कल क्या होगा,क्यूँ सोचे है
मर जाएगा, क्यूँ सोचे है ॥
खुद को तक, गिरवी रक्खा है
बिक जाएगा ,क्यूँ सोचे है ॥
बिक जाएगा ,क्यूँ सोचे है ॥
अपना घर कितना अपना है
वो आएगा ,क्यूँ सोचे है ॥शेर नहीं दिल, के छाले हैं
वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है ॥
बीत गया जो, रीत गया जो
वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है ॥
बीत गया जो, रीत गया जो
फ़िर लौटेगा ,क्यूँ सोचे है ॥
अर्श है बेबस ,इस दुनिया मेंपछतायेगा , क्यूँ सोचे है ॥
प्रकाश"अर्श"
११/०१/२००९
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ReplyDeleteहोके नीलाम फ़िर गिरवी की
ReplyDeleteअब क्या रखेगा क्यूँ सोंचे है ॥
अपना घर कितना अपना है
लो कौन बसेगा क्यूँ सोंचे है ॥
waah bahut khub,jo hona hoga,kya sochna.
उसनैं जो सोची वो सोची
ReplyDeleteपर तू इतना क्यूँ सोचे है :)
वाह भाई वाह ! कमाल का गीताज्ञान !
बहुत बेहतरीन लिखा है arsh जी
ReplyDeletedamdaar ग़ज़ल
बहुत सुन्दर, आपकी इस कविता पर हमारा दिल उमड़ आया.... धन्यवाद कुबूल करें....!!
ReplyDeleteबहुत सुलझी हुई रचना
ReplyDelete====================
सस्नेह बधाई
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
seer nahi dil ke chale hai .............
ReplyDeleteye panktiya aap ke gajel ke jan bangaye hai......
great
maa saraswati ka berdan aap per bana rahe.
बहुत बढिया .........
ReplyDeleteअपना घर कितना अपना है
ReplyDeleteरहना था ,क्यूँ सोंचे है ॥
बढ़िया पढ़कर तबियत खुश हो गई . बहुत उम्दा .
वाह! अर्श। बढ़िया शेर। मत्ले से ’रे’ हटा कर तुमने सही किया। चौथे शेर और मक़्ते को ज़रा सी अदल-बदल के साथ बहर में ला सकते हो।
ReplyDeleteकल को क्या सोचना....
ReplyDeleteक्या लिखा है ! बहुत ही अच्छा लगा
अंजाम की परवाह क्यों भाई जब जो करना है बस करना है जो कहना है कहना है ......बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने बहुत पसंद आई है
ReplyDeleteलेकिन आप तो जरूर सोचते रहना
भाई अगर नही सोचोगे तो इतना बढ़िया कैसे लिखोगे हमारे लिए
ati uttam rachna, sabhi sher lajawab. wah. swapn
ReplyDeletehi bhaiya...
ReplyDeleteis ghazal k liye koi shabd hi nahi hai mere paas..
just excellent... :)
agar aap permission de to is ghazal ko main apne blog par aapke naam k sath post karna chahunga.
आशीर्वाद कभी बेकार नही जाता.........
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लिखा है भाई........
मेरे भाई.....
थोड़ा बहुत आशीर्वाद हमें भी दिया करो....
अक्षय-मन
बडई वजनदार बातें-उम्दा रचना. बधाई हो!!!
ReplyDeleteबडई=बड़ी
ReplyDeleteसही कहा अर्श जी, पर सोचना तो पड़ता ही है, हम इंसान जो हैं, क्योंकि दर्द से हमारा गहरा रिश्ता जो है।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल है!भाव भी खूब हैं...सुबीर जी का आशीर्वाद मिल गया आप को ---बस...अब ऐसे ही सुंदर लिखते रहीये-
ReplyDeleteदूसरे और तीसरे शेर में काफिया ग़लत है उसे ठीक करें । आपके काफिये में ''गा'' होना चाहिये । आपने ना को काफिये में लिया है । यदि आपने मतले में एक मिसरे में ना और एक में गा लिया होता तो ये चल जाता लेकिन आपने मतले में दोनों मिसरों में गा लिया है सो आपको गा ही लेना है ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा है दोस्त. ग़ज़ल की बारीकी को आप जानते हो. बहुत बहुत मुबारकबाद.
ReplyDeleteATI SUNDAR..KEEP IT UP.
