखा आसन नहीं है...........गुरु जी ने स्वयं इतना कुछ कहा है आपके बारे में.........अब तो बस वाह वाह ही कर सकते हैं...........लाजवाब
ReplyDeleteवो आया नहीं क्यों,
ReplyDeleteबता दो पता कर
नया तरीका है जी ये तो ...खूबसूरत लगा ( बता दो पता कर,,)
वो बदनामियाँ भी
गया ले भुनाकर .....कमाल का व्यंग...
ये कैसे कहूं मैं,
हूँ जिंदा भुलाकर....
बहुत हसीं .....
बगैर भाव के छोटी गजल कहना सबसे आसान काम है....
पर
छोटी बहर में इतने भाव रखने आसान नहीं होते.....
आपने बहुत खूबसूरती से इतना कुछ कह डाला है...
kya baat hai arsh bhai !!
ReplyDeletevakai me, jitne kam shabd hai, utni gehri baat keh rahi hai gazal...
Amazing...
vakaai me, kam shabdo me bahut gehri baat keh daali hai..
ReplyDeleteLajawab...impossible to praise it in words..
नमस्कार अर्श जी,
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल है, छोटे बहर में लिखना बहुत मुश्किल है मगर आपने उसे आसन बना दिया है.
ak achi gjal
ReplyDeleteये कमाल आप ही कर सकते हो अर्श भाई...
ReplyDeleteसब के सब शेर सुभानल्लाह !
मक्ता लेकिन कयामत बरपा रहा है।
प्रकाश जी
ReplyDelete"यूँ हस्ती मिटाकर"
इतनी छोटी बहार में भी आपने कमाल कर दिया .
सुना फैसला अब
तू हाँ कर या न कर
और
दुआ जिंदगी की
हलाहल पिलाकर
वाह, सुन्दर कल्पना है.
- विजय
वाह अर्श जी वाह.... बधाई स्वीकारें..
ReplyDeleteमैं खुश हूँ उड़ा कर
ReplyDeleteयूँ हस्ती मिटा कर
वाह...वाह....!!
ये कैसे कहूँ मैं
हूँ जिन्दा भुला कर
लाजवाब....!!
अर्श जी आप भी तो कमाल का लिखते हैं ...सभी अपनी अपनी जगह बेहतर होते हैं ....बधाई ....!!
पहली बार इत्मीनान से ब्लॉग की कई रचनाएँ पढ पाए... एक के बाद एक ... सभी लाजवाब लगी... ढेरों शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteबेहतरीन रचना........ बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteउन्दा रचना
ReplyDeleteहलाहल पीकर ही अमृत मिलता है तपने से ही सोना शुध्ध होता है और अनुभूति से ही ऐसी कृति बनती है
ReplyDelete-- लावण्या
bahut sunder arsh ji.....jitni tarif ki jaye kum hum aap hamesha ki tara is baar b bahut khoobsurat rachna ki haa.......
ReplyDeletephillal kafi din se office wagara mein busy thi isliye koi nhi rachna nhi kari lakin jaldi nai rachna le kar aaongi....
WAH....//AB TO APKI TAARIF KARNE KA BHI MAN NAHI HOTA WAHI BAAT BAAR BAAR...
ReplyDeleteYE SHER WAKAI UMDA BAN PADA HAI...
"वो बदनामी को भी ,
गया ले भुना कर ॥"
ARSH JI SUAN HAI MANU JI AUR MUFLIS JI SE MULAQUAT KAR LI....
...HUMEIN BHI BULA LIYA HOTA....
:)
CHALIYE TANHIYON NE JAAM KE SAAT APKI BEHAR PE KUCH AISA KEHNA CHAHA:
KAHEIN KYUN, HUA KYA?
HAAN, TU BHI PIYA KAR.
JAVANI SA BACHPAN,
KHATA KAR, KHATA KAR.
KISI MEKADE MAIN,
TU SAJDE ATA KAR.
अर्श भाई आपकी छोटी बहर की गजल कयामत बरपा होती है आप जानते हैं मैं खुल कर आपकी गजल के बारे में कह लेता हूँ जैसा मुझे लगता है,
ReplyDeleteसुना फैसला... लिखा है ये माँ ने...
