Sunday, January 17, 2010

मैं साँसे शाईराना चाहता हूँ ...

सर्दी अपने शबाब पर है , मगर तरही कि सरगर्मी भी खूब जोर पर है ... ये दोनों ही अपने अपने जगह मुकम्मल हैंइन दो कुदरती हसीन और जहीन चीजों के बीच ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ ... आप सबी के प्यार के लिए गूरू जी के आशीर्वाद के बाद ... ग़ज़ल का तीसरा शे' गूरू जी ने दिए हैं...


ग़मों से दूर जाना चाहता हूँ
मैं फ़िर से मुस्कुराना चाहता हूँ

मैं बच्चा बन के मां की गोद से फ़िर
लिपट के खिलखिलाना चाहता हूँ

पिता ही धर्म हैं ईमां हैं मेरे
वहीं बस सर झुकाना चाहता हूँ

जहां कोई खड़ा है राह ताकता
वहीं फ़िर लौट जाना चाहता हूँ

सुना है रूठ कर सुन्दर लगे है
उसे गुस्सा दिलाना चाहता हूँ

लहू का रंग मेरा इश्क जैसा
मैं साँसे शाईराना चाहता हूँ

ग़ज़ल होती नहीं बस वो मुकम्मल
जिसे उसको सुनाना चाहता हूँ


अर्श

Monday, January 4, 2010

आधी जली बीड़ी ...




खुद में
ठिठुरती सर्दी फ़िर से

धमकी है
फेंफडे जैसे जम जाए
साँसे दुबकती नज़र आती हैं
नसों का उबाल सिकुड़ने पर आमादा है
आधी जली बीड़ी
फ़िर सुलगाता है
धुएं कि गर्मी
है
रात
कि तपिश खातिर
दीमक लगी दिवार पर
पीठ टिकाते
दांत कटकटाते
यही
सोंचता है
क्या
आज कि रात
उसे
नींद आजायेगी ?



अर्श

Friday, January 1, 2010

नव आगमन शुभ आगमन

नव वर्ष कि ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं आप सभी को

नव वर्ष सबके जीवन में खुशियाँ लेकर आये ॥ उधर गूरू कुल में तरही प्रारंभ हो चुकी है अब पुरे महीने ग़ज़ल उत्सव का माहौल रहेगा ॥ और एक नया ब्लॉग भी बना है ग़ज़ल का सफ़र के नाम से जिसमे ग़ज़ल कि तकनिकी ज्ञा दी जाएगी ॥ सभी गूरू कुल के भाई बहनों को मेरे तरफ से ढेरो बधाईयाँ ... आनंद लें एक छोटे से मुक्तक का और आशीर्वाद दें ॥

ख्वाजा बाबा के दरगाह के बाद पुष्कर जाते हुए मैं और मेरी धड़कन (भाई)

श्रधेय महावीर शर्मा जी के ब्लॉग पर नव वर्ष पर एक मुशायरे का आयोजन हुआ है वहाँ पढ़ने जरुर जाएँ

नव आगमन शुभ आगमन
पुलकित है मन, हर्षित चमन

तू भूल जा सब द्वेष को
अब छोड़ दे हर क्लेश को
मिलके सभी कर लें वरन
नव आगमन शुभ आगमन


अर्श