लगातार बड़ी बहर पे लिखने के बाद एक छोटी बहर की ग़ज़ल आप सभी के सामने लेकर आया हूँ आर्शीवाद गूरू देव का है, आप सभी का भी स्नेह और आर्शीवाद चाहूँगा ....
बहर .... १२२ १२२
फ़ऊलुन फ़ऊलुन
वो कातिल अदा उफ़
वो हुस्न-ऐ शबा उफ़ ॥
हैं दीवाने हम पर
हां तेरी वफ़ा उफ़ ॥
है दिल हारने में
लो नुक्सा नफ़ा उफ़ ॥
वो आदाब में भी
नजाकत है क्या उफ़ ॥
लगी भीड़ कैसी
है क्या माजरा उफ़ ॥
वो जां लेके बोले
तुम्हे क्या हुआ उफ़ ॥
चले उसको छूकर
ये आबो हवा उफ़ ॥
दबे लब से कहना
वो है'अर्श'का उफ़ ॥
प्रकाश"अर्श"
०१/०५/२००९
उफ़!! क्या गज़ब लिखा है उफ़!! बहुत खूब!!
ReplyDeleteMind blowing....gr8 to see some nice Ghazalssss from you non stop.....carry on....Ooo Katil add uff....kya bat hay....
ReplyDeletegazal katilaana
ReplyDeletekaren tareef kya uf.
arsh ab tum micro yug men pravesh kar gaye ho,theek bhi hai samay ke saath chalna chahiye.
rachna behad umda. bahut mubarak.
बहुत बहुत पसंद आई आपकी यह गजल ..वाकई उफ़ है यह लफ्ज़ ..सुन्दर
ReplyDeleteभाई ये तो सचमुच बड़ी
ReplyDeleteनज़ाकत भरी ग़ज़ल है.
आपमें अभिव्यक्ति की
प्रशंसनीय बेकली साफ़ दिखती है,
लिखते रहिए...और हर बार
बेहतर की
कोशिश जारी रखिये....बधाई.
==========================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हम तो सोचते रह गये
ReplyDeleteआपने लिखा है क्या उफ!!
अच्छी रचना
bahut hee sunder rachna.....haay ree uff
ReplyDeleteबहुत खूब। वाह। क्या गजल कहा उफ।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
इक टीस सी उठ गई,
ReplyDeleteक्या तुमने लिखा उफ्फ?
bahut hi badhiyaa gazal....
ReplyDeleteछोटे बहर की ग़ज़ल कहना मुश्किल काम होता है....आप ने लेकिन इसी में खूब ख्याल लिख डाले -
ReplyDelete'वो आदाब में भी क्या नजाकत थी उफ़!!!!!!'
बहुत खूब !!!
क्या खूब लिख देते हो उफ़
ReplyDeleteदाद का हक़दार कौन
तुम या काबिल गुरु उफ़
GAZAL PASAND AAYEE HAI.QAAFIA AUR RADEEF AAPNE
ReplyDeleteKHOOB NIBHAAEE HAI.MEREE BADHAAEE SWEEKAR KAREN.
AAPKEE TIPPANI WALA SHER VAZAN SE GIR GAYAA HAI.
उफ़, उफ़, उफ़, हाय!
ReplyDeleteबहुत ख़ूब...
aapki ghazal boht nazuk si lagee......nzakat se bhari..adao se bharee..
ReplyDeleteउफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़..अर्श भाई उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ !!!
ReplyDeleteशायद मेरे शब्द उचित न्याय नहीं कर पायेंगे जो तारीफ़ करने बैठूं आपके इस अनूठे ग़ज़ल की...
"हैं दीवाने हम पर / हां तेरी वफ़ा उफ़" और "वो जां लेके बोले/तुम्हे क्या हुआ उफ़ ’---इन दो शेरों पे बस सब निछावर
और मक्ते के लिये i salute you..
