पुरानी रंजिश को हवा दीजे ।
फ़िर वही सूरत दिखा दीजे ॥
आज मजबूर-ऐ हालात दिल है
मर ही जाने का हौसला दीजे ॥
हाथ में चार पैसे है बचे अब
ना कहना चाँद-तारे ला दीजे ॥
मैं ग़लत हूँ मुजरिम हूँ अगर
मुझको फंदे पे लटका दीजे ॥
आखिरी ख्वाहिश भी छुपा लूँगा
आप जल्दी से दफना दीजे ॥
आप ही कन्धा आप ही जनाजा
"अर्श"कब्र का रास्ता दिखा दीजे॥
प्रकाश"अर्श"
०६/०१/२००९
आप =मैं ख़ुद ,
सही मे बहुत अच्छा .आप ही कन्धा आप ही जनाजा ........धार तेज़ हो रही भाई लिखते रहिये . मैं तो मानता हूँ की शायर अपनी जिन्दगी मे बहुत लिखता है लेकिन चंद कलाम उसे अमर कर देते है
ReplyDeleteभाई ऐसी बातें क्यूँ करते हो अभी से मरने मारने की बातें
ReplyDeleteक्यूँ जान ले रहो हमारी....
एक ही बात है तुम्हारी जाए या हमारी....
जैसे दो जिस्म एक जान ....
अच्छा अंदाज़ है हमारी जान लेने का.....
अक्षय-मन
अर्श भाई य्रुरोप मै तो आप की कविता सच है, ओर भारत मै यह सब होने वाला है, युरोप मे लोग अपने मरने से पहले ही अपनी कब्र की जगह, खर्च, खाने पीने का खर्च, ओर कब्र पर चढने वाले फ़ुलो का खर्च अपने जीते जी ही दे देते है.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत खूब, हर एक शेर वाह वाह करने लायक है अर्श भाई। दिल जीत लिये।
ReplyDeletebahut hi badhiyaa
ReplyDeleteक्यूँ लिख दी इतनी दर्द भरी ये ग़ज़ल,
ReplyDeleteहो सके तो अर्श,आज ये राज़ हमें बता दीजे.
शेर सभी खूब हैं लेकिन सभी दर्द में डूबे हुए हैं.
ज़िन्दगी से मायूस एक अच्छी ग़ज़ल है....
अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
aap hi kandha, aap hi jnaajaa......... kya khyalat hai......... bemisaal.
ReplyDeleteregards
बहुत खूब अर्श भाई...कुछ शेर बेहतरीन हैं...
ReplyDeleteनीरज
अपने कंधो पे अपनी लाश लिए फिरता हूँ,
ReplyDeleteपहले ख़ुद को दफ़न करूँ या फातिया पढूं
...............अर्श जी आप का कलाम पढ़ कर अनायास ही ये अल्फाज़ निकल आए है ...भाई एक शेर ने तो गज़ब ही कर दिया .
हाथ में चार पैसे बचे हैं अब
ना कहना चाँद तारे ला दीजे अब .
मुबारिकबाद
ग़ज़ल गायन ग़ज़ल लेखन...........अरे भाई यही तो मैं भी करता हूँ.....बेशक अच्छी ग़ज़ल नहीं लिखता.........अच्छी गा तो लेता ही हूँ.....अर्श भाई...........अपन भी फलक पे हैं..........बेशक आपसे आगे नहीं.........अरे आगे-पीछे की किसको पड़ी है....सॉरी....वाकई आपकी ग़ज़ल सही "जगह"पर हैं....सच.........बस थोडी गहराई और ला दो ना बॉस....कुछ गहरी तबियत के लोगों को पढ़ जाओ......और फिर देखो.........ख़याल के पंछी कहाँ जाकर ठहरते हैं....!!
ReplyDeleteहाथ में चार पैसे है बचे अब
ReplyDeleteना कहना चाँद-तारे ला दीजे ॥
सत्य से जूझती हुयी गाल है अर्श साहब
उम्दा है बहुत
बहुत बढ़िया कहा आपने
ReplyDeleteवाह अर्श जी...आप को खुद अपनी ये रचना कैसी लगती है नहीं मालुम,लेकिन अभी तक जितना आपको पढ़ा है,ये सबसे बेहतरीन...तराशे हुये शब्द और एकदम साँचे में ढ़ले मिस्रे...भई वाह
ReplyDeleteऔर खास कर "हाथ में चार पैसे हैं बचे अब / न कहना चाँद-तारे ला दिजै.."
निदा फ़ाज़ली वाला इंटरव्यू सुना उन्होंने तो ग़ज़ब जवाब दिया मेरे सवाल का कि सब्जी वाले को कोई सब्जी बेचना थोड़े ही सिखाता है, बड़ी छोटी सी बात को एक बड़ी बात बना डाला उन्होंने, वाह! धन्यवाद चेताने के लिए।
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
हर शेर की अपनी दम है, बहुत बेहतरीन. बधाई.
ReplyDelete'आप ही कंधा आप ही जनाजा
ReplyDelete"अर्श" कब्र का रास्ता दिखा दीजे '
-सुंदर पंक्तियाँ.
Arsh,
ReplyDeleteMere paas tum jaison ke liye shabd hamesha apoorn hote hain....unme Akshay bhi shamil hai...behtareen likhte ho...aur mai dwidha manas sthiteeme rehti hun ki kahan aur kya tippanee dun!
Khai, Arsh meree shrinkhala to chalhee rahee hai...useeke neeche to aapne tippanee dee....use poorn roop diye bina kaise chhod saktee hun ?
Iskaa matlab, janab ne hamaree shrinkhalaa padheehi nahee, kyon, sahee kaha na hamne...? Chalo koyi baat nahee...thodee khichayee karneka to mera haq banta hai...aaj koshish karke aglee kadi likh doongee...padhna aur phir batana, theek ?
इश्कमें फ़ना होना तो सब जानते है ,
ReplyDeleteपर उनकी यादोंको सजाकर रखना दिल में मुश्किल हो जाता है ,
कब्र की मंजिल तो आसान होती है दोस्त ,
पर यादोंके साथ जिंदगी को जिले जो वह सिकंदर कहलाता है ....
वाह वाह अर्श भाई। बहुत बेहतरीन। अरे मगर आप हैं कहाँ ? जल्द वापस आइए भाई, लोगों को इन्तज़ार है आपका।
ReplyDelete