Tuesday, December 16, 2008

वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में ....

वो रात कभी का भुला दिया ।
जो ख्वाब जगे थे सुला दिया ॥

वो खड़ा है मुखालिफ-सफ में
इस बेदिली ने फ़िर रुला दिया ॥

जो करता रहा जुर्मो का सौदा
मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥

रहने लगा मिजाज से आज-कल
जिस वक्त से हमको भुला दिया ॥

क्या बात थी तुम मुकर गए
किस बात पे यूँ लहू ला दिया ॥

आवो ना आजावो"अर्श"वरना
ज़िन्दगी ने दाम पे झुला दिया ॥

प्रकाश"अर्श"
१६/१२/२००८

मुखालिफ-सफ=बिरोधियों की पंक्ति
दाम=फंदा ,मुन्सफी=फैसला॥

एक शे'र खास तौर से विनय भाई(नज़र) के लिए...
लिखो सानी अब तुम नज़र
मैंने तो मिसरा उला दिया ॥

17 comments:

  1. देखो भई अगर यह ग़ज़ल सन 1780 के आस-पास की होती तो चल जाती पर आज कल यूँ लिखने का रिवाज़ नहीं रहा! पर सुन्दर प्रयास है जो कि सराहनीय है!

    ---------------
    चाँद, बादल और शाम
    http://prajapativinay.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. उर्दु नही आती। इस लिए पूरी बात समझ मे नही आई।वैसे अच्छी लगी आपकी गज़ल।

    ReplyDelete
  3. मैं भी नहीं समझ सकी।

    ReplyDelete
  4. जो करता रहा जुर्मो का सौदा
    मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥
    बहुत खूब

    ReplyDelete
  5. बहुत ही खूब लिखा है भाई....
    वो करता रहा जुल्मों का सौदा
    मुन्सफी में उसको बुला लिया
    ये वाला शेर तो जबरदस्त है
    जुल्मो का सौदा क्या बात कही है मान गए उस्ताद....
    कुछ खास नही पर थोड़ा बहुत हमने भी लिखा है....
    तशरीफ़ लाइयेगा इतंजार है मेरे सरताज.......



    अक्षय-मन

    ReplyDelete
  6. बहुत खुब बहुत सुंदर शेर
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  7. सुंदरतम...... बधाई संभालो... मित्र

    ReplyDelete
  8. जो करता रहा जुर्मो का सौदा
    मुन्सफी में उसको बुला दिया ॥
    -बहुत सुंदर ग़ज़ल लिखी है अर्श.
    शब्दों का बड़ा खजाना है आप के पास.

    ReplyDelete
  9. अर्श भाई

    आपका तो फैन हूं ही। एक बढिया ग़ज़ल पेश की है आपने कहीं-कहीं तलफ्फुज़ ठीक नहीं है उन्हें सुधारने मात्र की देरी है, फ़िर देखिये वाह!वह्

    ReplyDelete
  10. waah !वाह ! बहुत ही सुंदर लिखा है.सुंदर ग़ज़ल है.

    ReplyDelete
  11. देर से आने के लिए मुआफी दोस्त......ये शेर

    रहने लगा मिजाज से आजकल
    जिस वक़्त से हमको भुला दिया......
    सुभान अल्लाह...

    ReplyDelete
  12. कहाँ हैं अर्श भाई आपकी कमी खल रही है!

    ReplyDelete
  13. 'वो रात कभी का भुला दिया' क्या यह उर्दू व्याकरण के हिसाब से ठीक है.? आप अब नौसिखिया नहीं हैं, बहर का ध्यान रखें. उर्दू न जाननेवालों की वाह-वाह में गलतियाँ कौन बताएगा? अन्यथा मत लीजिय आपकी नाराजगी का जोखिम उठाकर भी कमी की तरफ इशारा करने का मकसद सिर्फ़ इतना है की आगे और बेहतर लिखें.
    - आचार्य संजीव 'सलिल'
    संजिव्सलिल.ब्लागस्पाट.कॉम / सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम

    ReplyDelete
  14. संजीव जी नमस्कार,
    आपके द्वारा दी गई सलाह सर माथे पे ,मेरे हिसाब से उर्दू ब्याकरण के बारे में अभी मैं अपने पाठको को पुरी तरह से संतुष्टनही कर पा रहा हूँ आगे से इस बात का ख़याल रखूँगा .. आखिर में यही कहूँगा के अभी ग़ज़ल लेखन के क्षेत्र में सिखाने के रास्ते पे हूँ अभी तो बहोत कुछ सिखाना बाकि है आप जैसे गुणी लोगों से ... आपका स्नेह क्रमशः बना रहे यही उम्मीद करता हूँ .....

    आपका
    अर्श

    ReplyDelete
  15. नज़र में मिरी "अर्श", ये दुनिया-ए-फ़ानी
    है मिसरा-ए-उला, है मिसरा-ए-सानी

    ReplyDelete

आपका प्रोत्साहन प्रेरणास्त्रोत की तरह है,और ये रचना पसंद आई तो खूब बिलेलान होकर दाद दें...... धन्यवाद ...