तेरा चेहरा मुझे अच्छा लगे है ।
तू कातिल है मगर मुझ सा लगे है ॥
मेरी किस्मत कहाँ मुझको मिले तू
तुझे पा लू मुझे किस्सा लगे है ॥
तुम्हारी बात में ऐसा असर है
ये मिट के भी मुझे पुख्ता लगे है ॥
मेरी किस्मत में चलना ही है यारो
मेरी मंजिल मुझे रस्ता लगे है ॥
तुम उससे पूछते हो दोस्तो क्या
कि वो हर बात में बच्चा लगे है ॥
भुला पाउँगा इसको'अर्श' कैसे
तुम्हारा प्यार नित सच्चा लगे है ॥
बहर १२२२ १२२२ १२२
प्रकाश'अर्श'
२२/०३/२००९
मेरी किस्मत में चलना ही है यारो
मेरी मंजिल मुझे रस्ता लगे है ॥
तुम उससे पूछते हो दोस्तो क्या
कि वो हर बात में बच्चा लगे है ॥
भुला पाउँगा इसको'अर्श' कैसे
तुम्हारा प्यार नित सच्चा लगे है ॥
बहर १२२२ १२२२ १२२
प्रकाश'अर्श'
२२/०३/२००९
bahut khoobsurat gazal
ReplyDeleteतू क़ातिल है, मगर मुझसा लगे है ।
ReplyDeleteबहुत उम्दा कहा अर्श भाई ! प्राण जी का भी आभार इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए।
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteअर्श,
ReplyDeleteआपने बहुत ही अच्छी कहन की गजल कही है
ख़ास कर मतला
प्राण जी से आपकी गजल के बारे में कुछ सवाल पूछना चाहता था मगर उनके ब्लॉग का लिंक नहीं मिल रहा है इस लिए आपसे गुजारिश है पूछने की
1.गजल में ४ ,६, ८ शेर होने से कोई दोष होता है या नहीं
2.आपकी गजल की बहर मैंने १२२२, १२२२, १२२ निकली है क्या ये सही है ?
3.पाँचवे शेर का पहला शब्द (तुम) है जो एक दीर्ध है क्या बहर के लिए इसको गिरा कर लघु कर सकते हैं ?
आख़री सवाल आपसे पाँचवे शेर का काफिया आपसे गलत टाइप हुआ है या वो (बछा) ही है
अगर बछा ही है तो इसका मतलब क्या होता है
अर्श जी गलत नजरिये से मत लीजियेगा मेरा मन गजल को लेकर बड़ा जिज्ञासू है और ये तो गुरु जी ने भी कह दिया है की मैं बहुत सवाल पूछता हूँ
अगर हो सके तो इनका उत्तर मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट के रूप में दे दीजियेगा
आपका वीनस केसरी
वाह आप तो आला शाय्रर साबित हो रहे हैं! बड़ी मेहनत जो की है आपने!
ReplyDelete--
ज्ञान का अपरमपार भण्डार यही हैं!
---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति है !!!!!!!
ReplyDelete"too kaatil hai magar mujhsa lage hai." Bahut sundar rachna. khoob rahi. abhar.
ReplyDeleteन जाने क्यूँ तू मुझे अपना लगे है
ReplyDeleteतेरी लिखी ग़ज़ल बहुत खूब लगे है
तू क़ातिल है, मगर मुझसा लगे है
ReplyDelete" खुबसूरत ग़ज़ल.."
Regards
बहुत सुन्दर लगा हर शेर .बढ़िया लिखी है आपने गजल यह विशेष रूप से पसंद आया
ReplyDeleteमेरी किस्मत कहाँ मुझको मिले तू
तुझे पा लूँ मुझे किस्सा लगे हैं
तुझे पा लू मुझे किस्सा लगे है ॥
ReplyDeleteमेरी किस्मत कहाँ मुझको मिले तू
bahut khoob...!
bahut khoobsurat arsh kamaal ka likha hai, har sher lajawaab hai. bahut mubarak.
ReplyDeleteवीनस जी,
ReplyDeleteआपके पहले सवाल का जवाब ये है के आप ग़ज़ल में ऐसे तो कई शे'र रख सकते है मगर मूलतः ५-७ रखे जो सही है,
२. हाँ आपने जो बहर लिखी है वो उसी बहर पे है ग़ज़ल.
३. किसी भी व्यंजन के बाद कोइ स्वर आये तो दोनों अक्षरों की संधि हो jaatee है .
जैसी --तुम उसका ,तुम अपने ,घर अपना आदि .
यूँ घर अपना में २२२ मात्राएँ हैं लेकिन ज़रुरत
पड़ने पर १२२ मात्राएँ भी बना सकते हैं .
४. जहाँ तक बछा का सवाल है तो वो टाइपिंग में गलती हो गई थी...
आपने जो प्रश्न किया वो मुझे अच्छा लगा...
अर्श
वाह वाह साहब.....
ReplyDeleteएक से बढ़ कर एक शेर ....
हर शेर तराशा हुवा, प्राण जी ने इसमें जीवन फूंक दिया है
अर्श जी
ReplyDeleteग़ज़ल बहुत पसंद आई। साथ में प्राण जी जैसे गुरू का प्रसाद हो तो
कहने को कुछ रहता ही नहीं। आपने वीनस जी के उत्तर बहुत सुंदर
ढंग से दिए हैं जिससे बड़ी ख़ुशी हुई।
रवायती तौर पर ग़ज़ल में ५,७, ९, ११ ...... आदि २५ शे'र तक लिखे जाते थे। मैंने पढ़ी तो नहीं है लेकिन सुना है कि १०० अशा'र तक देखे गए हैं। अब इन उसूलों का कोई वक़ार नहीं है। हां, फिर भी कम से कम ५ अशा'र की उम्मीद की जाती है।
पांचवा शे'र 'लयात्मक संधि' का अच्छा शे'र है। उर्दू में अक्सर
'अलिफ़ वस्ल' इस्तेमाल होता था लेकिन हिंदी में ग़ज़ल लिखने के कारण व्यंजन के बाद कोई भी स्वर आजाए तो लयात्मक संधि हो जाती है।
बधाई।
महावीर
bahut hi achha....
