कुछ बात है के हस्ती मिटती नही हमारी।
सदियों रहा है दुश्मन दौरें जहाँ हमारा ॥
शनिवार की सुबह ऐसे तो 11 बजे से पहले मेरी आँख नही खुलती कभी मगर आज का ये दिवस जैसे मेरे पुरे जीवन के लिए नही भूल सकने और मिटने वाला है । हमेशा से ही ये सोचता था के हर दिन ऐसा हो के हमेशा के लिए याद रह जाए मगर ये मूलतः सम्भव नही है ,हर एक के लिए उसके जीवन में ।
मुझे इस बात का जारा सा भी इल्म नही था के साहित्य ,हिन्दी भवन ,और मेरे गुरु जी एक साथ ही मुझे मिलेंगे। जैसे ही मैं हिन्दी भवन पहुँचा गुरु जी पहले ही पहुँच चुके थे समय पे जैसे ही मैंने उनका चेहरा पहली दफा देखा धन्यभाग मेंरे कितनी सहजता से उन्होंने मुझे गले लगने पे बिवश किया मेरे चरण छूने पे ,पता नही ये कैसी तस्कीन थी उनसे गले लग के एक अलग सी शान्ति और सुकून मिला जो पहले कभी भी एहसास नही हुआ ।
जब गुरु जी को नवलेखन के लिए सभागार के सबसे अगली पंक्ति में बैठने को कहा गया तो मैं ह्रदय से प्रफुल्लित और भाव बिभोर हो उठा इस बात का सहजता से अनुमान लगाया जा सकता है के भारत जैसे विशाल देश में एक छोटे से कसबे सीहोर का वो शांत मृदुल और विनम्र स्वाभाव का ब्यक्ति साहित्य जगत में आज सबसे पहली पंक्ति में बैठा है । शायद इस बात का अंदेशा उन्हें भी नही था ।जो मंच पे या खचाखच भरे सभागार में बैठे हजारो लोग थे ।
मंच पे साहित्य जगत के बड़े-बड़े हस्ताक्षातर श्री कुंवर नारायण ,अजित कुमार, अशोक वाजपयी, श्री कैलाश वाजपयी,और सुश्री रिता शुक्रल जी आसीन थे । वो गर्व महसूस कर रहे होंगे के उनके सामने ये सरल स्वाभाव का इंसान जो बैठा है उतराधिकारी के रूप में है, उसके हाथ में हिन्दी जगत का भविष्य बहोत उज्जवल है और सुरक्षित भी ।
ईस्ट इंडिया कंपनी १५ छोटी छोटी कहानियो का संकलन है । जिसमे सारे के सारे मोतिओं के समान कहानियाँ है को गुरु जी ने पिरोया है हमारे लिए ।
साहित्य जगत में अमिट दखल रखने वाली सुश्री रिता शुक्ला जी औरज्ञानपीठ के निदेशक श्री रविन्द्र कालिया जी ने पुस्तक का विमोचन किया ऐसा लग रहा था के जैसे माँ सरस्वती ख़ुद धारा पे आई है और उतराधिकारी को उसका राज तिलक कर रही है ,मुख्या मंत्री साहिबा थोडी देर थी तो एक बात सबको ध्यान रहे समय किसी का इंतज़ार नही करता ,हालाकिं वो आई मगर अफ़सोस जाहिर करने के सिवा उनके पास कुछ भी नही था ।आप सभी तो राजनीति, मसरूफियत और देर से आना ये सारे एक ही घडे के पानी पिने के समान है समझ सकते है।
पुस्तक विमोचन के बाद हम श्री कुंवर नारायण जी मिले और उनका आशीर्वाद लिया । साहित्य जगत और साहित्य से मेरी मुलाक़ात ये मेरी ज़िन्दगी में पहली दफा है रही थी, मैं उत्सुक था,सभी से मिलने केलिए ख़ुद गुरु वर मुझे नए और पुराने लेखको से मेरा परिचय करा रहे थे "अर्श" के रूप में ।
