परम श्रधेय गुरु देव श्री पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल ,आप सबके सामने प्रस्तुत है ,आप सभीका प्यार और आशीर्वाद का आकांक्षी हूँ.... आप सभी को होली की अनंत -असीम शुभकामनाएं सहित ....
बहर ... २२१ २१२१ १२२१ २१२
भरती रही वो सिसकियां देखा कोई न था ।
किस चाल से चला के ज्युं आया कोई न था ॥
किस मौज से खड़ा हुआ खंडहर है देखिये ।
कैसे कहूं के दिल यहां टूटा कोई न था ॥
आंखें दो काली ऐसे थीं मशहूर शहर में ।
दोनों जहां में जैसे के दूजा कोर्इ न था ॥
देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही ।
उस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था ॥
मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर ।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था ॥
प्रकाश'अर्श'
०५/०३/२००८
लाजवाब अर्श भाई....यदि कहने की इजाजत हो तो मुझे अब तक की आपकी सर्वश्रेष्ठ गज़ल लगी...
ReplyDeleteवाह एक-एक शेर एक्दम नपा-तुला और गज़ब की अदा लिये और खास कर ये "किस मौज से खड़ा है.." वाला तो उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ !
बधाईयाँ एक बेहद मनभावन ग़ज़ल पर
Arsh jee,
ReplyDeleteBade pyaar se aapkee nayee gazal padh
gayaa hoon.Ek-ek sher aslee motee kee tarah hai.
mujhe aapke gazal behad achchhee lagee hai
Badhaaee
Aapkee gazal bade pyar se padh gayaa hoon.Ek-ek
ReplyDeletesher aslee motee kee tarah hai.Aapkee gazal mujhe
behad achchhee lagee hai.Badhaaee.
अब अर्श अर्श कहा जाए के अश अश अश किया जाए ? सवाल बस सवाल है! कितनी बेहतरीन बात कही अर्श आपने अहा ! दिल जीता आज फिर हमारे भाई ने। और सुनिए अबकी दफ़े अपने उस्ताद सुबीर जी को भी हमारा आदाब रवाना कीजिएगा। बहुत ख़ूब बहुत ख़ूब प्यारे अर्श भाई।
ReplyDeleteअर्श जी
ReplyDeleteएक कठिन बहर पर कसी हुई गजल कही है आपने
देता रहा वो धुप में ..............................
मुझको तसल्लियाँ तो मिली ........................
बहुत ही सुन्दर शेर
--
आपका वीनस केसरी
आख़िरी शेअर में बिल्कुल सही बात कह रहे हो, ऐसा ही होता है। बधाई अच्छी ग़ज़ल!
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत ढंग से व्याक्त की आप ने दिल की बात, ओर अन्तिम वाला शेर तो गजब का लगा.
ReplyDeleteधन्यवाद
ये ग़ज़ल बताती है कि कम शेर होना किसी ग़ज़ल की कमजोरी नहीं होती । श्वान के कई बच्चे होते हैं किन्तु सिंहनी के दो या तीन ही होते हैं । बहुत सारे शेर लिखना अपनी ही ग़ज़ल को कमजोर करना है । ग़ज़ल में पांच या सात ही शेर होने चाहिये ।
ReplyDeleteदेता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही ।
ReplyDeleteउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था ॥
.......बहुत बढिया
अर्श साहब
ReplyDeleteबहूत ही खूबसूरत ग़ज़ल और उके बोल, हर शेर लाजवाब है
गुरु जी का आशीर्वाद तो हो jaandar ग़ज़ल तो banegi ही
ये शेर behatreen लगा मुझे
मुझको तसल्लियां तो मिलीं सबसे'अर्श' पर ।
देखा पलट के जब भी तो अपना कोई न था ॥
arsha bhai,
ReplyDeletesorry for late arrival , i was on tour.
itne acche guru ke itne ache shishya ho , dgazal to acchi banegi hi ..
bahut badhai ..
aakhri line ultimate hai ..
main bhi kuch naya likha hai ,padhiyenga jarur.
waah waah waaah.....!
ReplyDelete4th sher kya kahu.n...bahut sundar aur naveen upama...!
badhaii
behad sarahniya, khoobsurat gazal, har sher manja hua,dheron..........................
ReplyDeletebadhai.
sorry arsh late ke liye, virus ke karan bete ko poori h/disc format karni padi. isliye raat ko na padh saka.
kya baat hai comment post nahin kar pa raha hun.