ReplyDelete''स्वामी विवेकानंद जयंती'' और ''युवा दिवस'' पर ''युवा'' की तरफ से आप सभी शुभचिंतकों को बधाई. बस यूँ ही लेखनी को धार देकर अपनी रचनाशीलता में अभिवृद्धि करते रहें.
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने.
ReplyDeletearsh bhai khoob likh rahe ho. maza aata hai aapki rachnayen padhna mein. ek nazar mera doosra blog abhi naya banaya hai , rough sa hi hai"tumhare liye " ek nazar dekhen meri pratham prakashit pustak, ki hi rachnayein hain. swapn
ReplyDeletethank you bhaiya...!!
ReplyDeletemene aapki ghazal mere blog par post kar di h...
:))
Puneet Sahalot
मैं तो इतनी देर से आया कि अब कुछ कहने को बचा ही नहीं अर्श जी...
ReplyDeleteबधाई हो एक चुस्त बहर की दुरूस्त गज़ल कहने पर
गुरूजी के आशीर्वाद से बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बन पढ़ी है...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
वाह! अर्श। अभी फिर पढ़ी ये गज़ल। बिल्कुल दुरुस्त और बहुत अच्छी लग रही है अब तो। ये आपकी नायाब कुछ रचानों में से होगी।
ReplyDeleteaap ne bahut sundar gajal likha hai,aap aisi hi sundar gajal likhte rahe,aisi meri subhkamna hai,aap kabhi mere blog ke follower baniye,aap ka swagat hai.
ReplyDeletehttp://meridrishtise.blogspot.com
aap ne mere blog ke follower ban kar mera samman badhya hai,aap ka prem aur sahyog isi tarah milta rahe,isi asha me,
ReplyDeleteवाह वाह प्यारे ‘अर्श’ भाई ! बहुत बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ दी. सुबीर साहब की इस्लाह काम आ रही है. मगर एक बात मेरी भी आज मानो तो, ज़रा सोंचे की अनुस्वार निकाल कर उसे सोचे बनाओ.
ReplyDeleteबस देखो ग़ज़ल का वज़्न कैसे बढ़ता है. बहुत शुभ कामनाओं सहित.
Waah ! bahut sundar.
ReplyDeletehello bhaiya...!!!
ReplyDeletemain janna chahunga ki 'NAZM' kya hoti h..??
mujhe is bare me kuchh pata nhi h...
jo kuchh mere dil me aata hai me wo likh deta hun.. mene baki cheezo par kabhi dhyan hi nahi diya. :(
waiting for ur reply... :)
Puneet Sahalot
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
ReplyDeleteग़ज़ल छोटी बहर की हो तो और भी कठिन हो जाते है, सृजन के लिये, मगर वह जब बनती है तो वह काफ़ी सरलता से, और तरलता से अपनी बात दिल के अंदर समा जाती है.उसका वज़्न यूं ही मुख्तसर सी बात से ही आता है.
ReplyDeleteजैसे, तनहा तनहा मत सोचा कर, मर जायेगा, मर जायेगा.
सुबीर जी का सुझाव अमल में लाया ही होगा. अब तो कहीं कोई खामी नज़र नहीं आ रही.
क्या आप गाते है? या धुन बना सकते है? इस गज़ल में बहुत संभावनायें हैं. हिंदयुग्म के आवाज़ के प्रयोग भी हो सकते है.
आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....
ReplyDeleteशेर नहीं दिल, के छाले हैं
ReplyDeleteवो समझेगा ,क्यूँ सोचे है
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है. बधाई.
Bahut umda..
ReplyDeletebahut khubsurat.....
ReplyDeleteBahut behtareen gazlen liki hain 'arsh ji'. Aapko hamari shubhkamnayen.
ReplyDeleteवाह वाह वाह!भाई बहुत ही अच्छा लिखा है. एक एक शेर लाजवाब...हम तो पहले ही शेर पर निसार हो गए!
ReplyDeletejo beet gaya so reet gayaa----arshji aapne to kamaal kar dyaa agar ye pehla hai to aakhiri kaisa hoga bhai bahut bahut mubarak aur mangalmaamnaaye
ReplyDeleteVery good Arsh
ReplyDeleteI learned a new beher today by this gazal of yours.
I think, i'll be able to write something based on this beher.. Will let u know, if i'll be successful.
मुबारकबाद कुबूलें