और फिर इस वायदे के साथ की नयी ग़ज़ल लगाऊंगा एक हल्की फुल्की ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ , हालाँकि ये अभी तक गुरु जी के द्वारा इस्लाह नहीं की गयी है , बहन ( कंचन)जी के बार बार कहने पर लगा रहा हूँ !! बगैर किसी विशेष भूमिका के ग़ज़ल हाज़िर कर रहा हूँ ! उम्मीद करूँगा गलतिओं को इंगित करेंगे और परामर्श देंगे !
गुरु जी के इंतज़ार में इस विश्वास के साथ की वो जल्द अपनी परेशानियों से बाहर आजाएं !!
दर्द तुम बे-वजह बढाते हो !
प्यार जब है तो क्यूँ छुपाते हो !!
अब तो हिम्मत जवाब दे देगी ,
जिस तरह मुझको आजमाते हो !!
क्या हवाओं ने तुमको चूमा है ,
अब नज़र हर तरफ जो आते हो !!
आ भी जाओ की दिल नहीं लगता ,
तुम बड़े वो हो रूठ जाते हो !!
क्या कोई आस-पास बैठा है ,
बात करने में क्यूँ लजाते हो !!
इश्क में डूबी अपनी आँखों का ,
बोझ यूँ कैसे तुम उठाते हो !!
ज़िंदगी तयशुदा नहीं होती ,
अर्श क्यूँ इसको भूल जाते हो !!
गुरु जी के इंतज़ार में इस विश्वास के साथ की वो जल्द अपनी परेशानियों से बाहर आजाएं !!
दर्द तुम बे-वजह बढाते हो !
प्यार जब है तो क्यूँ छुपाते हो !!
अब तो हिम्मत जवाब दे देगी ,
जिस तरह मुझको आजमाते हो !!
क्या हवाओं ने तुमको चूमा है ,
अब नज़र हर तरफ जो आते हो !!
आ भी जाओ की दिल नहीं लगता ,
तुम बड़े वो हो रूठ जाते हो !!
क्या कोई आस-पास बैठा है ,
बात करने में क्यूँ लजाते हो !!
इश्क में डूबी अपनी आँखों का ,
बोझ यूँ कैसे तुम उठाते हो !!
ज़िंदगी तयशुदा नहीं होती ,
अर्श क्यूँ इसको भूल जाते हो !!