आप कुछ पूछना चाह रहे थे हुज़ूर, जैसा कि मेरे ब्लौग पर कहा है आपने....अब पूछ भी लीजिये !!!
kya mizaz hai wah ji wah
ReplyDeletemushkil hai is tarah kahana
ReplyDeleteअर्श जी सही में
ReplyDeleteमजेदार है ये उफ़
- विजय
छोटी बहर में अच्छा प्रयोग है । इसलिये भी क्योंकि छोटी बहर में बात को पूरा एक ही शेर में कर देना मुश्किल होता है । मगर ये अच्छा है कि आपका हर शेर बात को पूरा कर रहा है ।
ReplyDeleteबहुत सही गजल ,,,निकलवा लायें है आपके गुरूजी,,,
ReplyDeleteऊऊऊओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़
ये उफ तो गौतम जी ही ज्यादा अच्छा कहते हैं,,,,
मक्ता वाकई लाजवाब बन पडा है,,,
और वो जान लेके बोले ,,,
तुम्हे क्या हुआ उफ
मजा आ गया
वो आदाब में भी
ReplyDeleteनजाकत है क्या उफ़ ॥
... behad khoobasoorat !!!!
अंदाजे बयां अर्श का
ReplyDeleteक्या कहना.. उफ..
चले उसको छूकर ........उफ़
ReplyDeleteउफनता हुआ गजल:)
ReplyDeleteमजेदार:)
kya baat hai arsh bhai ... maine to aaj tak itni choti baher ki gazal nahi padhi [ ho sakta ho ki maine bahut kam gazalen padhi ho ] lekin , maza aa gaya huzoor .. kamaal kar diya hai ..uff ye gazal ..... uff ye mohabbat.... uff ye arsh bhai ...uffff.
ReplyDeletedil se badhai sweekar karen ..
aapka
vijay
वाह! वाह! छोटी बहर में लिखना मतलब गागर में सागर भरना। और आपने बखूबी ये काम किया है। गुरूदेव का आशीर्वाद फलीभूत होता दिख रहा है। बहुत बहुत बधाई। पूरी गज़ल जानदार है।
ReplyDeleteआपकी इस ग़ज़ल में भी क्या नजाकत है उफ़
ReplyDeleteअंदाज़ पसंद आया |
ReplyDeleteअर्श भाई पहले तो माफी चाहुगा की गजल कल ही पढ़ ली और कमेन्ट आज कर रहा हूँ
ReplyDeleteजिन शेरो ने ख़ास प्रभावित किया वो है
हैं दीवाने हम पर
हां तेरी वफ़ा उफ़ ॥
वो जां लेके बोले
तुम्हे क्या हुआ उफ़ ॥
चले उसको छूकर
ये आबो हवा उफ़ ॥
दबे लब से कहना
वो है'अर्श'का उफ़ ॥
आपका वीनस केसरी
arsh jee, aap kee mehnat ka sila aap ko dheron cmments kee shkl men hasil hai. blog jagat men aap ek haisiyat ke malik hain. aap ne naacheez kee ghazal pe comments diye, shukrguzar hoon. mehnat thodee aur badhayen.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखते हैं आप तो , एक झटके में आपकी कितनी ही रचनाएं पढ़ डाली हैं , अब किस किस पर टिप्पणी दें , उलझन में डाल दिया है |
ReplyDeleteलिखा अर्श ने यूँ,
ReplyDeleteकि दिल कह रहा उफ!
बहुत सही भाई...! यूँ ही लिखते रहो..!
छोटी बहर में लिखी ग़ज़ल............
ReplyDeleteआपने और गुरु जी ने खूबसूरत ख्याल से...........बहुत ही naazuki से chuaa है इस ग़ज़ल को
uff ..........क्या ग़ज़ल bani है
वो कातिल अदा उफ़
ReplyDeleteवो हुश्न-ए-सबा उफ़
लाजवाब.......!!
वो जां लेके बोले
तुम्हें क्या हुआ है उफ़
उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ !!
कमाल कर दिया अर्श जी इस छोटी बहर में भी .......!!
छोटी बहर की इतनी सुन्दर ग़ज़ल....उफ़...
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी लगी।कुछ हटकर.....
आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।आप मेरे ब्लाग
पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।
वो जां लेके बोले
ReplyDeleteतुम्हे क्या हुआ उफ़ ॥
ufff...!!!
:)
aapki gazal uf!
