गूरू देव ने इसे छू लिया और ये कहने लायक बन पडी है आप सभी का आर्शीवाद भी चाहूँगा ...
बहरे रमल मुसद्दस मखबून मुसक्कन
( २१२२ ११२२ २२ )
मेरा भी दिल-ओ- ज़िगर हो शायद ।
उसको भी इसकी ख़बर हो शायद ॥
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
मेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
दूर जाकर के वो बैठा मुझसे ।
ये मनाने का हुनर हो शायद ॥
बस्तियों को जो जला कर खुश है ।
उनका भी इक कहीं घर हो शायद॥
मैं फकीरों की तरह फिरता हूँ ।
उनपे अल्लाह की मेहर हो शायद ॥
'अर्श' रहता है अंधेरों में अब ।
क्या पता कल न सहर हो शायद ॥
प्रकाश"अर्श"
०७/०५/२००९
दूर जाकर के वो बैठा मुझसे
ReplyDeleteये मनाने का हुनर हो शायद
अर्श जी...........अक्सर इस तरह से वो मनाते हैं जो दिल के करेब घोटे हैं
बस्तियों को जो जला कर खुश है
उनका भी इक कहीं घर हो शायद
अनजाने ही कुछ एहसास कराता हुवा शेर ............लाजवाब
मैं फकीरों की तरह फिरता हूँ
उनपे अल्लाह की मेहर हो शायद
बहूत ही दार्शनिक अंदाज़ क शेर...........
मजा आ गया ग़ज़ल पढ़ कर............गुरु जी को और आपको प्रणाम
इतनी अच्छी ग़ज़ल कहने वाले अर्श की सहर तो दस्तक दे रही है. आपकी ग़ज़ल सचमुच पूरी ग़ज़ल है.
ReplyDeleteek ek panktiyan khubsoorat hai
ReplyDelete'दूर जाकर के वो बैठा मुझसे ।
ReplyDeleteये मनाने का हुनर हो शायद ॥'
-सुन्दर लिखा है.
अर्श ने जो लिखी है गजल
पढ़ने को कोई मुन्तज़र हो शायद.
AAPKEE GAZAL PASAND AAYEE HAI EK SHER KE SIVAAYE.
ReplyDeleteSHER HAI---
Door jaa kar ke vo baithaa mujhse
ye manaane kaa hunar ho shaayad
Dono misron mein koee taal-mail nahin
hai.Ek baat yaad kripya yaad rakhiye ki gazal
mein sirf bahar hee nahin,sahee zabaan ke prayog
kaa bhee mahattav hai."Door jaa kar ke " mein
"ke" bhartee hai.Sahee zabaan yun hotee---
Door jaa kar hai vo baitha mujhse
Abhyas zaaree rakhiye.pahle se aapmein
bahut improovement hai.Achchhe gazal ke liye meree badhaaee.
aap par allah ke mehar hain
ReplyDeletegazal bhi kabil-e-tareef hain.
keep writing
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteरास्ते दे रहे है आवाज.....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अर्श भाई . बधाई.
Bahut khoob...
ReplyDeleteबढ़िया है साहब
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
क्या बात है अर्श साहब
ReplyDeleteबस्तियां जला कर जो खुश है
उनका भी कहीं घर हो शायद !!
बहुत अच्छे, लाजवाब !!!
बहुत बढ़िया अर्श साहब
ReplyDeleteहर शेर बहुत, बढ़िया है।
दूर जाकर है वो बैठा मुझसे ।
ReplyDeleteये मनाने का हुनर हो शायद ॥
....very very touching lines...
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफर हो शायद ...
बहुत पसंद आया यह शेर अर्श.
सारी ग़ज़ल ही खूबसूरत कही है आप ने .
arsh, alag se koi sher nahin , mujhe to poori gazal hi umda lagi, badhai.
ReplyDeleteअर्श भाई, मस्त लिखा है बिल्कुल । किस शेर की तारीफ़ करूं? हर शेर ही उम्दा लगा। ऐसे ही बेहतरीन गज़लें पढ़वाते रहिये।
ReplyDeleteरास्ते दे रहे आवाज मुझे
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफ़र हो शायद
अर्श भाई मुझे ये शेर बहुत पसंद आया
आप तो बहुत अच्छी गजल कह रहें है आज कल
आपका वीनस केसरी
बेहतरीन ग़ज़ल अर्श भाई...क्या बात है, लेखनी तो गज़ब ढ़ा रही है
ReplyDeleteखुद प्राण साब के इतना कुछ कह लेने के बाद कुछ और कहना शेष कहाँ रह जाता है
अर्श भाई
ReplyDeleteआपको पढ़ना अद्भुत होता है..बड़े गौर से पढ़ना होता है गहराई नापने के लिए.
