Thursday, September 15, 2011

नींद से कुछ लिया दिया होगा ...

वाकई बहुत दिन गुज़र गए ! एक लम्बे समय के बाद फिर से चलिए नई ग़ज़ल के साथ, आप सभी के पास हाज़िर हूँ! हालांकि ग़ज़ल तो पूरानी है, मगर आप सभी के सामने पहली बार आ रही है ... बह'र वही फिलहाल ख़फ़ीफ है इस बार भी ... कुछ ज़्यादा भूमिका नहीं बनाते हुये हाज़िर करता हूँ... इस ग़ज़ल को ... क्यूंकि सफर है, तो चलना है ,और चलने का नाम ज़िन्दगी है !



नाम ज्यूं ही मेरा सुना होगा !
उसने पर्दा गिरा दिया होगा !!

मैं तो ख़ुद जी रहा था टुकडों में,
ख़्वाब टुकडों में पल रहा होगा !!

ज़िक्र मेरा वो सुन के देर तलक ,
पागलों की तरह हंसा होगा !!

अपनी कारीगरी से बादल ने ,
तेरा चेहरा बना दिया होगा !!

मांग बैठा था कुछ ज़ियादा वो
इसलिये कुछ नहीं मिला होगा !!

भूख से रात हो गई लम्बी ,
दिन भी अब मुश्किलों भरा होगा !!

उसकी चाहत भी तो ज़रूरी है ,
बस मेरे चाहने से क्या होगा !!

फिर समन्दर की चाहतें लेकर,
चाँद आँखों में आ गया होगा !!

आँख ने ख़्वाब की तिज़ारत में,
नींद से कुछ लिय दिया होगा !!



अर्श