वहां से हम केन्नोट पैलेस में लंच लेने के लिए वही पे गुरु जी से विस्तार से बात होती रही डाईनिंग टेबल पे । फ़िर होटल गए वहां खूब गप्पे मारे , गुरु जी से सीखता रहा उनके आशीर्वचन सुनता रहा लेख और लेखनी के बारे में ।
शाम को थोड़ा घुमाने गए । घुमाते घूमते एक होटल में अल्पाहार लेने गए ,एक और बात है गुरु जी के सेहत से आप ये बात बिल्कुल नही कह सकते के ये इंसान खाने का खूब शौकीन है मगर सिर्फ़ शौक रखते है खाते नही ।
लौटने के बात देर रात तक होटल में बात चलती रही उनके साथ सोनू जी भी आए थे उनसे से भी मुलाक़ात हुई । फ़िर रात्रि १२ बजे मैं वापिस आगया ताकि सुबह वाली ट्रेन में जानी है इन दोनों लोगों को तो थोड़ा आराम का भी मौका मिले कल से है इन्हे सब तो नसीब था मगर आराम नही कर पा रहे थे मेरे मिलने से और कहूँ तो उत्सुकता से मिलने को लेकर॥
गुरु जी की पहली पुस्तक को सबसे पहले खरीदने का गौरव भी मुझे प्राप्त हुआ उनके हस्ताक्षर सहित और एक और लेखक श्री रविकांत जी की पुस्तक यात्रा को भी सबसे पहले मैंने ही ख़रीदा ॥
पुस्तक प्राप्ति का पता है १८, इन्स्तितुशनल एरिया ,लोदी रोड नई दिल्ली -११०००३
मूल्य मात्र रु .१३०/-
बस एक शे'र है के ...
वो मिले बिछड़ भी गए और चुप हो रहे
जैसे मुख्तशर सी बात में सदियाँ गुजर गयी ॥
प्रकाश'अर्श'
१५/०३/२००९
dhany bhaag आपके arsh जी
ReplyDeleteऐसे सुन्दर प्रसंग को अपने najar badh किया और सब के beech laye. guru जी को hamaari shubh kamnaayen
bilkul kushal patrakaar ,aur ek samarpit shishya ke roop men likha ye lekh tumhari tareef karne par mazboor karta hai. gur ke roop men guru ji ki kaabliyat to bayan ki hi hai saath hi tumhari apni bhi liyaqat jhalak rahi hai. bahut khoob guru aur shishya ki jai ho..........
ReplyDeleteबहुत अच्छा vivaran दिया आप ने इस pure samaaroh का.
ReplyDeleteआप के गुरू जी को और आप को भी dheron बधाई.
गुरूजी को दूसरे एक और blog पर बधाई दी थी आज dobara आप के marfat bhe देते हैं.
aap ke liye यह अविस्मरनीय संस्मरण रहा .
शुभकामनाओं सहित,
avismarniya aalekh...
ReplyDeletethnx
गुरु का सानिध्य ही गर्व की अनुभूति कराता है
ReplyDeleteबधाई.
ReplyDeleteArsh ji,
ReplyDeleteBhot soubhagyasali hain aap jo subir ji ka soujanya prapt hua...subir ji ko bhot bhot ..BDHAI...! Aapne wahan ta tamam vivran de kr hame bhi wahan tak pahunchaya aapka bhot bhot shukriya....!!
Aur haan ...sneh bnaye rakhne ke liye shukriaa...!!
आपसे जलन हो रही अर्श जी.....गुरू जी ने तो यूं मोबाईल पर एस.एम.एस कर के बता दिया था कि आप साथ हैं....और मैंने शायद पहली बार अपनी फौजी विवशता को कोसा होगा...
