Thursday, December 25, 2008

मैं भटकता रहा इत्मिनान से गैरों की बस्ती में ...

वो के एक रस्म निभाने पे खफा हो बैठा ।
जख्म उसी के थे दिखाने पे खफा हो बैठा ॥

तिश्नगी उसकी किस क़द्र होगी महफ़िल में
जाम टकरा के पिलाने पे खफा हो बैठा ॥

जख्म देकर हादसा बताये फिरता है मगर
वो हादसा अमलन गिनाने पे खफा हो बैठा ॥

रस्मे उल्फत जो सिखाता रहा उम्र भर मुझको
आख़िर वही रस्म निभाने पे खफा हो बैठा ॥

वो दुआ करता रहा मिल जाए खियाबां उसको
लो खिजां में फूल खिलाने पे खफा हो बैठा ॥

मैं भटकता रहा इत्मिनान से गैरो की बस्ती में
दिया जो उसको आशियाने पे खफा हो बैठा ॥

एक चेहरेमें छुपाये रखा है"अर्श"कई चेहरे
आईना उसको दिखाने पे खफा हो बैठा ॥

प्रकाश"अर्श"
२५/१२/२००८

19 comments:

  1. बहुत अच्‍छा लिखते हो यार बधाई हो

    आप सभी को क्रिसमस की शुभकामनाएं

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  2. बहुत अच्‍छा लिखते हो यार बधाई हो

    आप सभी को क्रिसमस की शुभकामनाएं

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  3. वाह वाह प्यारे "अर्श" भाई क्या ही सुन्दर ग़ज़ल कही आपने. और तिश्नगी वाला शेर तो बहुत बडा़ वज़्न रखता है भाई.

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  4. एक चेहरेमें छुपाये रखा है"अर्श"कई चेहरे
    आईना उसको दिखाने पे खफा हो बैठा ॥"
    bahut khoob.

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  5. बढ़िया गज़ल है अर्श। अच्छे शेर खासकर रस्मे उल्फत वाला। गजल पढ़कर पुराना शेर याद हो आया -
    एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा...
    मैंने जो संग तराशा था वो खुदा हो बैठा।

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  6. बहुत ख़ूब

    ---
    चाँद, बादल और शाम
    http://prajapativinay.blogspot.com/

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  7. Wish you a Merry Christmas and may this festival bring abundant joy and happiness in all of yours life!

    Merry Chirstmas.....


    http://spicygadget.blogspot.com/

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  8. बहुत भारी भारी शेर लिखते हो भाई, धन्यवाद

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  9. तिश्नगी उसकी किस कद्र होगी महफिल में / जाम टकरा के पिलाने पे खफा हो बैठा...वाह अर्श जी
    लेकिन मक्ता से पहले वाला शेर समझ में नहीं आया "दिया जो उसके आशियाने पे..."

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  10. गौतम भाई कहने का मतलब है के मैं तो गैरों की बस्ती में इत्मिनान से भटक रहा हूँ,मगर उसे जो भी आशियाना मैंने दिया उल्टा वो मुझसे खफा हो बैठा ..(हर चीज को वो ग़लत लिया)

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  11. बहुत ही अच्छा लिखा है |

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  12. बहुत सुंदर! आपकी कलम बिना रूके चलती रहे...

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  13. 'आइना उसको दिखाने पे खफा हो बैठा'
    आज का ज़माना चापलूसी का है. आइना दिखाने पर हर कोई खफा हो बैठता है.

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  14. बहुत अच्छा लिखते हो दोस्त, मज़ा अ गया पढ़ कर
    खूबसूरत ग़ज़ल

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  15. अर्श भाई , ज्यादा तो नही समझ पाता लेकिन लिखते खूब हो बहुत सुंदर

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  16. bahut umda likha hai bhai badhai ho....
    aur meri shubhkaamnaay aage bhi likhain bahut likhain...

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  17. वाह अर्श साहेब ...
    क्या लिखा है खास कर
    "आइना दिखाने पे वो खफा हो बैठा "
    बधाई ..... नव वर्ष की मुबारकें आज से ही ...

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  18. bahut achha likhte ho arsh , har sher men jaan daal dete ho, kiski taareef karun kiski nahin samajh nahin paata. swapn

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