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
....बेहद खूबसूरत, प्रभावशाली व प्रसंशनीय गजल।
इस रात की सुबह नहीं.. बहुत खूब
ReplyDeleteअर्श को पढ़ कर ऐसा लगा
ReplyDeleteउस्ताद कमाल का है शायद
दूर जाकर के वो बैठा मुझसे
ReplyDeleteये मनाने का हुनर हो शायद
वाह बहुत खूब ..
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
मेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
यह सबसे बढ़िया लगा ..आपका लिखा हर शेर कुछ कहता है ..बहुत बढ़िया शुक्रिया
bastion ko jala kar khush hai uska bhi ik kahin ghar ho shaayad--- baht sahi kaha hai har she er hi kabile tareef hai ab to gazal samrat ban gaye ho shubh kaamnayen
ReplyDeleteखूब कहा...
ReplyDeleteमेरा भी दिल-ओ- ज़िगर हो शायद ।
ReplyDeleteउसको भी इसकी ख़बर हो शायद ॥
bahut khoob.......
बस्तियों को जो जला कर खुश है ।
ReplyDeleteउनका भी इक कहीं घर हो शायद॥
badhiya kaha ....!
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
दूर जाकर है वो बैठा मुझसे ।
ये मनाने का हुनर हो शायद ॥
बस्तियों को जो जला कर खुश है ।
उनका भी इक कहीं घर हो शायद॥
बहुत बहुत बढ़िया...अच्छे शेर कहे हैं आपने.
'अर्श' रहता है अंधेरों में अब ।
ReplyDeleteक्या पता कल न सहर हो शायद ॥
अर्श की गज़ल से आज़ तो उजाला है ,
क्या पता कल न सहर हो शायद ॥
और कहीं सुना था:
है किस का ज़िगर जिस पे ये बेदाद करोगे ,
लो हम तुम्हें दिल देते हैं,
क्या याद करोगे ।।
अर्श भाई आपकी ग़ज़लों का सुरूर धीरे-धीरे मुझे आपका दीवाना बना रहा है। और आप भी धीरे-धीरे निखरते जा रहे हैं कमाल है वाह! किसी एक शेर या पंक्ति की तारीफ करना और किसी पंक्ति को छोड़ देना मेरे लिये बहुत ही मुश्किल है पूरी ग़ज़ल मुकम्मल है।
ReplyDeleteरास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
ये पूरी गज़ल बडी ही स्मूथ निकली. अपने आप में संपूर्ण, मुकम्मल..
ग़ज़ल सुन्दर है. हमें आशावादी ही होना चाहिए. सहर जरूर आएगी, सहर का इंतज़ार कर
ReplyDeleteachhibat khi gjal ke madhym se .
ReplyDeletebdhai
वाहवा बहुत बढ़िया अर्श जी बधाई स्वीकारें
ReplyDeletebhaiya... aapki gazal ke baare
ReplyDeletemein kuchh kehne ke liye to abhi main bahut chhota hoon. or muje kuchh aata bhi nahi hai.
par itna kahunga ki aapki har gazal bahut umda lagti hai. or baar baar padhne ka mann karta hai. :)
sabse achhi gazal 'maan meri..." lagi.
or haan.. ek baat or...
ye mera blog hai.. http://imajeeb.blogspot.com
kabhi yaha bhi aaiye... :)
thoda sa waqt nikaaliyega... :)
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
बहुत खूब....!!
दूर जाकर है वो बैठा मुझसे ।
ये मनाने का हुनर हो शायद ॥
लाजवाब ....!!
हर शेर हसीं है अर्श भाई,,,,,
ReplyDeleteजो एक मामूली सा खटका था ...वो पहले ही सही हो चुका है....