ReplyDeleteबधाई आपको
bhai arsh
ReplyDeletevaise to guru ji se sanchipt vivran mila tha magar aapne jo vistar se kaarykram ki jaankaaree dee uske liye dhanyvaad
aapka venus kesari
क्या बात है अर्श । कितना सुन्दर विवरण दिया आपने। अपने उस्ताद के प्रति इतना आदर भाव आपको वास्तव में अर्श पर पहुँचाएगा एक दिन। हमारा भी बहुत बहुत आशीर्वाद है आपको।
ReplyDeleteअर्श जी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरती से प्रस्तुत संस्मरण है आप और आपके गुरुवर को ढेर सारी शुभकामनाएँ ।
सस्नेह ।
श्याम कोरी 'उदय'
एक अच्छा संस्मरण !!!
ReplyDeletearsh ji , bahut hi bhaagyawan hai aap jo aap , whana par gaye aur apne guru se mile, aisa saubhaagya bahut kam logon ka hota hai ....
ReplyDeleteaapne itne ache dhang se poora vivran diya , ye bhi bahut badi baat hai ..
aapko is prayaas ke liye badhai ..
gurudev ji ki jai jo ..
mera pranaam , unhe ...aur der saari badhai ,is samman ke liye ..
aapka
vijay
अर्श भाई ये आपके पूर्व जन्म में किये पुण्यों का ही परताप है जो आप को गुरूजी का इतना लम्बा साथ मिला...एक हम हैं जो ना जाने कब से गला फाड़ के गा रहे हैं..." कब आओगे...जिस्म से जान निकल जायेगी तब आओगे...देर ना जो जाये कहीं देर ना हो जाये..." और गुरु जी बस मुस्कुरा देते हैं आते नहीं...कोई बात नहीं ,हम लगातार "हम इंतज़ार करेंगे...तेरा क़यामत तक..." गीत गा रहे हैं...
ReplyDeleteआपने बहुत अच्छा वर्णन दिया है पूरे कार्यक्रम का...ऐसे साहित्यकारों के दर्शन करना ही जीवन धन्य होने के सामान है....शीला जी नहीं आयीं या देर से आयीं जान कर हार्दिक प्रसन्नता हुई...जिनको साहित्य से लगाव ना हो उन्हें ऐसे कार्यक्रमों से दूर क्यूँ नहीं रखा जाता ये समझ में नहीं आता...
पंकज जी के इस सम्मान से पूरा ब्लॉग जगत सम्मानित हुआ है.
नीरज
उस शुभ दिन को हमारे सामने लाने का शुक्रिया...!
ReplyDelete"guru ji ke prti ye aalekh aapki shadrda suman ka prtik hai...aapko or aadrniy pankaj ji ko dhero shubhkamnayen"
ReplyDeleteregards
इसे कहते हैं कार्य्रक्रम से भी अच्छा उसका वर्णन । प्रारंभ का शेर आपने बहुत सटीक लगाया है । नीरज जी की बात भी सही है जाने क्यों हम लोग राजनैतिक लोगों को साहित्यिक कार्यक्रमो से दूर नहीं रख पाते ।
ReplyDeleteअच्छा है....जब अपने लोग इस कदर मिलते है तो दिल में सकूँ सा मिलता है...
ReplyDeletebade mohak dhang se is awismarniye pal ko aapne hamare sang baanta....bahut achha laga
ReplyDeleteप्रकाश जी
ReplyDeleteआप भाग्यशाली हैं, यह सही कहा है कि "उनका चेहरा पहली दफ़ा देखा धन्यभाग मेरे कितनी सहजता से उन्होंने मुझे गले लगने पर विवश किया मेरे छरण छूने पे, पता नहीं ये कैसी तस्कीन थी
उनसे गले लग के एक अलग सी शान्ति और सुकून मिला......."
