Thursday, November 27, 2008

आज घर के एक कोने में बिखरा पड़ा हूँ मैं ....

हुई है ज़िन्दगी मेहरबान लो आबला दिया ।
मोहब्बत में हमें इनाम उसने गिला दिया ॥

आज घर के एक कोने में, बिखरा पड़ा हूँ मैं ।
यही किस्मत थी हमारी, यही सिला दिया ॥

कहती थी के करती है,मुझे टूट के मोहब्बत।
आई जो मेरे पास तो, मुझे इब्तिला दिया ॥

कभी फुरकत की बात पे,कहा चुप करो जी तुम ।
जाने लगी तो उम्र भर ,का फासिला दिया ॥

सी - सी के पहन लूँगा, वही चाके - कफ़न मैं ।
जिस नाज़ से"अर्श"तुने खाक में मिला दिया ॥

प्रकाश "अर्श"
२७/११/१००८

इब्तिला =पीडा,कष्ट । आबला =छाला

13 comments:

  1. " मोहब्बत और जिन्दगी दोनों से गिला जायज है... दोनों ही बेवफा है, सुंदर शेर.."
    Regards

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  2. अर्श,
    अच्छा लिख रहे हैं आप.
    खूब पढ़ा भी करें
    ख़ास तौर पर मशहूर ग़ज़ल गो
    के बारे में ज़रूर जानिए....
    आपको ढेरों शुभकामनायें.
    ===================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  3. सीमा जी ,और जैन साहब आप सबों का बहोत आभारी हूँ प्रोत्साहित करने के लिए,जैन साहब अभी तो मैं लिखने पढ़ने में बच्चे के समान हूँ ये क्रम तो ताउम्र चलता रहेगा,और सीमा जी आपके परस्पर स्नेह का अभिवादन कैसे करूँ ... आप दोनों का मेरे ब्लॉग पे बहोत स्वागत है आप लोगों का परस्पर स्नेह और आशीर्वाद बना रहे यही उम्मीद करता हूँ, आप लोगों का प्रोत्साहन प्रेरणा श्रोत है ....

    आभार
    अर्श

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  4. waah kya kahe khas kar tisra aur aakhari sher,vaise copy nahi kar sake to numer likh rahe hai.atisundar aur do urdu ke naye shabd arth sahit sikhe,bahut badhia.

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  5. अच्छी गजल है और आपका उपनाम भी। इसी तरह अर्श का हिस्सा बनें आप और आपकी रचनाएं।

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  6. BAHUT ACHCHHE. SAHAB MOBILE BROWSING KAR RAHA HOOM, TORA KAM LAFZ LIKHE.

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  7. This comment has been removed by a blog administrator.

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  8. Bahut behtar arsh bhai sunder likha aapne fasila diya. kya baat hai.

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  9. मैंने मरने के लिए रिश्वत ली है ,मरने के लिए घूस ली है ????
    ๑۩۞۩๑वन्दना
    शब्दों की๑۩۞۩๑

    आप पढना और ये बात लोगो तक पहुंचानी जरुरी है ,,,,,
    उन सैनिकों के साहस के लिए बलिदान और समर्पण के लिए देश की हमारी रक्षा के लिए जो बिना किसी स्वार्थ से बिना मतलब के हमारे लिए जान तक दे देते हैं
    अक्षय-मन

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  10. bahut khoobsurat likha hai.
    " kasme khate they ki na ruthenge kabi,
    aaj ek mazak pe hamare muh pher chal diye hai"

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  11. बहुत ही खूब अर्श जी

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  12. अरे साहेब .....ये क्या कर रहे हो ..इतना अच्छा लिखोगे तो हमे तो
    अपने लिखे पे शर्म आने लगेगी.....मजाक नही कर रहा अर्श भाई ..बहुत अच्छे ....भगवान् करे आप दिन दुनी रात चोगुनी तरक्की करे ..हमारी शुभकामनाये आप के साथ है

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आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...