Tuesday, September 21, 2010

प्यार जब है तो क्यूँ छुपाते हो ...

और फिर इस वायदे के साथ की नयी ग़ज़ल लगाऊंगा एक हल्की फुल्की ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ , हालाँकि ये अभी तक गुरु जी के द्वारा इस्लाह नहीं की गयी है , बहन ( कंचन)जी के बार बार कहने पर लगा रहा हूँ !! बगैर किसी विशेष भूमिका के ग़ज़ल हाज़िर कर रहा हूँ ! उम्मीद करूँगा गलतिओं को इंगित करेंगे और परामर्श देंगे !
गुरु जी के इंतज़ार में इस विश्वास के साथ की वो जल्द अपनी परेशानियों से बाहर आजाएं !!


दर्द तुम बे-वजह बढाते हो !
प्यार जब है तो क्यूँ छुपाते हो !!

अब तो हिम्मत जवाब दे देगी ,
जिस तरह मुझको आजमाते हो !!

क्या हवाओं ने तुमको चूमा है ,
अब नज़र हर तरफ जो आते हो !!

आ भी जाओ की दिल नहीं लगता ,
तुम बड़े वो हो रूठ जाते हो !!

क्या कोई आस-पास बैठा है ,
बात करने में क्यूँ लजाते हो !!

इश्क में डूबी अपनी आँखों का ,
बोझ यूँ कैसे तुम उठाते हो !!

ज़िंदगी तयशुदा नहीं होती ,
अर्श क्यूँ इसको भूल जाते हो !!

Friday, September 10, 2010

मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाए ...

दिनों बाद एक पुरानी ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ , सोंचा कुछ न कुछ तो चलता रहे ! सबसे पहले आप सभी को ईद , गणेश चतुर्थी और हरियाली तीज की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ! ये ग़ज़ल साल के शुरुआत में तरही के लिए लिखी गयी थी आदरणीय गुरु देव के लिए ! आप सभी का प्यार फिर से चाहता हूँ अगले अंक में नई ग़ज़ल के साथ आऊंगा इसी वादे के साथ !!

हवाओं में खुशबू ये घुल के बताए!
वो खिड़की से जब भी दुपट्टा उडाए !!

मचलना बहकना शरम जैसी बातें ,
ये होती हैं जब मेरी बाँहों में आए !!

उनींदी सी आँखों से सुब्ह को जब भी ,
मेरी जान कह के मेरी जां ले जाए !!

अजब बात होती है मयखाने में भी ,
जो सब को संभाले वो खुद लडखडाए !!

वो शोखी नज़र की बला की अदाएं ,
ना पूछो वजह क्यूँ कदम डगमगाए !!

वो हसरत से जब भी मुझे देखती है ,
मुझे शर्म आए मुझे शर्म आए !!

नज़ाक़त जो उसकी अगर देखनी हो ,
मेरे नाम से कह दो मुझको बुलाए !!

शरारत वो आँखों से करती है जब भी ,
मेरी जान जाए मेरी जान जाए !!

मुझे जब बुला ना सके भीड़ में तो,
छमाछम वो पायल बजा कर सुनाए !!

उम्मीदों में बस साल दर साल गुजरे ,
न जाने नया साल क्या गुल खिलाए !!

अर्श