प्रकाश, एक बात पर आप से सहमत नहीं हूं जब यह कहा कि "जब गुरू जी को नवलेखन के लिए सभागार के सबसे अगली पंक्ति मे बैठने को कहा गया तो ...." मैं आप से पूछता हूं कि आपको इस
बात में आश्चर्य क्यों हुआ? क्या आपको साहित्य-जगत के दिग्गजों की श्रेणी में सुबीर जी के स्थान में संशय था? मैं पहले भी अन्यत्र कह चुका हूं कि ज्ञान पीठ का जो सम्मान मिला है, वे उसमें संशय या विस्मय की बात नहीं है क्योंकि वे इसके योग्य हैं।
भई, कोई अचंभे क बात नहीं है, उनका स्थान तो पहली पंक्ति में होना ही था।
आपका यह विवरण बहुत अच्छा लगा जिसके लिए बधाई। सुबीर जी के ब्लाग पर उनकी कलम से इस बारे में कुछ सुनने या पढ़ने का आनंद लेने के लिए इंतजार है।
गुरुवार महावीर जी सादर चरणस्पर्श,
ReplyDeleteजी मैंने गुरु जी के पहले पंक्ति में बैठने को जब कहा गया तो मैंने ये नहीं लिखा है के मैं आश्चर्यचकित हो गया बल्कि मैंने ये कहा के मैं प्रफ्फुलित हो गया और भाव विभोर हुआ था ,क्युनके वह पे राजनितिक पक्ष के लोग पहले से ही काबिज थे पहले पंक्ति में कारण की यहाँ की मुख्यमंत्री सुश्री शिला दीक्षित जी आने वाली थी , और हम तीसरे पंक्ति में बैठे थे , जब गुरु देव को अल्गली पनकी में बैठने को कहा गया तो मैं भाव से भर गया .... इस बात को बिकुल भी अन्यथा न लिया जाए की उनकी काबिलियत में कोई शक है जब की उन्हें ज्ञानपीठ से नवाजा जा रहा है... येअपने आप में एक योग्यता है साहित्य के क्षेत्र में ... आपने शायद मेरे बात और भाव एक गौर नहीं किया...
आपको तथा गुरु देव को सादर प्रणाम.
आपका
अर्श
हिन्दी भाषा के विकास में अपना योगदान दें।
ReplyDeleteनये रचनात्मक ब्लाग शब्दकार को shabdkar@gmail.com पर रचनायें भेज सहयोग करें।
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र
अर्श जी वाकई ये सौभाग्य की बात है की ब्लॉगजगत और साहित्य जगत की एक हस्ती के साथ आप ने एक दिन बिताया भरे पुरे साहित्यिक माहौल में सच में ये गौरव बिरले लोगों को ही मिलता है ,खैर आपकी पैनी नजर से देखे गए दृष्टांत को आपकी लेखनी ने सभी ब्लॉग सदस्यों तक पहुंचा दिया पढ़ कर बहुत अच्छा लगा .पुस्तक को पाने की बड़ी ललक हो रही है अच्छा किया आपने पुस्तक प्राप्ति का पता भी दे दिया .आदरणीय सुबीर जी की पोस्ट मेल से प्राप्त हुई तो यह सब जाना जान कर अति प्रसन्नता हुई है ..........
ReplyDeleteसाधुवाद और शुभकामनायें
वाह भाई! क्या खूब लिखा है! यही कहा जा सकता है-
ReplyDeleteचार मिले चौंसठ खिले बीस रहे कर जोर
सज्जन सो सज्जन मिले बिकसे सात करोर
चि. 'अर्श'
ReplyDeleteआपने जो ऊपर लिखा है और आपके ईमेल से तो बिल्कुल समझ आगया। आपने जो लेख में विवरण किया है, वास्तव में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
आपकी अगली ग़ज़ल का इंतज़ार है।
महावीर शर्मा
अर्श साहब ,
ReplyDeleteबहुत खूब शमां बंधा है, आँखों में एक - एक मंज़र नज़र आ रहा है.
सही लिखा - ये सब किस्मत की बात है जो ज़िन्दगी में इतने अछे इन्सान से मिलने का मौका आये .
मैंने सुबीर जी एक बार फ़ोन पे बात की लगा जैसे लफ्ज़ - लफ्ज़ में सादगी है याकींकं ये सौ फीसदी सच है.
शाहिद "अजनबी"
आपके गुरूजी को हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteइस सान्निध्य के लिये बधाई अर्श जी...
ReplyDeleteआपको इस शुभ दिन के लिये बधाई .
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुतिकरण