गूरू जी के आर्शीवाद से छोटी बह'र की एक और ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ... आप सभी का प्यार और आर्शीवाद चाहूंगा...
बह'र - १२२ १२२
फ़ऊलुन फ़ऊलुन
मैं खुश हूँ उड़ा कर ।
यूँ हस्ती मिटा कर ॥
ये कैसे कहूँ मैं ,
हूँ जिंदा भुला कर ॥
वो आया नहीं क्यों ,
बता दो पता कर ॥
सुना फैसला अब ,
तू हां कर या ना कर ॥
मुझे उसने लूटा ,
पड़ोसी मिला कर ॥
लिखा है ये माँ ने ,
तू आजा खुदा कर ॥
दुआ ज़िन्दगी की ,
हलाहल पिला कर ॥
वो बदनामी को भी ,
गया ले भुना कर ॥
करे अर्श अब क्या ,
वो बैठा है आ कर ॥
प्रकाश"अर्श"
Friday, May 29, 2009
Friday, May 22, 2009
थके - थके से कदम ...
Thursday, May 7, 2009
ये मनाने का हुनर हो शायद ...
गूरू देव ने इसे छू लिया और ये कहने लायक बन पडी है आप सभी का आर्शीवाद भी चाहूँगा ...
बहरे रमल मुसद्दस मखबून मुसक्कन
( २१२२ ११२२ २२ )
मेरा भी दिल-ओ- ज़िगर हो शायद ।
उसको भी इसकी ख़बर हो शायद ॥
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
मेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
दूर जाकर के वो बैठा मुझसे ।
ये मनाने का हुनर हो शायद ॥
बस्तियों को जो जला कर खुश है ।
उनका भी इक कहीं घर हो शायद॥
मैं फकीरों की तरह फिरता हूँ ।
उनपे अल्लाह की मेहर हो शायद ॥
'अर्श' रहता है अंधेरों में अब ।
क्या पता कल न सहर हो शायद ॥
प्रकाश"अर्श"
०७/०५/२००९
बहरे रमल मुसद्दस मखबून मुसक्कन
( २१२२ ११२२ २२ )
मेरा भी दिल-ओ- ज़िगर हो शायद ।
उसको भी इसकी ख़बर हो शायद ॥
रास्ते दे रहे आवाज़ मुझे ।
मेरी किस्मत में सफर हो शायद ॥
दूर जाकर के वो बैठा मुझसे ।
ये मनाने का हुनर हो शायद ॥
बस्तियों को जो जला कर खुश है ।
उनका भी इक कहीं घर हो शायद॥
मैं फकीरों की तरह फिरता हूँ ।
उनपे अल्लाह की मेहर हो शायद ॥
'अर्श' रहता है अंधेरों में अब ।
क्या पता कल न सहर हो शायद ॥
प्रकाश"अर्श"
०७/०५/२००९
Friday, May 1, 2009
वो कातिल अदा उफ़ ...
लगातार बड़ी बहर पे लिखने के बाद एक छोटी बहर की ग़ज़ल आप सभी के सामने लेकर आया हूँ आर्शीवाद गूरू देव का है, आप सभी का भी स्नेह और आर्शीवाद चाहूँगा ....
बहर .... १२२ १२२
फ़ऊलुन फ़ऊलुन
वो कातिल अदा उफ़
वो हुस्न-ऐ शबा उफ़ ॥
हैं दीवाने हम पर
हां तेरी वफ़ा उफ़ ॥
है दिल हारने में
लो नुक्सा नफ़ा उफ़ ॥
वो आदाब में भी
नजाकत है क्या उफ़ ॥
लगी भीड़ कैसी
है क्या माजरा उफ़ ॥
वो जां लेके बोले
तुम्हे क्या हुआ उफ़ ॥
चले उसको छूकर
ये आबो हवा उफ़ ॥
दबे लब से कहना
वो है'अर्श'का उफ़ ॥
प्रकाश"अर्श"
०१/०५/२००९
बहर .... १२२ १२२
फ़ऊलुन फ़ऊलुन
वो कातिल अदा उफ़
वो हुस्न-ऐ शबा उफ़ ॥
हैं दीवाने हम पर
हां तेरी वफ़ा उफ़ ॥
है दिल हारने में
लो नुक्सा नफ़ा उफ़ ॥
वो आदाब में भी
नजाकत है क्या उफ़ ॥
लगी भीड़ कैसी
है क्या माजरा उफ़ ॥
वो जां लेके बोले
तुम्हे क्या हुआ उफ़ ॥
चले उसको छूकर
ये आबो हवा उफ़ ॥
दबे लब से कहना
वो है'अर्श'का उफ़ ॥
प्रकाश"अर्श"
०१/०५/२००९
Subscribe to:
Posts (Atom)