Wednesday, July 30, 2008

जिंदगी तुझसे कोई वादा....

जिन्दगी तुझसे कोई वादा निभाना तो नही था ,
मौत आई है, खड़ी है, कोई किस्सा सुनना तो नही था ॥
लम्हों की जागीर लुटाकर हम चल दिए ,
इस दीवाने को दिल से कभी लगाना तो नही था ॥
तू फकत मुझसे मिली होती तो कोई और बात थी ,
मौत को साथ लिए मुझसे मिलाना तो नही था ॥
तमाम शहर आज इक शक्श के जनाजे में गया था ,
ख़बर ये है के वो शक्श मुझसा दीवाना तो नही था ॥
फलक के पार कोई और शहर बसती है "अर्श "
उस इक शहर का खवाब मुझे दिखाना तो नही था॥
प्रकाश "अर्श"
३०/०७/२००८

Sunday, July 27, 2008

जब यादे लौटके आई तो थी भीगी भीगी सी ...


मैं तनहा बैठा था ,
जब यादें लौट के आई तो थी
भीगी भीगी सी....
सर्द हवा की थरथराहट
और नर्म रजाई की गर्माहट थी उसमे
सर्दी की सुबह ओश
में थी
भीगी भीगी सी....
मैं चाय के प्याले से
निकले वास्प से
एक धुंधली तस्वीर बना डाला
वही तेरी छोटी - छोटी
सी ऑंखें थी
भीगी भीगी सी.....
वही मासूम चेहरा
सुनसान रस्ते पे दूर तलक दिखा
पास आया तो लैब थर्रा उठे
कुछ कह पते की तब तक
यादें जब आई तो थी
भीगी भीगी सी.....
मैं केसे कह दू की
तुम मेरी तक़दीर हो
मगर
तुम्हारी पहली छुआन
मुलायम हांथों से मेरी
हथेलिओं पे जो कुरेदा तुमने
बस लौट के आई तो थी
भीगी भीगी सी.....
सूखे साख पे वो
आखिरी आधी हरी पत्ती
जिंदगी की उम्मीद कर बैठा
वक्त भी खामोश था
दुया जब वापस लाउत आई तो थी
भीगी भीगी सी ....
तेरे सांसो की खुशबु
से अब भी तर है जहाँ अपनी
मैं अब भी खामोश हूँ
धडकनों से बस बात करता हूँ
सोंचता हूँ
वो तेरा झूम के गले लगना
पहली दफा
जब लौट के आई तो थी
भीगी भीगी सी .....
वो बरसात की रिमझिम फुहार
एक आँचल में मुश्किल से
दोनों के छुपाना
तेरे गले पे एक बूंद का ठहर जाना
यादें लौटके आई तो थी
भीगी भीगी सी....

प्रकाश "अर्श "
२७/०७/2008

Sunday, July 13, 2008

वो गिरफ्ते-ग़म की ....

वो गिरफ्ते - ग़म की नुमाइश हो जाए ,
ऐ जिंदगी फ़िर तेरी आज़माइश हो जाए॥

वो मुज्जसम सी बेखुदी की कसम ,
उम्र बाकि है अभी कोई ख्वाइश हो जाए ॥

गर्मी-ऐ-हसरते -नाकाम में जल गए होते ,
खुदानुमाई की नुमाइश हो जाए ॥

वो जो बे-नज़र,बे - जुबान खड़ा है "अर्श"
कुछ करो की उनकी सिफारिश हो जाए ॥

प्रकाश "अर्श "
१३/०७/ 2008

Friday, July 11, 2008

कितने दिन और बचें है.......

कितने दिन और बचें है जिंदगी में मेरे ,
मैं करके बैठा हूँ हिसाब दिल्लगी में मेरे॥

मैं हूँ एक शर्त ,लगावो हार भी जावो अगर,
मुझको ना होगा कोई गम है सादगी में मेरे ॥

वो आयेंगे ,ना आयेंगे इसी तलातुम में हूँ ,
देखता हूँ क्या असर है बंदगी में मेरे ॥

टुकडो टुकडो से बनाई थी एक तस्वीर "अर्श" ने ,
वो आशना भी दूर खड़ा है अजनबी में मेरे ॥

प्रकाश"अर्श"
२४/०५/2008

Thursday, July 3, 2008

वो आधी चादर.......

कहने को तो है सारा जहाँ मेरा,
ये ज़मीं मेरी ये आसमान मेरा॥

में थक के बैठा हूँ सोंचता हूँ तनहा,
बहोत देर होली,अब होजा अँधेरा,
मिले चंद पैसा तो लेलूं मैं राशन,
पकाऊं कहाँ मैं ,ना है कोई चुल्हा,
बस पी लूँ , घूंट पानी तो मिटे भूख सारा,
बिछा लूँ में चादर वहीँ फुटपाथ पर,
सो जाऊँ तानकर मैं वही आधी चादर,
कहने को तो है सारा जहाँ मेरा।
ये ज़मीं मेरी ये आसमान मेरा॥

कड़ी धुप में भी वो तोड़ती पत्थर,
चूडियों की खनक पे वो अब भी है दीवाना,
बगल में है रोता चिल्लाता ,वो छोटा माँ माँ,
छाती से लगाती वो कहती है, चुप हो ले
आँचल से छुपाती,तो वही फटी आँचल
कमाए की कहती है पुरी कहानी ,
वो उठ कर ओढ़ता है फ़िर वही अधि चादर,
कहने को तो है सारा जहाँ मेरा,
ये ज़मीं मेरी ,ये आसमान मेरा॥

वो है कैसे जिन्दा इस ऐसे शहर में ,
जो है लंगडा ,लुल्हा,गूंगा और बहरा,
मेरा हाँथ पैर तो सलामत है लेकिन ,
अमीरी गरीबी का है खेल सारा ,
कोई तो गरीबी मिटा दो ,मिटा दो यहाँ से
यही एक ख्वाब है मुझ जैसे गरीब की ,
फ़िर सो जाऊँ तानकर वही अधि चादर,
कहने को तो है सारा जहाँ मेरा ,
ये ज़मीं मेरी ये आसमान मेरा ॥


प्रकाश "अर्श"
०२/०७/2008

Tuesday, July 1, 2008

मेरी अंदाजे-नवां तुम हो..........

मेरी मोहब्बत की वफ़ा तुम हो ,
मेरी बंदगी, मेरी दुआ तुम हो ॥

हर एक वरक पे है दास्ताँ हमारी ,
मैं सब हूँ मेरी वाक्या तुम हो ॥

आज हरतरफ दिख रही है खामोशी,
शुक्र है में हूँ,मेरी जुबान तुम हो ॥

तुम हटाना ना रूख से परीशां जुल्फें ,
मैं मर ही जाऊंगा यूँ नशा तुम हो ॥

मैं दुआ करूँ मगर हर्फे-दुआ काया हो ,
"अर्श"जब कहे मेरी अंदाजे-नवा तुम हो ॥

प्रकाश "अर्श"
०१/०७/2008