हाँ
जब भी
मैं अपने थके - थके से कदम ,
घुटती साँसे,
और
टूटती धड़कनों ,
की
तरफ़ बोझिल आंखों से ,
देखता हूँ,
तो ये
चमकती आंखों से
कहती है
सब
के
सब
हम तो नही ठहरे
फ़िर तुम क्यूँ ?
मैं अपने थके - थके से कदम ,
घुटती साँसे,
और
टूटती धड़कनों ,
की
तरफ़ बोझिल आंखों से ,
देखता हूँ,
तो ये
चमकती आंखों से
कहती है
सब
के
सब
हम तो नही ठहरे
फ़िर तुम क्यूँ ?
arsh bhai
ReplyDeletekavita ki baat to baad me karenge , yaar aap ja kahan rahe ho ... is blog jagat me aapka na hona ,hum sabko bahut dhuki karenga bhai .. isliye jahan bhi raho , kuch na kuch , kalam chalaya karo aur hamen darshan dete raho bhai ..
kavita me praan foonk diye hai aapke shabdo ne ... main to padhkar hi speechless ho gaya hoon . ek ek shabd daastan bayan kar raha hai ..
mera salaam aapko aur aapki lekhni ko
meri dil se badhai sweekar kariyenga
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
सवाल वाजिब है !
ReplyDeletegoya apna khayal to hai!
ReplyDeleteवाह अर्श जी..........
ReplyDeleteआज तो नया ही रूप देखने को मिला है आपका............
गहरी बात कही है आपने...................कुछ ही शब्द पर मुकम्मल बात
अर्श अपने जीने के अंदाज़ को, अपने व्यक्तित्व के आकाश को कितने कम शब्दो् मे ब्यान कर दिया है विजय जी ने उपर कहा है कि कविता मे प्राण फूँक दिये हैं मगर मै जानती हूँ कि तुम प्राण त्याग रहे अदमी मे भी प्राण फूँकने की क्षमता रखते हो तुम्हारी ये पँक्तियाँ दूसरों के लिये प्रेरणाप्रद और राह दिखाने वाली हैं मै जल्दी ही सब को बतने वाली हूँ कि तुम दुनिआ के 5000 ब्लो्गर्ज़् मे से कितना आगे हो जहाँ एक आध पेर्सेन्ट ही भारतिय हैं वेब दुनिआ मे छा रहे हो बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्
ReplyDeleteअर्श एक बात कहना भूल गयीकि जिस नज़र से ज़िन्दगी को देखते हो कविता का शीर्शक भी उसी तरह रखा करो पर मै शा्यद् भूल रही हूँ कि तुम्हे सरपराईज़ देना बहुत अछ्ह लगता है कदम थके थके मगर रफ्तार इतनी तेज़्! वाह्
ReplyDeleteकिधर भाग रहे हो अर्श भाई? बिना बताए! कोई खास ही प्रायोजन होगा? कविता अच्छी लगी।
ReplyDeletesakaratmak soch ko khubsurat labz dekar use aur khubsurat bana diya aapne....
ReplyDeleteजल्दी लौट के आइए, शुभकामनाएं
ReplyDeleteथोड़े में बहुत कहत गयी है आप की यह कविता..
ReplyDeleteआप ब्लॉग्गिंग से कुछ समय के लिए अवकाश ले रहे हैं.ब्लॉग जगत में आप की कमी जरुर मालूम होगी मगर नयी ताजा ग़ज़लों के साथ दोबारा आप आएंगे.प्रतीक्षा रहेगी.बहुत सी शुभकामनायें.
Arsh, Hum to naye hain blogging ki duniya mein....aapka blog kuch din hi huey hain padhe ..... Gazlein to kafi umda likhte hain aap..ye bhi socha ki itni achchi gazal likhne wale shaks ko to bollywood mein place milna chaiye....Phir laga shayad hamhe hi samajh kam ho... Poetry bhi achchi lagi humko.. Be happy always........Hope see you on blog very soon.
ReplyDeleteआपको पढने की आदत सी हो गई है
ReplyDeleteजल्दी आइयेगा
आपका वीनस केसरी
are bhai kuchh khush khabri hai kya.
ReplyDeletekavita umda hai.
jald lautkar shubh samachar do.
... बहुत खूब ।
ReplyDeletearsh yaar, mujhe caal karke batao ki ,kahan ja rahe ho aur kyon.. mujhe to kuch gadbad lag rahi hai ... [ agar shaadi karne ja rahe ho to theek hai ..yaar sochne ki koi baat nahi hai . hum sab ne shaadi ki hai aur dusaro ko kunwaaara nahi dekh sakte hai ... ha ha , isliye tum bhi shaadi kar hi lo ]
ReplyDeletewell jokes apart , kya baat hai bhai ..
mujhe to batao
vijay
09849746500
ये सवाल छोड़े कहाँ जा रहे हो अर्श भाई...सुंदर कविता
ReplyDeleteआउर अभी-अभी तरही के आपके अद्भुत शेरों के दीदार करके आ रहा हूँ...
आह !!!
और ये किधर का रूख है?
hmm....! aise sawalo ko jinda rakho.. Jijivisha ke liye zaruri hai
ReplyDeletethake kadam tut ti sanso...bojhil ankho se kahi himmat rakhte hai....thake thake se kadam sound nice....
ReplyDeleteन तुम ठहरो न हम
ReplyDeleteअरे भाई, कहां जाने की तैयारी में हैं? आपके लौटने की प्रतीक्षा रहेगी। और ये कविता तो आपकी गज़लों की ही तरह थोड़े शब्दों में बहुत कुछ बयां कर रही है।
ReplyDeleteहम तो नही ठहरे
ReplyDeleteफ़िर तुम क्यूँ ?
bahut achha khyaal hai...gehra vichaar
इसी तरह सच्चे मन से लिखते रहीयेगा
ReplyDeleteस्नेहाशिष,
- लावण्या
bahut badhiya .......
ReplyDeleteji haan Arshi ji.. chalte rehne ka naam hi zindagi hai...
ReplyDeleteवाह अर्श भाई,
ReplyDeleteआप तो बिना गजल भी कमाल कर देते हैं......
बहुत कम शब्द खूबसूरती से रखे हैं....
और फलसफा भी खूब गहराई लिए है.....
एक ही बात कहूंगा
ReplyDelete"अंदाज़ निराला है "
jivantta liye huye likhi hai rachna.
ReplyDeletenishchay hi behad khoobsoorat hongi wo aankhein jo thaharne ko nahin kahti.
ReplyDeletebahut accha likha hai.
आपके सुन्दर एहसास आपकी रचना को आपके ही शब्दों से सुशोभित कर रहे हैं............
ReplyDeleteअक्षय-मन
बंधु,छोटे बहर की बढ़िया ग़ज़ल.हाँ ,यह जरूर याद रहे कि
ReplyDeleteछंदों के बंधन में भावनाएं दम न तोडने पायें/
सस्नेह
डॉ.भूपेन्द्र
रीवा