सभी कुछ है,,,,,रूठना मनाना,,,,सफ़र की चाहत,,,
और फकीराना मस्ती भी,,,,
बहुत शानदार गजल,,,,,
arsh kya karoon apki gazal baar baar padhne ka man karta hai is is liye aaj bhi apne ko padhne se rok nahi paayee yahi nahi har gazal dil ko chhooti hai agli ka intzar rahega ashirvad
ReplyDeleteरातके घने अंधेरोंमें शायद रास्ता मिल जाता है कभी ,
ReplyDeleteसहर होने का इंतज़ार करने जिंदगी शायद बाकी न रहे ....
हर सांस जिंदगी रहे शायद पास रह जाए ,
ये एहसास शायद रहे न बाकी ....
arsh bhai , deri se aane ke liye maafi chahta hoon ...
ReplyDeleteyaar , ab ek to itni shaandar gazal aur phir ye saare comment ... main kuch aur kahun to kya kahun mere dost ... lekin ek baat jarur kahna chahunga ki , is baar ki gazal aapki behatreen gazalon me se ek hai .. isme koi shaq nahi hai .. yaar badi tamanna hoti hai ki main bhi aapke jaise likh sakun..
dil se badhai
बहुत खूब ! अब ४० सुन्दर टिप्पणियों पढ़ने के बाद कहने को
ReplyDeleteकुछ रहा ही नहीं. सुबीर जी का
आशीर्वाद हो तो सोने पर सुहागा.
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.
महावीर शर्मा
कुछ भी कहने के लिये नही कह रही हूँ बल्कि कहने के लियेबहुत कुछ है मगर कह नही पा रही हूँ लजवाब गज़ल का कमाल है इसे रोज़ पढ्ने का मन होता है अशिर्वाद्
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी लगी|मेरा नया ब्लाग जो बनारस के रचनाकारों पर आधारित है,जरूर देंखे...
ReplyDeletewww.kaviaurkavita.blogspot.com
Kya baat kah di hai
ReplyDeletebastiyan jisne jalayi unka bhi ek ghar ho shayad
bahut hi subder gazal
Arsh ji deri se aane ke liye muaafi chahti hoon
रास्ते दे रहें हैं आवाज मुझे....
ReplyDeleteमेरी किस्मत में सफ़र हो शायद!!
दूर जाकर के वो बैठा मुझसे....
ये मानने का हुनर हो शायद!!
क्या खूब शेर लिखें है आपने......
वाकई आज इक सुन्दर गजल पढने को मिली.....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमेरी शुभकामनाएं
लिखते रहो यूँ ही लाजवाब गज़लें दोस्त
दोस्तों के दिलों में आपका घर हो शायद.
हाल जैसा इधर वैसा ही उधर हो शायद
मेरी तरह कहीं उसे भी ख़बर हो शायद
andhere jindgi ke jaroor chhat jayenge"ARSH"
ReplyDeletekahin mere liye ujaalon ka shahar ho shayad
acchi line ...
ReplyDelete"bastiyon ko jo jala kar khush...."
"garion ke gharon main paththar maine bhi uchale darshan..
aa gaya mera ghar sambhal jaata hoon main"
ek se badhkar ek panktiyaaan...badhaai!
ReplyDeletewaah waah! behad khoobsoorat likha hai, ek ek sher lajawab.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा पेशगी है. हर एक शेर अपने आप में में गाथा कह रहा है.
ReplyDeleteअर्श रहता है अंधेरों में अब
क्या पता कल न सहर हो शायद
वाह!
उठी
आँख तो मंच पर अर्श देखा
ई देवी कहो फर्श ढूँढें कहाँ पर
सस्नेह
देवी नागरानी
बहुत ही उम्दा पेशगी है. हर एक शेर अपने आप में में गाथा कह रहा है.
ReplyDeleteअर्श रहता है अंधेरों में अब
क्या पता कल न सहर हो शायद
वाह!
उठी
आँख तो मंच पर अर्श देखा
ई देवी कहो फर्श ढूँढें कहाँ पर
सस्नेह
देवी नागरानी
umda ghazal .... matla aur maqta dono bahut hi khubsurat lage... ek misra apka
ReplyDeleteदूर जाकर के वो बैठा मुझसे
isme me mujhe zabaan ki gadbadi si lagti hai ..
"jakar" ke baad "ke" kuch khatak raha hai ..."kar" aur "ke" dono ko ek hi arth me istemal kiya hai aapne...to fir do shabd kyun.. shayd behar ki maang ho ....