उठे हैं जब भी ये हाँथ , तो दुआ के लिए
मुझको मुज़रिम न बनावो खुदा के लिए ॥
किस तरह उनसे कहूँ के, नही है मेरा कसूर
कोई लफ़्ज़ ही नहीं है अब जुबां के लिए
कुछ तो एहतियात करो ,ऐसे ना करो तुम
मान भी जावो मेरा कहा खुदा के लिए ॥
आए नही हो तुम ,जब भी किया वादा
अच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए ॥
अकबर बना है "अर्श" वो जिसने किया गुनाह
कोई नही है अत्फ़ यहाँ बे-जुबां के लिए ॥
प्रकाश "अर्श"
७/११/२००८
अकबर = महान , अत्फ़ = दया ,कृपा
किस तरह उनसे कहूँ के नही है मेरा कसूर
ReplyDeleteकोई लफ़्ज़ ही नहीं है अब जुबां के लिए
बहुत सुन्दर अर्श जी
आए नही हो तुम ,जब भी किया वादा
ReplyDeleteअच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए ॥
" great one, each and evry line is so impressive and leave a impact after reading.."
Regards
pehla shair hasil e ghazal hai aaapka,
ReplyDeletebhooot khoob
pahla aur doosraa sher badhiyaa hai,,,ye kuch khataktaa hai-"अच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए" ..baaki samajh nahi aaye :)
ReplyDeleteमैं आप सभी पाठकों का हार्दिक स्वागत करता हूँ.
ReplyDeleteऋतेश भाई शायद आपका इशारा शायद कॉलेज के दिनों के तरफ है ..
अच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए ......
आए नही हो तुम ,जब भी किया वादा
ReplyDeleteअच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए ॥
क़सम से क़ायमत शे'र कहा है, वाह!
बहुत ही दिलकश...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteबधाई बंधुवर
ReplyDeleteइस खूबसूरत कविता के लिये
शुभकामनाएं
आए नही हो तुम ,जब भी किया वादा
ReplyDeleteअच्छा था इंतजार वो तजुर्बा के लिए ॥
wah kya baat hai!
aaj aap ki ghazal padhi..achcha laga--
[ye right click disable kaisey kiya???kripya batayengey???]
अच्छी रचना है.
ReplyDeleteबहुत खूब ! बधाई.../
ReplyDeletebahut badhiya...bahut sundar...kram banaaye rakhen !
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