Saturday, November 15, 2008

उनको नायाब देखा है ....

इक अजीब खाब देखा है
उनको नायाब देखा है

बड़ी मुश्किल में हूँ ,
ये क्या जनाब देखा है ,

वहीँ छलके है फकत ,
उम्दा शराब देखा है

मुझे भी मिलेगा
क्या
,वो अजाब देखा है

उनके जमाले रुख पे ,
कैसा आफताब देखा है

अर्श डूब गया हूँ मगर,
ताब को ताब देखा है


प्रकाश "अर्श"
१५/११/२००८

7 comments:

  1. उनके जमाले रुख पे ,
    कैसा आफताब देखा है ॥

    अर्श डूब गया हूँ मगर,
    ताब को ताब देखा है ॥
    waah bahut hi khubsurat

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  2. aisa lagta hai arsh, aap ne Ye khwaab 'bada lajawab 'dekha hai!

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  3. PRAKASH JEE
    AAPKI GAZAL ""UNKO NAAYAAB"" DEKHA HAI, ACHCHHI LAGI,

    YOON HI ACHCHHA AUR ACHCHHA LIKHTE RAHIYEGA .
    HAMAARI SHUBH KAAMNAAYEN
    AAPKA
    VIJAY

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  4. कमाल का अंदाज़ है आपका भी आपको बधाई

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  5. अर्श डूब गया हूँ मगर,
    ताब को ताब देखा है ॥

    waah!

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  6. अर्श डूब गया मगर कैसा अफताब देखा है
    सहारा ना दो मगर यूं तो लाज़वाब देखा है

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  7. प्यारे अर्श भाई,
    बहुत सुंदर, बहुत बेहतर ! ये हुई ना बात नायाब से पायाब हो जाने की ! कैचिंग कैचिंग गो ऑन गेट स्काई !
    और जो बतलाना चाहता हूँ वो ईमेल करूंगा वरना आप मिटा दोगे पिछली बार जैसे. हा हा !
    ढेर सारे स्नेह सहित. आपका अपना.

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आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...