वो रात कभी का भुला दिया ।
जो ख्वाब जगे थे सुला दिया ॥
वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में
इस बेदिली ने फ़िर रुला दिया ॥
जो करता रहा जुर्मो का सौदा
मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥
रहने लगा मिजाज से आज-कल
जिस वक्त से हमको भुला दिया ॥
क्या बात थी तुम मुकर गए
किस बात पे यूँ लहू ला दिया ॥
आवो ना आजावो"अर्श"वरना
ज़िन्दगी ने दाम पे झुला दिया ॥
प्रकाश"अर्श"
१६/१२/२००८
मुखालिफ-सफ=बिरोधियों की पंक्ति
दाम=फंदा ,मुन्सफी=फैसला॥
एक शे'र खास तौर से विनय भाई(नज़र) के लिए...
लिखो सानी अब तुम नज़र
मैंने तो मिसरा उला दिया ॥
देखो भई अगर यह ग़ज़ल सन 1780 के आस-पास की होती तो चल जाती पर आज कल यूँ लिखने का रिवाज़ नहीं रहा! पर सुन्दर प्रयास है जो कि सराहनीय है!
ReplyDelete---------------
चाँद, बादल और शाम
http://prajapativinay.blogspot.com/
उर्दु नही आती। इस लिए पूरी बात समझ मे नही आई।वैसे अच्छी लगी आपकी गज़ल।
ReplyDeleteमैं भी नहीं समझ सकी।
ReplyDeleteजो करता रहा जुर्मो का सौदा
ReplyDeleteमुन्सफी में उसको बुला दिया ॥
बहुत खूब
बहुत ही खूब लिखा है भाई....
ReplyDeleteवो करता रहा जुल्मों का सौदा
मुन्सफी में उसको बुला लिया
ये वाला शेर तो जबरदस्त है
जुल्मो का सौदा क्या बात कही है मान गए उस्ताद....
कुछ खास नही पर थोड़ा बहुत हमने भी लिखा है....
तशरीफ़ लाइयेगा इतंजार है मेरे सरताज.......
अक्षय-मन
बहुत खुब बहुत सुंदर शेर
ReplyDeleteधन्यवाद
सुंदरतम...... बधाई संभालो... मित्र
ReplyDeleteजो करता रहा जुर्मो का सौदा
ReplyDeleteमुन्सफी में उसको बुला दिया ॥
-बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी है अर्श.
शब्दों का बड़ा खजाना है आप के पास.
beautiful creation
ReplyDeleteregards
aapko meri taraf se badhai bahut sundar likha aapne
ReplyDeleteअर्श भाई
ReplyDeleteआपका तो फैन हूं ही। एक बढिया ग़ज़ल पेश की है आपने कहीं-कहीं तलफ्फुज़ ठीक नहीं है उन्हें सुधारने मात्र की देरी है, फ़िर देखिये वाह!वह्
waah !वाह ! बहुत ही सुंदर लिखा है.सुंदर ग़ज़ल है.
ReplyDeleteदेर से आने के लिए मुआफी दोस्त......ये शेर
ReplyDeleteरहने लगा मिजाज से आजकल
जिस वक़्त से हमको भुला दिया......
सुभान अल्लाह...
कहाँ हैं अर्श भाई आपकी कमी खल रही है!
ReplyDelete'वो रात कभी का भुला दिया' क्या यह उर्दू व्याकरण के हिसाब से ठीक है.? आप अब नौसिखिया नहीं हैं, बहर का ध्यान रखें. उर्दू न जाननेवालों की वाह-वाह में गलतियाँ कौन बताएगा? अन्यथा मत लीजिय आपकी नाराजगी का जोखिम उठाकर भी कमी की तरफ इशारा करने का मकसद सिर्फ़ इतना है की आगे और बेहतर लिखें.
ReplyDelete- आचार्य संजीव 'सलिल'
संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
संजीव जी नमस्कार,
ReplyDeleteआपके द्वारा दी गई सलाह सर माथे पे ,मेरे हिसाब से उर्दू ब्याकरण के बारे में अभी मैं अपने पाठको को पुरी तरह से संतुष्टनही कर पा रहा हूँ आगे से इस बात का ख़याल रखूँगा .. आखिर में यही कहूँगा के अभी ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में सिखाने के रास्ते पे हूँ अभी तो बहोत कुछ सिखाना बाकि है आप जैसे गुणी लोगों से ... आपका स्नेह क्रमशः बना रहे यही उम्मीद करता हूँ .....
आपका
अर्श
नज़र में मिरी "अर्श", ये दुनिया-ए-फ़ानी
ReplyDeleteहै मिसरा-ए-उला, है मिसरा-ए-सानी