Sunday, December 7, 2008

कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में ...

कुछ कम ही मिले मुझसे ज़िन्दगी के बसर में।
आया नहीं वो, के न था , दुआ के असर में ॥

माना के मुद्दई हूँ मैं,पर इतनी तो ख़बर हो ।
क्या ज़ुल्म थी हमारी,कहो जिक्र जबर में ॥

उकता गया हूँ अब तो , मैं भी यूँ ही लेटे हुए ।
चलती रही थी नब्ज़ मेरी,डाला जो कबर में ॥

मिलाया खाक में मुझको,मिटाई हस्ती भी मेरी ।
धुन्दोगे मेरे बाद मुझको,वहीँ गर्दे सफर में ॥

वही मैं था, वही मय वही साकी थे बने तुम ।
वहीँ डूब के रह गया था मैं,बस तेरी नज़र में ॥

आयेंगे मिलजायेगे तुझे,"अर्श"नए दोस्त ।
मुश्किल ही मिले जैसा मेरे,कोई राहबर में ॥

प्रकाश"अर्श"
०७/१२/२००८

11 comments:

  1. दादा /दूसरे शेर में मुझे कुछ गड़बड़ लग रिया है /वाकी तो सरे शेर बहुत अच्छी लगे किंतु इसमें मुझे शंका ये हो रही है की अपने जुल्म के वारे में पूछ रहे हो तो या तो जुर्म सही था दूसरे मुद्दई फरियादी को कहते है यानी वादी याने वो जो दावा पेश करता है यानी जो अपोजिट पक्ष से पीड़ित हुआ हो /वैसे मैं भी कोई ज़्यादा जानकार नहीं हूँ इसलिए गुजारिश ये है की इस शेर वाब्य्त किसी से इस्लाह लेलें तो अच्छा है

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  2. बृजमोहन जी मुद्दई का इस्तेमाल इसलिए किया गया है के वो दुसरे से सताया गया है और वो फरियादी है जिसे अपना गुनाह हा पता ही नही है वो फरियादी है और औ अपना गुनाह पूछ रहा है .. वो फरियादी कु बना जब कोई गुनाह किया ही नही है .....उसका वो जिक्र चाहता है (जबर का मतलब यहाँ उत्तम से लिया गया है )... जिस गुनाह के लिए वो फरियादी बना दिया गया उस गुनाह का जिक्र उत्तम तरीके से हो ताकि सबको पता चले ... यही कहना चाहता था मैं...
    आप ब्लॉग पे आए आपका बहोत बहोत शुक्रिया ... टिपण्णी के लिए आभारी हूँ....

    अर्श

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  3. आसाँ न हुआ और मैंने मुश्किल भी न समझा,
    है इश्क़ और ज़ीस्त का तफ़रका इधर-उधर में।।

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  4. बहुत सुन्दर गजल है अर्श जी।बधाई।

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  5. बडी/लम्‍बी बहर की अच्‍छी गजल ।

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  6. बहुत ही सुंदर गजल लिखी है आप ने.
    धन्यवाद

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  7. " beautifully composed and expressed, liked it ya"

    Regards

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  8. चलती रही थी नब्ज़ मेरी डाला था जब कबर में...बेहद खूबसूरत!! वाह!

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  9. wonderful ghazal....

    waise to puri ghazal hi bahut achhi hai par mujhe ye do lines behad pasand aayi...
    "मिलाया खाक में मुझको,मिटाई हस्ती भी मेरी ।
    धुन्दोगे मेरे बाद मुझको,वहीँ गर्दे सफर में ॥"

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  10. बडी खूबसूरत ग़जल . धन्यवाद.

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