तेरे दिल से ,मेरे दिल का रिश्ता क्या ।
तू मिलती, ना मैं मिलता, फ़िर मिलता क्या ॥
सोंच रहा ,क्यूँ तेरा ऐसे नाम लिया ,
याद है अब भी भूलता फ़िर तो भूलता क्या ॥
वो फलक जो दूर तलक जा मिलता है ,
जाता मैं तो वो वहां फ़िर मिलता क्या ॥
याद है आब भी तेरी सांसों की गर्माहट ,
राख हुआ था जलने को अब जलता क्या ॥
वर्षो पहले एक चमन होता था अपना ,
एक भी फुल अब "अर्श"वहां है खिलता क्या ॥
प्रकाश "अर्श"
२०/११/२००८
bhaavpurn rachna hai.
ReplyDeleteakhiri sher bahut achcha laga.
[aap ke epage ko visit kartey samy top par yah likha hua araha hai---TEMPLATE ERROR: Error during evaluation of comment-form]
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत खूब अर्श जी...बेहतरीन रचना...लिखते रहें...
ReplyDeleteनीरज
aakhiri sher khas taur par pasand aaya. bahut khoob andaze bayan
ReplyDeletebahut khubsurat
ReplyDeletesanso ki garmahat wali line gazab ki likh daali
ReplyDelete" vo phalak jo dur talak ja milta hai"
ReplyDelete" great thoughts and beautifully expressed"
regards
अंदाज़ में मिठास आती जा रही है!
ReplyDeleteबहुत खूब !!
ReplyDeleteअनोखा अंदाज़ है......
बहुत उम्दा रचना ......
शुभकामनाये.........
बहुत अच्छी रचना लगी।
ReplyDeleteवो फ़लक जो दूर तलक जा मिलता है
जाता मैं तो वो वहां फिर मिलता है।
क्या बात है!
आप सभी पाठक गणों का मेरे ब्लॉग पे बहोत स्वागत है ,आप सबों का स्नेह और आशीर्वाद की उम्मीद अगली रचानों में भी करता हूँ ये सिलसिला हमेशा बना रहे ..
ReplyDeleteआभार
अर्श
अच्छी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद.
अर्श,
ReplyDeleteजिस तरह की पोस्टें पढ़ी हैं उसके बाद आज के दिन किसी अलग सी पोस्ट को अच्छा कह पाने का मन ही है।
बहुत सुंदर कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
अर्श जी...
ReplyDeleteबहुत मंजू करीना में आपने ढाला है अपने निदा-ऐ-महफूज को..