बहरे खफीफ ..............................................आशीर्वाद
२१२२-१२१२-२२....................................गुरु देव पंकज सुबीर जी
मैंने भी दिल लगा लिया यारों।
जख्म पे जख्म पा लिया यारों ॥
मौज फ़िर ज़िन्दगी नही देती ।
जख्म गहरा जो ना लिया यारों ॥
आज ना डगमगा के चल पाया ।
वादा बादे पे था लिया यारों ॥
हादसे और हो गए होते ।
ख़ुद को पत्थर बना लिया यारों ॥
दफ्न कर 'अर्श'लौट जाओ तुम।
रूह तो और जा लिया यारों ॥
प्रकाश'अर्श'
१५/०१/२००९
बादे=शराब ,जा=जगह ।
Thursday, January 15, 2009
Sunday, January 11, 2009
रे मर जाएगा क्यूँ सोचे है ...
गुरु देव पंकज सुबीर जी के आशीर्वाद से तैयार ये ग़ज़ल ...
कल क्या होगा,क्यूँ सोचे है
मर जाएगा, क्यूँ सोचे है ॥
पछतायेगा , क्यूँ सोचे है ॥
प्रकाश"अर्श"
११/०१/२००९
कल क्या होगा,क्यूँ सोचे है
मर जाएगा, क्यूँ सोचे है ॥
खुद को तक, गिरवी रक्खा है
बिक जाएगा ,क्यूँ सोचे है ॥
बिक जाएगा ,क्यूँ सोचे है ॥
अपना घर कितना अपना है
वो आएगा ,क्यूँ सोचे है ॥शेर नहीं दिल, के छाले हैं
वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है ॥
बीत गया जो, रीत गया जो
वो समझेगा ,क्यूँ सोचे है ॥
बीत गया जो, रीत गया जो
फ़िर लौटेगा ,क्यूँ सोचे है ॥
अर्श है बेबस ,इस दुनिया मेंपछतायेगा , क्यूँ सोचे है ॥
प्रकाश"अर्श"
११/०१/२००९
Saturday, January 10, 2009
जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न था...
उसको मेरी मोहब्बत का एतबार न था ।
मैं लौट आऊंगा उसे मिरा इंतज़ार न था॥
वो लौट आई है शहर में मोहब्बत लेकर
बचपन का प्यार शायद यादगार न था ॥
लिखती थी हथेली पे वो इक नाम हमेशा
देखा तो नाम मिरा वो गमगुसार न था ॥
पूछता रहा मैं हाल उसका औरों के हवाले
जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न था॥
आया है वो भी देख लो चार अश्क बहा के
जिस मजार पे गया था वहां अश्कबार न था॥
आया हूँ कहीं और या हूँ अपने शहर में
पहले तो बागबां"अर्श"यूँ बे-बहार न था ॥
प्रकाश"अर्श"
१०/०१/२००९
मैं लौट आऊंगा उसे मिरा इंतज़ार न था॥
वो लौट आई है शहर में मोहब्बत लेकर
बचपन का प्यार शायद यादगार न था ॥
लिखती थी हथेली पे वो इक नाम हमेशा
देखा तो नाम मिरा वो गमगुसार न था ॥
पूछता रहा मैं हाल उसका औरों के हवाले
जिस दिन से उसके हाल पे इख्तियार न था॥
आया है वो भी देख लो चार अश्क बहा के
जिस मजार पे गया था वहां अश्कबार न था॥
आया हूँ कहीं और या हूँ अपने शहर में
पहले तो बागबां"अर्श"यूँ बे-बहार न था ॥
प्रकाश"अर्श"
१०/०१/२००९
Tuesday, January 6, 2009
आप ही कन्धा आप ही जनाजा ...
पुरानी रंजिश को हवा दीजे ।
फ़िर वही सूरत दिखा दीजे ॥
आज मजबूर-ऐ हालात दिल है
मर ही जाने का हौसला दीजे ॥
हाथ में चार पैसे है बचे अब
ना कहना चाँद-तारे ला दीजे ॥
मैं ग़लत हूँ मुजरिम हूँ अगर
मुझको फंदे पे लटका दीजे ॥
आखिरी ख्वाहिश भी छुपा लूँगा
आप जल्दी से दफना दीजे ॥
आप ही कन्धा आप ही जनाजा
"अर्श"कब्र का रास्ता दिखा दीजे॥
प्रकाश"अर्श"
०६/०१/२००९
आप =मैं ख़ुद ,
फ़िर वही सूरत दिखा दीजे ॥
आज मजबूर-ऐ हालात दिल है
मर ही जाने का हौसला दीजे ॥
हाथ में चार पैसे है बचे अब
ना कहना चाँद-तारे ला दीजे ॥
मैं ग़लत हूँ मुजरिम हूँ अगर
मुझको फंदे पे लटका दीजे ॥
आखिरी ख्वाहिश भी छुपा लूँगा
आप जल्दी से दफना दीजे ॥
आप ही कन्धा आप ही जनाजा
"अर्श"कब्र का रास्ता दिखा दीजे॥
प्रकाश"अर्श"
०६/०१/२००९
आप =मैं ख़ुद ,
Sunday, January 4, 2009
सामने खड़ा है फासला है ये ...