ये शेर ख़ास पसंद आये
वीनस केसरी
अर्श, मै हमेशा देरीसे ही पोहोंच पाती हूँ आपके blogpe...इन दिग्गजों के आगे और क्या कहूँ..हाँ रश्क होता है, आपको पढ़के, लगता है, काश इस सहज और तरल तरीकेसे हमभी लिख पाते!
ReplyDeleteये बात आपकी हरेक रचनाके लिए कहूँगी...
snehsahit
shama
Wah Arsh ji.......
ReplyDeletebahut khoob.
wah.......
वाह अर्श जी......
ReplyDeleteबहुत खूब लिखी है.... वाह........
वो बदनामी को भी ,
ReplyDeleteगया ले भुना कर ॥
करे अर्श अब क्या ,
वो बैठा है आ कर ॥
______________________
दिल में उतरते है आपके ये शब्द.
____________________________
विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!
वाह वाह अर्श भाई अरे क्या कहना ! बहुत मेहनत की है भाई आपने। सुभाल्लाह! पंकज जी को ज़रूर कहिएगा, के आपके बड़े भाई बवाल ने उनको बहुत बहुत आभार भेजा है आपके इस अप्रतिम मार्गदर्शन के लिए। अप्रैल से अभी तक की सभी ग़ज़लें पढ़ डालीं भाई । सच बताएँ ? दिल ख़ुश हो गया। बहुत अपने लग पड़े हो अर्श भाई ये सब लिख कर। अब ख़यालों में वाक़ई ज़बरदस्त रवानी आ चुकी है। मालिक हमारे अर्श को बुलंदियाँ अता फ़र्माए। आमीन!
ReplyDeleteकमाल कर दिया, वाह भाई वाह!
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
भाई प्रकाश, पूरे एक माह बाद ब्लॉग पर वापसी हुई है. तुम्हारी छोटी बहर की यह गजल अच्छी लगी. चूंकि मैं खुद छोटी बहर का आदमी हूँ और इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूँ की कितनी दिक्कतें झेलनी पडती हैं. तुम्हारे इस सफल प्रयास के लिए बधाई.
ReplyDeleteachchi koshih ki hai aapne. kuch sher to qamal ke ban pade hain.
ReplyDeletebhut achchhi gazal
ReplyDeleteवाह भाई अर्श जी, आप तो जूं भी गज़बआं ही करते रहते हो....अब मैं झेलाऊं....??
ReplyDeleteअरे चला भी जा तू,
मुझे ना तबाह कर !!
मुझे देख इस कदर
तू यूँ ना हंसा कर !!
कोई टिक ना सका
मेरे रस्ते में आकर !!
वफ़ा यहाँ फालतू है
जफा कर जफा कर !!
तू प्यार चाहता है ??
मेरे पास बैठा कर !!
तुझे सुकून मिलेगा
इधर को आया कर !!
दुनिया बदल रही है
गाफिल सरमाया कर !!
अर्श भाई, मैं मात्रा-वैगरह तो नहीं जानता....गुणी लोगों से अक्सर डांट खाता हूँ...मगर सीखने का समय ही नहीं होता....सो गलती-सलती माफ़.....अपन दिल से लिखने वाला है....लिखता ही रहेगा.....कोई कुछ भी कहेगा....अच्छा है....सुनता ही रहेगा....कोई आलोचना भी करेगा....अपना ही समझेगा....हम कुछ नहीं बोलेगा....सबसे प्यार ना करेगा...!!अरे तुम काये को रोता है....गाफिल अभी थोडी मरेगा....!!
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपके नए पोस्ट का इंतज़ार है!
ReplyDeleteएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में।आप के सुझावों की आवश्यकता है,देंखे और बतायें.....
ReplyDeletebahut kubsoorat gazal likha hai aapne...waise aaphi har ek gazal padhne ko majboor karti hai
ReplyDeleteapki sabhi gazal tareef ke kabil hain.
ReplyDeletebahut khoobsurat.
ReplyDeletebhaav aur behtar ho sakte the aisa laga mujhe...:)
ReplyDeletebaki craft ke bare me kya kehna...
मतला से मक़्ता तक सभी मिसरे अच्छे लगे लेकिन ,पड़ोसी मिला कर और तू आजा ख़ुदा कर, वाले मिसरें की अभिव्यक्ति मुकम्मल नहीं हो पा रही है। बधाई।
ReplyDelete