ReplyDeleteAndaz-e -bayan Uf!
aapke is wale blog ko first time dekha ! Lajawab hain aapto...bahut kuch seekhne ko milega
ek "uff" shabd ke istemaal se bahut achha prabhaav daala hai aapne...baaki beher ki itni samajh nai mujhe,par flow to ekdum badhiya lagaa :)
ReplyDeleteकैसे करूं इस गज़ल की तरीफ्
ReplyDeleteदो शब्द मे लिख दी ज़िन्दगी उफ
ये कमाल है तेरी कलम क
करूं केसे इसकी बंदगी उफ्
अर्शजी हमेशा कि तरह खूबसूरत गज़ल हैांअप को गज़ल का बाद्शाह कहूं तो गलत ना होगा शुभकामनायें इसी तरह लिखते रहें और अपकी कलम आकाश की बुलन्दियों को छूये आशिर्वाद्
केसे करूं तरीफ तेरी गज़ल की
ReplyDeleteदो शब्दों मे लिख दी जिन्दगी उफ
तेरी कलम की दाद दूँ कि
करूँ इसकी बंदगी उफ
हमेशा की तरह लजवाब गज़ल है भगवान करे तुम्हारी कलम इसी तरह चलती रहे और एक दिन आकाश की बुलन्दिओं को छूये शुभकामनायेम्
क्या बात है.... वाहवा..
ReplyDeleteवो जाँ लेके बोले
ReplyDeleteतुम्हे क्या हुआ उफ़
एक शेर ही काफी था...अपने आपमें पूरी ग़ज़ल ही समझलो...भाई वाह...मजा आ गया...इस शेर के बाद और कुछ भी कहना फिजूल है...
नीरज
मन को झकझोर डाला
ReplyDeleteये क्या कह दिया उफ़ !
वो आदाब में भी
ReplyDeleteनजाकत है क्या उफ़ ॥
वो जाँ लेके बोले
तुम्हे क्या हुआ उफ़
गजब कर दिया
अर्श है अर्श पर उफ़
गजब कर दिया
ReplyDeleteअर्श है अर्श पर उफ़
बहुत बहुत पसंद आई आपकी यह गजल
ReplyDeleteवाह! बहरे-मुतक़ारिब मुरब्बा की अच्छी गज़ल है। रदीफ़ बहुत अच्छा लगा, एकदम नया और बड़ी ख़ूबसूरती से
ReplyDeleteक़ाफ़िये के साथ निभाया है। बधाई।
हुज़ूर ! एक-दम सलीके से
ReplyDeleteशानदार और असरदार ग़ज़ल कही है आपने .
एक-एक शेर में
गुरूजी का आर्शीवाद खुद बोल रहा है ....
बधाई .
असर है ग़ज़ल का
नशा वो हुआ , उफ़ !
---मुफलिस---
choti behar meri niji pasand hai, is behar main likhne ke kitne hi asfal pryas kaer chuka hoon, isliye janta hoon ki kitna mushkil hai, magar apne jo likha hai...
ReplyDelete...ufffff !! apni pasand ki line udrith karna chahoonga:
"wo jaan leke bole....
...tumehin kya hua uff"
क्या खूब लिखा है, बहुत ही बढ़िया अर्श जी ।
ReplyDeletekya baat hai. uff!! kya khoob likhate hain......
ReplyDeleteये कैसे लोग हैं ,क्या खूब मुन्सफी की है. हमारे क़त्ल को कहते हैं खुदकुशी की है..
ReplyDeleteshaandaar likha hai janaab....
श्री मान, बधाई. क्या खूब लिखते हो . मैंने आपके ब्लॉग का चक्कर काट कर पाया की आपने कितनी सजगता से अपनी बात को शब्दों में पिरो कर कविता बना दी . फर्क इतना है की में अपनी बातो से ब्लॉग के जरिये गुफ्तगू करता हूँ . आपका भी स्वागत है . www.gooftgu.blogspot.com
ReplyDeleteuff! ye kavita to dil mein ghur kar gayi..
ReplyDeleteबहरे मुतकारिद मुरब्बा सालिम में बहुत अच्छी ग़ज़ल।
ReplyDeleteवो हुस्न-ए-शबा में (हुस्न-ए-) की जगह (हुस्ने) बहर की शर्त को पूरा करता है। मैं भी इस विधा में नया नया हूं उर्दू ठीक ठाक जानता हूं पर हुस्न-ए-शबा ,ख़ासकर शबा का मतलब नहीं समझ पा रहा हूं। कहीं आपने सबा कहते कहते शबा तो नहीं लिख दिया।