Wednesday, March 24, 2010

विरह के रंग की सीमा ...

गुफ्तगू उनसे रोज होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता....
बशीर बद्र का यह शे' वाकई यहाँ फिट बैठता है , ऐसा लगता है के ये ही की तो बात है जब सीमा जी ने ब्लॉग पर अपनी कविताओं से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया था ... और ये एक आज का दिन जब उनकी पहली पुस्तक "विरह के रंग "काब्य संग्रह के रूप में हमारे सामने है !
सबसे पहले तो बधाई हमारे तरफ से और तमाम उन ब्लॉग से जुड़े लोगों की तरफ से जिन्होंने इन्हें सराहा प्यार और आशीर्वाद से नवाज़ा है !
इस काव्य संग्रह के बारे में यहाँ और कुछ पढ़ें....और यहाँ भी ....

सच में मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई के मुश्किल काम है विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उमिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को लोग समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा है अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है वहाँ हार वाली बात नहीं है वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी !

इसका उदाहर इस छोटी से बात से देखें की ....
मुझसे मुह मोड़ कर तुमको जाते हुए मूक दर्शक बनी देखती रह gaee .
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई

इन चाँद लइनों में एक विरहिन के जो दर्द इन्होने उकेरा है वो अपने आप में कमाल की बात है , जो सिर्फ सीमा जी के बूते की ही बात है !
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
बिलबिला के इस दर्द से
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ
रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
क्या खूबसूरती से इन्होने अपनी शिकायत की है , लेखनी में यही तो धार है तो मानस को झकझोर के रख देता है ...
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत और नहीं हार के बीच में इन की कवितायेँ हैं जो बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...

कमाल ही है ये सब....
एक छोटी सी कविता ने मेरा मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
बिना झपकाए मैं
अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
इस भाव सौंदर्या के लिए सीमा जी को दिल से करोडो बधाई ...
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे' से विदा लेता हूँ के ...
ज़िंदगी का ना जाने मुझसे और तकाज़ा क्या है।
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है
क्या खूब शे' कहा है इन्होने ....
सीमा जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं जिस खूबसूरती से ये विरह के रंग का सौन्दर्यीकरण करती हैं उस बात को कहने के लिए जो दिली ताकत चाहिए वो मुमकिन है आज तक किसी ने नहीं दिखाई ....
अम्बाला में जन्मी और मास्टर डिग्री के उपरांत नव शिखा पोली पैक में महा प्रबंधक के हैसियत से काम कर रही हैं पाठक खुद सीमा जी से संपर्क कर सकते हैं इस पुस्तक के लिए और उन्हें बधाई भी दें -०९८९१७९५३१८ ... इनकी कुछ किताबे क्वालिटी सिस्टम और मैनेजमेंट पर आयी हैं और खूब सराही गयी हैं ....
भगवान् इन्हें खूब बरकत दे और इनकी लेखनी की धार और तेज़ करे जिससे यह विधा और आफताब हो ...
शिवना प्रकाशन को भी इस काव्या संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही आई है जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
प्रकाशक का पता ----
शिवना प्रकाशन पी.सी. लैब ,
सम्राट कॉमप्लेक्स बेसमेंट सब स्टैंड ,
सीहोर - ४६६००१
फोन
... ०९९७७५५३९९

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