ReplyDelete"मेरी किस्मत में चलना ही है यारो
मेरी मंजिल मुझे रस्ता लगे है ॥"
सभी शेर अच्छे लगे.
ReplyDeleteख़ास कर--'मेरी मंजिल मुझे रास्ता लगे है.'
एक न ख़तम होने वाली बेबसी की सफल अभिव्यक्ति एक पंक्ति में है.
arsh bhai ,
ReplyDeleteitni acchi gazal ke liye deron badhai ..saare sher shaandar hai , lekin meri manzil mujhe rasta lage hai ... is the best .. it shows the zeal of person to get his dream ,at any cost.
bahut acche sir ji
badhai ho..
अर्श साहब, क्या गजब लिखा है! मजा आ गया।
ReplyDeleteमजा आया अर्श जी,
ReplyDeleteएक बात और जो शेर आप हमारे ब्लॉग पर चिपका कर अआते है वो भी लाजवाब होता है,,
मेरे ख्याल से उच्चारण करते वक्त,,,,तुम उससे पूछते हो,,,,के बजाय
तुम्मुसे करके पढा जाता है,,,,
अतः ये एकदम सही है,,,,बाकी मुझे गिनती का नहीं,, उच्छारण के पता लगता है,,,
बधाई,,,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तियाँ...लाजवाब !!
ReplyDelete__________________________________
गणेश शंकर ‘विद्यार्थी‘ की पुण्य तिथि पर मेरा आलेख ''शब्द सृजन की ओर'' पर पढें - गणेश शंकर ‘विद्यार्थी’ का अद्भुत ‘प्रताप’ , और अपनी राय से अवगत कराएँ !!
तुम उससे पूछते हो दोस्तो क्या
ReplyDeleteकि वो हर बात में बच्चा लगे है ॥
bahut khoob.....aapka chehra bhi behad masoom hai vaise.
क्या खूब अर्श भाई.....जी खोल कर दाद दे रहा हूँ
ReplyDeleteएकदम चुस्त और क्यों न हो जब खुद प्राण साब ने देखा है तो
tumhari baat me aisa asar hai ki mit ke bhi mujhe sacha lage bahut hi sunder nazam hai apki kalam me dam hai khoob likhen badhai
ReplyDeletebahut khoob!!! bahut aacha likha haa
ReplyDeleteWah arsh ji waise to poori ghazal hi acchi hai par ye line dil ko chu gayi:
ReplyDeleteमेरी किस्मत में चलना ही है यारो
मेरी मंजिल मुझे रस्ता लगे है ॥
ek meri taraf se (behar pe dhyaan mat dijiyega please abhi naya naya hoon):
meri wo zindagi jike batana,
kaha jo mera tujhe jhootha lage hai.
(behar main likhne ka prayas waise poora hai...)
बहुत ही बेहतरीन कहा है आपने.... वाह भाई वाह... जियो..
ReplyDeleteसुंदर सोच और लिख रहे हैं अर्श भाई...ख़ुदा करे कि फ़र्श पर कभी न आएं...बस ज़मीन और कुदरत से जुड़े रहें...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी ग़ज़ल ...मान को छु गई .
ReplyDeleteसच्चे प्यार के होसले ऐसे ही होते है ....बस उससे चलना ही तो है ....सामने वाला अपना है या वेगाना कुछ खबर नहीं होती बस अपना पता होता है की हम उनके है बहुत अच्छे !!!
gargi
feelings44ever.blogspot.com
तेरा चेहरा मुझे अच्छा लगे है
ReplyDeleteतू क़ातिल है मगर मुझ-सा लगे है
वाह ! वाह !!
मतला पढ़ते ही यही लफ्ज़ निकले जुबां से ...
ख्यालो-लफ्ज़ की खूबसूरती से भरपूर ग़ज़ल .....
और उस पर 'मीर' का लहजा ....
बहुत ही कामयाब कोशिश है
चौथे शेर में लफ्ज़ 'यारो'
लहजे की खूबसूरती को कम करता है....
ये मेरी ज़ाती राए है बुरा मत मनायियेगा .
एक बहुत अच्छी ग़ज़ल पर मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं .
---मुफलिस---
तेरा चेहरा मुझे अच्छा लगे है
ReplyDeleteतू कातिल है मगर मुझ सा लगे है
वाह जी वाह ...बहोत खूब...!!
अर्श जी,
तेरी बात में ऐसा असर है
जिस्म चीर के सीधे दिल में लगे है ....!!
दिल को घायल करते है जो अपने से लगते है ,
ReplyDeleteदिलको छुनेकी कोशिश करते है तभी वो अपने लगते है ....
लोग तो नजर करते नहीं कभी घायल पर कभी ,
वो ही तो अपने है जो खून से नाता रखते है ...
woh kaatil hai magar mujhsa lage....boht hi achha likha....chere mehai ayena ke ayene me hai chehra..maloom nahi kon kisse dekh raha hai...
ReplyDeletearsh kafii achchha aur original likhate hain. tazagi bhare ehsason ko masus karaa dete hain
ReplyDeletebadhiya ghazal ..........:)
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