एक बड़ा अच्छा वाकया है ये ।
वो ना समझे है क्या नया है ये ?
हम मोहब्बत में हो गए जुदा ।
लोग कहते इसे कायदा है ये ॥
देख सरगोशी है मोहल्ले में
है मिली उनको जायका है ये ॥
बह रही मुझमे वो लहू बनके
वो मेरी है बस माज़रा है ये ॥
उम्र के जैसी लम्बी हुई दूरी
सामने खड़ा है फासला है ये ॥
लोग कहते है बेवफा है"अर्श"
मैं अगर मानु तो बा-वफ़ा है ये॥
प्रकाश"अर्श"
०४/०१/२००९
वो ना समझे है क्या नया है ये ?
हम मोहब्बत में हो गए जुदा ।
लोग कहते इसे कायदा है ये ॥
देख सरगोशी है मोहल्ले में
है मिली उनको जायका है ये ॥
बह रही मुझमे वो लहू बनके
वो मेरी है बस माज़रा है ये ॥
उम्र के जैसी लम्बी हुई दूरी
सामने खड़ा है फासला है ये ॥
लोग कहते है बेवफा है"अर्श"
मैं अगर मानु तो बा-वफ़ा है ये॥
प्रकाश"अर्श"
०४/०१/२००९
Friday, January 2, 2009
ये खुश्बू जरा जानी पहचानी लगी ...
ढूँढने उनको हम जब भी निकले ।
लो दूर तक बस रास्ते ही निकले ॥
फासला बस कदम भर का ही था,
बढ़ा तो गाम फ़िर गाम ही निकले ॥
दर्द में जब आँख से आंसू ना बहे ,
पिछली दफा थे आखिरी निकले ॥
हया ने पूछा जब देखो शरमा के
हया का नाम तो हया ही निकले ॥
उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली
मुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥
ये खुशबु जरा जानी पहचानी लगी
लगता है "अर्श"इधर से ही निकले ॥
प्रकाश"अर्श"
०२/०१/२००९
लो दूर तक बस रास्ते ही निकले ॥
फासला बस कदम भर का ही था,
बढ़ा तो गाम फ़िर गाम ही निकले ॥
दर्द में जब आँख से आंसू ना बहे ,
पिछली दफा थे आखिरी निकले ॥
हया ने पूछा जब देखो शरमा के
हया का नाम तो हया ही निकले ॥
उम्र भर मुझको मंजिल ना मिली
मुश्किलों में चलाना यूँ ही निकले ॥
ये खुशबु जरा जानी पहचानी लगी
लगता है "अर्श"इधर से ही निकले ॥
प्रकाश"अर्श"
०२/०१/२००९
Thursday, January 1, 2009
है मुनासिब के याद-दाश्त मेरी ग़लत हो ...
वो कौन है जो मेरी तरह दिखता है ।
है मेरा अक्स या मेरी तरह दिखता है ॥
देखकर उड़ते परिंदों को दिल मेरा रोए
उड़ान तू भी तरसे तो मेरी तरह दिखता है ॥
लहू को उसके रगों का मुआयना कर लो
लहू सा है तो फ़िर मेरी तरह दिखता है ॥
मैं हूँ जो बस गैरते-साजिश में मारा गया
तू ठुकराया हुआ है तो मेरी तरह दिखता है ॥
है मुनासिब के याद-दाश्त मेरी ग़लत हो
वादा उसने किया था जो मेरी तरह दिखता है ॥
होता एहसास अगर"अर्श"अपने जुल्मों का
ना करता चर्चे अगर मेरी तरह दिखता है ॥
प्रकाश"अर्श"
०१/०१/२००९
है मेरा अक्स या मेरी तरह दिखता है ॥
देखकर उड़ते परिंदों को दिल मेरा रोए
उड़ान तू भी तरसे तो मेरी तरह दिखता है ॥
लहू को उसके रगों का मुआयना कर लो
लहू सा है तो फ़िर मेरी तरह दिखता है ॥
मैं हूँ जो बस गैरते-साजिश में मारा गया
तू ठुकराया हुआ है तो मेरी तरह दिखता है ॥
है मुनासिब के याद-दाश्त मेरी ग़लत हो
वादा उसने किया था जो मेरी तरह दिखता है ॥
होता एहसास अगर"अर्श"अपने जुल्मों का
ना करता चर्चे अगर मेरी तरह दिखता है ॥
प्रकाश"अर्श"
०१/०१/२००९
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