Sunday, January 11, 2009

रे मर जाएगा क्यूँ सोचे है ...

गुरु देव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल ...

कल क्या होगा,क्यूँ सोचे है
मर जाएगा, क्यूँ सोचे है ॥

खुद को तक, गिरवी रक्‍खा है
बिक जाएगा ,क्यूँ सोचे है

अपना घर कितना अपना है
वो आएगा ,क्यूँ सोचे है ॥

शेर नहीं दिल, के छाले हैं
वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है ॥

बीत गया जो, रीत गया जो
फ़िर लौटेगा ,क्यूँ सोचे है ॥

अर्श है बेबस ,इस दुनिया में
पछतायेगा , क्यूँ सोचे है ॥

प्रकाश"अर्श"
११/०१/२००९

43 comments:

  1. This comment has been removed by a blog administrator.

    ReplyDelete
  2. होके नीलाम फ़िर गिरवी की
    अब क्या रखेगा क्यूँ सोंचे है ॥

    अपना घर कितना अपना है
    लो कौन बसेगा क्यूँ सोंचे है ॥
    waah bahut khub,jo hona hoga,kya sochna.

    ReplyDelete
  3. उसनैं जो सोची वो सोची
    पर तू इतना क्यूँ सोचे है :)

    वाह भाई वाह ! कमाल का गीताज्ञान !

    ReplyDelete
  4. बहुत बेहतरीन लिखा है arsh जी
    damdaar ग़ज़ल

    ReplyDelete
  5. बहुत सुन्दर, आपकी इस कविता पर हमारा दिल उमड़ आया.... धन्यवाद कुबूल करें....!!

    ReplyDelete
  6. बहुत सुलझी हुई रचना
    ====================
    सस्नेह बधाई
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    ReplyDelete
  7. seer nahi dil ke chale hai .............

    ye panktiya aap ke gajel ke jan bangaye hai......

    great

    maa saraswati ka berdan aap per bana rahe.

    ReplyDelete
  8. अपना घर कितना अपना है
    रहना था ,क्यूँ सोंचे है ॥
    बढ़िया पढ़कर तबियत खुश हो गई . बहुत उम्दा .

    ReplyDelete
  9. वाह! अर्श। बढ़िया शेर। मत्ले से ’रे’ हटा कर तुमने सही किया। चौथे शेर और मक़्ते को ज़रा सी अदल-बदल के साथ बहर में ला सकते हो।

    ReplyDelete
  10. कल को क्या सोचना....
    क्या लिखा है ! बहुत ही अच्छा लगा

    ReplyDelete
  11. अंजाम की परवाह क्यों भाई जब जो करना है बस करना है जो कहना है कहना है ......बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने बहुत पसंद आई है
    लेकिन आप तो जरूर सोचते रहना
    भाई अगर नही सोचोगे तो इतना बढ़िया कैसे लिखोगे हमारे लिए

    ReplyDelete
  12. ati uttam rachna, sabhi sher lajawab. wah. swapn

    ReplyDelete
  13. hi bhaiya...
    is ghazal k liye koi shabd hi nahi hai mere paas..
    just excellent... :)
    agar aap permission de to is ghazal ko main apne blog par aapke naam k sath post karna chahunga.

    ReplyDelete
  14. आशीर्वाद कभी बेकार नही जाता.........
    बहुत ही उम्दा लिखा है भाई........
    मेरे भाई.....
    थोड़ा बहुत आशीर्वाद हमें भी दिया करो....


    अक्षय-मन

    ReplyDelete
  15. बडई वजनदार बातें-उम्दा रचना. बधाई हो!!!

    ReplyDelete
  16. सही कहा अर्श जी, पर सोचना तो पड़ता ही है, हम इंसान जो हैं, क्‍योंकि‍ दर्द से हमारा गहरा रि‍श्‍ता जो है।

    ReplyDelete
  17. बहुत बढ़िया ग़ज़ल है!भाव भी खूब हैं...सुबीर जी का आशीर्वाद मिल गया आप को ---बस...अब ऐसे ही सुंदर लिखते रहीये-

    ReplyDelete
  18. दूसरे और तीसरे शेर में काफिया ग़लत है उसे ठीक करें । आपके काफिये में ''गा'' होना चाहिये । आपने ना को काफिये में लिया है । यदि आपने मतले में एक मिसरे में ना और एक में गा लिया होता तो ये चल जाता लेकिन आपने मतले में दोनों मिसरों में गा लिया है सो आपको गा ही लेना है ।

    ReplyDelete
  19. बहुत अच्छा है दोस्त. ग़ज़ल की बारीकी को आप जानते हो. बहुत बहुत मुबारकबाद.