ReplyDeleteWah arsh ji kya kamaal ke sher kahe hain aapne
ReplyDeleteHar sher apne aap mein aapki kalam ki taqat ko batata hua
Pankaj ko bhi bhaut bahut dhanyvaad
वाह वाह ...गुरु छा गए ....कमाल लिखा है
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
गुरु की मानते रहो ग़ज़ल तो अपने आप बन जायेगी
ReplyDeleteBahut achhi gazal hui hai...
ReplyDeleteMujhe matle ki doosri line samajh nahi aai..
Aakhiri ke do sher bahut pasand aaye mujhe...
Good one....
Yogesh
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल लिखी है.
ReplyDelete'देता रहा वो धूप में....'शेर बहुत पसंद आया.
देर से पहुँचने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
ऐसे ही सुन्दर ग़ज़ल लिखते रहो..शुभकामनायें हैं.
-कमेन्ट फॉर्म ke सन्देश में वर्तनी ठीक करीए.'प्रेरणास्त्रोत 'लिखीये अर्श ...likha hua--'प्रेरणाश्रोत 'गलत शब्द है.
भाई आप बहुत अच्छा कहने लगे हैं.और भी बेहतर कहोगे,बस लगे रहो, गुरु कृपा से.
ReplyDeleteपलाश वाला शेर बहुत अच्छा है.
बहुत खूब अर्श भाई
ReplyDeleteप्रकाश जी
ReplyDeleteक्या बात है! बहरे-मज़ार की इस शकल में यह ग़ज़ल बड़ी ख़ूबसूरती से लिखी है। जल्दी ही ज़िहाफ़ात वगैरह सीख गए हो, यह देखकर बड़ी ख़ुशी हुई।
प्रकाश, यह तो देखा ही होगा कि हिंदी में उर्दू के हिसाब से लिखने में हमारे हिंदी ग़ज़लकारों को आपत्ति होने लगती है। ज़रूरी तो नहीं, शायद किसी को हिंदी में 'ज्युं' अजीब सा या ग़लत लग रहा हो। लेकिन अगर इसे उर्दू में लिख कर देखा जाये तो इसे 'ज्युं, मानने में कोई तक़लीफ़ नहीं होगी और वज़न सही हो जाता है।
ग़ज़लियत के हिसाब से निहायत आला ग़ज़ल कही जा सकती है। मुझे तुम्हारी बहरे-ख़फ़ीफ़ वाली ग़ज़ल भी बहुत अच्छी लगी।
अलग अलग बहरों पर लिखते रहो। आपके गुणी गुरू का प्रताप है।
महावीर शर्मा
होली के पावन त्योहार पर हार्दिक बधाई
ReplyDelete'देता रहा वो धूप में छाया गुलों से ही
ReplyDeleteउस पेड़ में पलाश के पत्ता कोई न था'
-साधुवाद.
आप सभी श्रेष्ठ गुनी जनों का मेरे ब्लॉग पे हार्दिक स्वागत है ..आदरणीय गुरु प्राण शर्मा जी ,परम श्रधेय गुरु जी , और गुरु स्वरुप श्री द्विज जी ,साथ में दिगंबर जी,गौतम जी ,भाटिया जी ,विनय जी वीनस जी रश्मि जी,विजय जी ,स्वप्न जी अल्पना जी,अग्रणी गुरुओं में श्री महावीर जी ,और मेरी बड़ी बहिन स्वरुप श्रधा जी .आप सभी मेरे ब्लॉग पे आये इससे बड़ी होली और मेरे लिए क्या होनी है ... आप सभी का प्यार और आशीर्वाद मिला ये मेरे लिए सुभाग्य की बात है.. आप सभी का आशीर्वाद बना रही उम्र भर यही चाहूँगा....आप सभी को भी मेर्रे तरफ से होली की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं...
ReplyDeleteआपका
अर्श
रंगों उमंगों और तरंगों के त्योहार होळी की आपको सपरिवार मंगलकामनाएं
ReplyDeletegood
ReplyDeletevery good arsh..........bahut hi khoobsurat tarike se apne apni bhavnao ko darshaya haa.......
ReplyDeletebahut aache..........
Arsh,
ReplyDeleteAprateem, anupam likhte hain aap...itnee saaree tippaniyon ke baad aur kuchh likhun, itnee mujhme qaabiliyat kahan?
Anek shubhkamnayen!
अत्यंत सुन्दर अभीव्यक्ति | अति सुन्दर
ReplyDeleteTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page