नमस्कार आप सभी को , देरी के लिए मुआफी भी चाहूँगा ! कुछ ऐसी मसरूफियत जिसकी कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती ! और इसी वजह से ग़ज़ल को आप सभी तक लाने में देर हुई ! चलिए एक पुरानी ग़ज़ल आप सभी को सुनाता हूँ ! बह'र वही खफिफ़ .......इधर हाल ही में सीहोर जाना हुआ और पूरे गुरुकुल का जमावड़ा रहा ! बहुत मज़ा आया ! अगली बार फिर से एक नई ग़ज़ल के साथ हाज़िर होने के वादे के साथ ...
उम्र का ये पड़ाव कैसा है !
ख्वाहिशों का अलाव कैसा है !!
हसरतें टूट कर बिखर जाये ,
काइदों का दबाव कैसा है !!
जो कभी सूख ही नहीं पाता,
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!
मैं उलझ कर फंसा रहा जिनमें,
इन लटों का घुमाव कैसा है !!
जिसको देखो बहा ही जाता है,
इस नदी का बहाव कैसा है!!
बेमज़ा जिंदगी है इसके बिन,
तेरे ग़म से लगाव कैसा है!!
कर चुके दफ़्न अर्श ख्वाबों को
फिर ये जीने का चाव कैसा है!!
अर्श