    ReplyDelete
  20. ATI SUNDAR..KEEP IT UP.
    ''स्वामी विवेकानंद जयंती'' और ''युवा दिवस'' पर ''युवा'' की तरफ से आप सभी शुभचिंतकों को बधाई. बस यूँ ही लेखनी को धार देकर अपनी रचनाशीलता में अभिवृद्धि करते रहें.

    ReplyDelete
  21. अच्छी ग़ज़ल कही है आपने.

    ReplyDelete
  22. arsh bhai khoob likh rahe ho. maza aata hai aapki rachnayen padhna mein. ek nazar mera doosra blog abhi naya banaya hai , rough sa hi hai"tumhare liye " ek nazar dekhen meri pratham prakashit pustak, ki hi rachnayein hain. swapn

    ReplyDelete
  23. thank you bhaiya...!!
    mene aapki ghazal mere blog par post kar di h...
    :))

    Puneet Sahalot

    ReplyDelete
  24. मैं तो इतनी देर से आया कि अब कुछ कहने को बचा ही नहीं अर्श जी...
    बधाई हो एक चुस्त बहर की दुरूस्त गज़ल कहने पर

    ReplyDelete
  25. गुरूजी के आशीर्वाद से बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बन पढ़ी है...बधाई...
    नीरज

    ReplyDelete
  26. वाह! अर्श। अभी फिर पढ़ी ये गज़ल। बिल्कुल दुरुस्त और बहुत अच्छी लग रही है अब तो। ये आपकी नायाब कुछ रचानों में से होगी।

    ReplyDelete
  27. aap ne bahut sundar gajal likha hai,aap aisi hi sundar gajal likhte rahe,aisi meri subhkamna hai,aap kabhi mere blog ke follower baniye,aap ka swagat hai.
    http://meridrishtise.blogspot.com

    ReplyDelete
  28. aap ne mere blog ke follower ban kar mera samman badhya hai,aap ka prem aur sahyog isi tarah milta rahe,isi asha me,

    ReplyDelete
  29. वाह वाह प्यारे ‘अर्श’ भाई ! बहुत बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ दी. सुबीर साहब की इस्लाह काम आ रही है. मगर एक बात मेरी भी आज मानो तो, ज़रा सोंचे की अनुस्वार निकाल कर उसे सोचे बनाओ.
    बस देखो ग़ज़ल का वज़्न कैसे बढ़ता है. बहुत शुभ कामनाओं सहित.

    ReplyDelete
  30. hello bhaiya...!!!
    main janna chahunga ki 'NAZM' kya hoti h..??
    mujhe is bare me kuchh pata nhi h...
    jo kuchh mere dil me aata hai me wo likh deta hun.. mene baki cheezo par kabhi dhyan hi nahi diya. :(

    waiting for ur reply... :)

    Puneet Sahalot

    ReplyDelete
  31. आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

    ReplyDelete
  32. ग़ज़ल छोटी बहर की हो तो और भी कठिन हो जाते है, सृजन के लिये, मगर वह जब बनती है तो वह काफ़ी सरलता से, और तरलता से अपनी बात दिल के अंदर समा जाती है.उसका वज़्न यूं ही मुख्तसर सी बात से ही आता है.

    जैसे, तनहा तनहा मत सोचा कर, मर जायेगा, मर जायेगा.

    सुबीर जी का सुझाव अमल में लाया ही होगा. अब तो कहीं कोई खामी नज़र नहीं आ रही.

    क्या आप गाते है? या धुन बना सकते है? इस गज़ल में बहुत संभावनायें हैं. हिंदयुग्म के आवाज़ के प्रयोग भी हो सकते है.

    ReplyDelete
  33. आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

    ReplyDelete
  34. शेर नहीं दिल, के छाले हैं
    वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है
    बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है. बधाई.

    ReplyDelete
  35. Bahut behtareen gazlen liki hain 'arsh ji'. Aapko hamari shubhkamnayen.

    ReplyDelete
  36. वाह वाह वाह!भाई बहुत ही अच्छा लिखा है. एक एक शेर लाजवाब...हम तो पहले ही शेर पर निसार हो गए!

    ReplyDelete
  37. jo beet gaya so reet gayaa----arshji aapne to kamaal kar dyaa agar ye pehla hai to aakhiri kaisa hoga bhai bahut bahut mubarak aur mangalmaamnaaye

    ReplyDelete
  38. Very good Arsh
    I learned a new beher today by this gazal of yours.
    I think, i'll be able to write something based on this beher.. Will let u know, if i'll be successful.

    मुबारकबाद कुबूलें

    ReplyDelete

आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...