क्या हुस्न है, क्या जमाल है ।
खुदाया तिरा, क्या कमाल है ॥
वो सितमगर है,मगर फ़िर भी ।
पूछता वही तो ,मेरा हाल है ॥
वक्त ने तो मुझे,ठुकरा दिया था ।
उसने थामा तो,हुआ बवाल है ॥
अपना सबकुछ,गवां कर मैंने ।
वो मिला फ़िर ,क्या मलाल है ॥
इक सदा है ,मुझसे जुड़ी हुई ।
वो सदा भी,उसका सवाल है ॥
है चाँदनी में,धूलि हुई या"अर्श"
मेरी नज़र ,का इकबाल है ॥
प्रकाश "अर्श"
०२/१२/२००८
इकबाल = सौभाग्य ,
"arsh" bhai bahut hi khubsurat.....
ReplyDeletekhubsurti se aapne apni gazal mei utara hai masumiyat ke is husn ko hum to bhai masumiyat hi kahainge.aap jo bhi samjho.....
बहुत अच्छा. धन्यवाद.
ReplyDeletehttp://popularindia.blogspot.com/2008/12/blog-post.html
महेश
बड़ी प्यारी प्रविष्टि. आभार .
ReplyDeleteवो सितमगर है,मगर फ़िर भी ।
ReplyDeleteपूछता वही तो ,मेरा हाल है ॥
वक्त ने तो मुझे,ठुकरा दिया था ।
उसने थामा तो,हुआ बवाल है ॥
अपना सबकुछ,गवां कर मैंने ।
वो मिला फ़िर ,क्या मलाल है ॥
waah bahut hi badhiya
"वो सितमगर है..." वाह...खूबसूरत ग़ज़ल...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुंदर गजल लिखी है आप ने.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही बढ़िया लिखा आपने1 दिल खुश हो गया1 बधाई1
ReplyDeleteअर्श जी पिछले कुछ समय से अस्वस्थ चल रहा था काफी दिन हॉस्पिटल में रहना पड़ा,जैसे ही ठीक होना शुरू हुआ आप के सामने हूँ ,आपने अपनी चिंता जताई पढ़ कर बहुत अच्छा लगा ..आप जैसे मित्रों के होते हुए तो जिंदगी जीने का हौसला होता है ......बहुत बहुत शुक्रिया ......अभी आपकी रचनाओं को पढ़ना बाकि है..शीघ्र ही कमेन्ट प्रेषित करूँगा ..धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल ...एक एक शेर में रवानी है ...
ReplyDeleteवक्त ने तो मुझे ठुकरा दिया था ,
उसने थमा तो मचा बवाल है ......क्या खूब लिखा है .
बहुत सुंदर और सरल ग़ज़ल लिखी है.सभी शेर अच्छे हैं.
ReplyDeleteनिखार बरक़रार है, बधाई!
ReplyDeleteबहुत बढिया गज़ल है।बधाई।
ReplyDeleteअच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकारें
ReplyDelete... प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना है।
ReplyDeleteशायरी बहुत अच्छी है...
ReplyDeleteआप सभी पाठकों का दिल से ढेरो आभार जो मेरे लिए वक्त निकला...
ReplyDeleteसभी का सादर आभार ..
अर्श
लय और गति अच्छी है इसमें, भाव से बंधे हुए।
ReplyDeleteकमाल है भाई कमाल है....यहाँ तो हर कोई कर रहा धमाल है...हर किसी के हर्फ़ बड़ा जमाल है...और गाफिल भी यह सब पढ़-पढ़ कर हो रहा निहाल है....भाई धन्यवाद....ऐसी रचना हेतु...!!
ReplyDeleteBahut behtareen bahut behtareen pyaare Arsh bhai. Ab baat paida hone lagee hai jee. Kitnee sahaj baangee hai yaar aapkee. Vaah Vaah. Aur mujhe to aapne baakhoob apne saath kar hee liya hai, "vakta ne to mujhe Thukra diya tha, usne thamaa to hua -bavaal- hai" hai na ha ha !
ReplyDeleteबवाल साहब जब मैं ये शे'र लिख रहा था तो एक बरगी आपकी याद तो जरुर आई थी ,आप सभी पाठकों का स्नेह इसी तरह से बना रहे यही उम्मीद करता हूँ....
ReplyDeleteआभार
अर्श
aapki ye gazal bahut acchi hai ,
ReplyDeleteman ko kahin choo gayi ..
badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
ghazl achhchhi hai magar ek khami ki or dhyan dila raha hoo.
ReplyDeleteapna sab kuchh ganva kar maine
vo mila phir kya malal hai
apna sab kuchh ganva kar maine se lagta hai ki kuchh paane ki baat hogi magar "vo mila fir" galat ho gaya hai.
is sher ke dono misro me sambandh toot gaya hai. ise shayad do-phad hona kahte hai.
apna sab kuchh gava kar maine "use paaya fir" hona chahiye tha magar bahar se khariz ho jaye ga. mufaaeelun me likha jaye to "use paaya" jaisa kuchh hona chahiye.
ummeed hai otherwise nahi lege.
हां जी पकड़ में आ रहे हो भाई अनानिमस जी, कम-अज़-कम अर्श ने वो काम तो कर ही दिया जो कोई और ब्लागर कर न पाया के आपसे मुफ़ाइलुन उगल्वा लिया. जब सब जानते ही हो तो आ जाओ न भाई सामने क्या नामालूम (Anonymous) का रुत्बा ओढ़ कर बैठे हो ? लोग तो ख़ुश ही होंगे न जो आप पायाब हो जाएंगे हमको. क्यों अर्श भाई ठीक कहा ना मैनें इनसे ?
ReplyDeletejanaab kya khoob jasbaat hai!!!behetreen rachna hai dost!!!
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