मैं भी, किस दर्जे, दीवाना निकला ।
जो था मेहरबां,नामेहरबां निकला ॥
देता रहा मुझे,जो तस्सलियाँ उम्रभर
वो कहता रहा हा -हा ,ना-ना निकला ॥
जाने लगा तो ,दो -चार जख्म दे गया
देख वो नामेहरबां,मेहरबां निकला ॥
फ़िर किसी रोज,वो तड़पकर आया
मिली तस्कीन,मगर अब्ना निकला ॥
मिले थे जिस उम्मीद से"अर्श"भरम में
काटों की तिजारत,सा मेहमां निकला ॥
प्रकाश "अर्श"
१४/१२/२००८
तिजारत=खरीद-बिक्री ,अब्ना =अवसर
तस्कीन = शान्ति ॥
bahut achha likha hai aapne...
ReplyDelete"देता रहा मुझे,जो तस्सलियाँ उम्रभर
वो कहता रहा हा -हा ,ना-ना निकला ॥
जाने लगा तो ,दो -चार जख्म दे गया
देख वो नामेहरबां,मेहरबां निकला ॥"
bhaiya aapse ek request hai..
pls aap aapki ghazals k saath kuchh typical words k meanings b add kijiye...
mujhe 'taskin' or 'tijaarat' ka mtlb nhi pata h.. :((
सुंदर अभिव्यक्ति. धन्यवाद अर्श जी.
ReplyDeleteबहुत ही सच्चाई भरे शेर आप ने लिखे है, अपने ही धोखा देते है.
ReplyDeleteधन्यवाद
waah aaj to puri gazal kayamat dha rahi hai,har sher bahut behtarin bahut badhai.
ReplyDeleteवाह-वाह अर्श जी बहुत खूब।
ReplyDeleteवो कहता रहा हा-हा,ना-ना निकला
ReplyDelete...बहुत खूब
अर्श भाई , हर बार लगातार बहुत खूब लिखते है आप , अगर फोटो न लगा होता तो आपकी उमर आपके कलाम से जब लगाते तो आपको पके बालो और बड़ी उमर बाला समझते
ReplyDeleteकिसके बारे में बात कर रहे हो, कहीं मेरे बारे में तो नहीं, अरे छोड़ो यार मज़ाक कर रहा था, बढ़िया अनुभूति!
ReplyDeleteधीरू भाई आपकी इस तरह के प्रशंसा मार्गदर्शन साथ में और बेहतर लिखने केलिए प्रेरित करता है ,. ..ये तो सब अल्लाह का रहम माँ सरस्वती की कृपा,माता पिता साथ में गुरु जनों का आशीर्वाद और आप जैसे भाईओं का स्नेह है . साथ में मेरे सरे पाठको का मेरे ब्लॉग पे ढेरो स्वागत है .. और सरे लोगों का शुक्रगुजार हूँ जो मेरे से अदना के लिए अपना कीमती वक्त निकाला..विनय भाई अगली ग़ज़ल में आपके लिए एक शे'र खास रखूँगा ... बहोत बहोत आभार आप सबों के लिए .....
ReplyDeleteअर्श
"अर्श" भैया बहुत ही अच्छा लिखा है......
ReplyDeleteअक्षय की बधाई भी कबूल करें.....
अक्षय-मन
मै समझ गया तूने क्या मुन्सफी की है
ReplyDeleteकत्ल कर के कहते हो खुदकशी की है
kitni sacchi baat kahi aapne ,
ReplyDeleteaapki gazal mujhe hamesha hi acchi lagti hai
bahut badhai ,
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
जाते वक्त दो चार जख्म दे गया वो महरवान निकला क्या बात है /सरे ही शेर सुंदर
ReplyDeleteजाने लगा तो ,दो -चार जख्म दे गया
ReplyDeleteदेख वो नामेहरबां,मेहरबां निकला ॥"
bahut hi khuub likha hai --poori ghazal hi achchee lagi Arsh..likhtey raheeye.
[thanks--haan last kuchh dino busy thi,ghar mein samay nahin mila.kuchh mood bhi nahin tha.1-2 din mein kuchh naya geet post karti hun-lekin suron ki gaurantee nahin hai [LOL!!]
बहुत अच्छा प्रयास ..........लिखते रहिये
ReplyDeleteआपको मेरी शुभ-कामनाएं
बहुत अच्छे...!!! अच्छा लगा आपको पढ़कर...!!! इसी तरह से आपसे सीखने को मिलते रहेगा... वाह-वाह...!!!
ReplyDeleteहर बार की तरह वाही सधी हुई ग़ज़ल, कठिन शब्दों के अर्थ लिखकर अपने हम जैसे नोशिखियों के लिए बहुत अच्छा प्रयास किया है
ReplyDeleteअर्श भाई,
ReplyDeleteतीन दीनों से बाहर गया था। इसलिए संपर्क कटा रहा।
मुझे लगता है आप लिखतें बहुत है लेकिन आपने मीटर वालों की सलाह पर ज़्यादा ही ग़ौर कर लिया है इसलिए मुझे कहीं कहीं ऐसा लग रहा है कि आप अगर अपनी भाशा (दिल की भाषा) में कहते तो सोने पर सुहागा होता। अगर मेरा ख्याल ग़लत हो तो अपना भाई मान कर माफ करें। आपका फैन तो हूं ही!