एक बड़ा अच्छा वाकया है ये ।
वो ना समझे है क्या नया है ये ?
हम मोहब्बत में हो गए जुदा ।
लोग कहते इसे कायदा है ये ॥
देख सरगोशी है मोहल्ले में
है मिली उनको जायका है ये ॥
बह रही मुझमे वो लहू बनके
वो मेरी है बस माज़रा है ये ॥
उम्र के जैसी लम्बी हुई दूरी
सामने खड़ा है फासला है ये ॥
लोग कहते है बेवफा है"अर्श"
मैं अगर मानु तो बा-वफ़ा है ये॥
प्रकाश"अर्श"
०४/०१/२००९
उम्र के साथ लम्बी हुई है दूरी ..बहुत बढ़िया लगा यह .बहुत सुंदर लिखते हैं आप
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा मतला है
ReplyDeleteबहुत खूब.
कमाल का लिखा है, बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteअरे वाह कया बात है, बहुत खुब.
ReplyDeleteधन्यवाद
क्या बात है... बढ़िया रचना है भई... बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteहम मुहब्बत में हो गए जुदा,
ReplyDeleteलोग कहते हैं कायदा है ये।
वाह अर्श भाई बहुत बढ़िया ग़ज़ल।
सारे शेर बेहतर वाह वाह
जुदाई का दर्द वो क्या जाने
ReplyDeleteजो कायदे तक ही सिमटे रहते हैं.......बहुत अच्छी रचना
ek baar fir ek umda gajalo ka guldasta sanjoya hai aap ne bahut khub ursh ji. asha hai agea bhi our behater hi apdne ko melaga.
ReplyDeleteवाह क्या लिखते हैं आप. वैसे मै भी गज़लों का शौकीन हु पर वक़्त नहीं मिलता की पन्ने पर उतार सकूँ. आप की शायरी देख मज़ा आ गया.
ReplyDeleteनए साल की बधाई.
अर्श भाई जलन हो रही है आपसे...खुद द्विज जी आपकी तारीफ कर रहे हैं...मतला है ही इतना जबरदस्त
ReplyDeleteसचमुच अनूठा...बधाई
द्विज जी नमस्कार,
ReplyDeleteआप जैसा बिद्वान मेरे ब्लॉग पे आए मैं तो धन्य हो गया.इससे बढ़कर मेरे लिए प्रोत्साहन और क्या हो सकता है,आप जैसे गुनी लोगों का मुझे आशीर्वाद मिलाताराहे यही उम्मीद करता हूँ,आप का मेरे ब्लॉग पे बहोत बहोत स्वागत है ..
और गौतम जी आपको जलन नही हो रही है मैं ये जनता हूँ ये तो आपका प्यार है ........
मौदगिल जी बहोत दिनों के बाद दर्शन दिया है .इनका भी सदर आभार.
विनय भाई,प्रकाश जी ,रश्मि प्रभा जी,रंजना जी और राज जी साथ में साथ में राजीव जी और चंदर जी का प्यार और स्नेह प्राप्त हुआ ... इसका तो मैं कर्जदार हो गया ,आप सभी का प्रोत्साहन उत्प्रेरक जैसा है ....
सादर आभार
अर्श
बहुत ही सुंदर लिखा है ये वाला शेर बह रही मुझमे काफी लुभावना है....उम्र के जैसी इसके लिए शब्द नही...
ReplyDeleteलोग कहते हैं बेवफा लोगो पर मत जाइये आपने सही माना........
बहुत अच्छा लिखा है फिर से
अक्षय-मन
भाई देर से आया उसके लिए माफ़ी लेकिन अगर नहीं आता तो यकीनन गुनाह करने जैसे बात हो जाती क्यूँ की एक अच्छी चीज को न पढ़ना भी गुनाह ही होता है न...बहुत अच्छा कहा है आपने...बधाई...मतला वाकई दमदार है.
ReplyDeleteनीरज
... प्रसंशनीय ।
ReplyDeletebahut achchhi gajal hai bhai.
ReplyDeleteक्षमा देरी से आने का,
ReplyDeleteग़ज़ल तो आपकी कमाल कर गयी, लाजवाब है
उम्र के जैसे लम्बी हुई दूरी ....फासला है वो...
ReplyDeleteक्या बात है!!!!!!!!!!
अर्श ,आप की यह ग़ज़ल बहुत ही अच्छी लगी..
सारे ही शेर दाद के काबिल हैं..
bahut badhiya gajal hai , anand aa gaya .
ReplyDeleteवो वफ़ा है या बेवफा इस बात पर तवज्जो क्यों दे हम ,
ReplyDeleteइश्ककी इबादतमें हमने तो सजदा कर लिया उनकी यादमें ...
हम उनकी यादों से कैसे महरूम रहे दोस्त ...
आलम तो ये है मेरी रूह बनकर कैदमें है मेरे दिलमे ,
उसे मैं वफ़ा कह दूँ या जीने की वजह कह दूँ ?????