Sunday, May 30, 2010

विरह के रंग (सीमा गुप्ता )


८ मई को जब सीमा जी के विरह के रंग कव्य संग्रह का विमोचन सीहोर में डा. बशीर बद्र , बेकल उत्साही ,राहत इन्दौरी , और नुसरत मेहंदी साहिबा के हाथों हुआ तो इस ऐतिहासिक और स्वर्णिम पल का गवाह मैं खुद हूँ, किस तरह से इस विरह के रंग की सराहना की गयी थी ! ऐसा लगता है के ये ही तो बात है जब सीमा जी ने ब्लॉग पर अपनी कविताओं से लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया था ... और ये एक आज का दिन जब उनकी पहली पुस्तक "विरह के रंग "काब्य संग्रह के रूप में हमारे सामने है !
सच में, मैं खासकर सीमा जी की छंद मुक्त कविताओं का हमेशा ही से प्रशंसक रहा हूँ , जिस भाव और तेज से ये विरह की बात करती हैं , जहन यह सोचने पर मजबूर हो जाता है के आखिर इस मुश्किल बिधा को कैसे ये आसानी से कह लेती हैं... जो वाकई बेहद मुश्किल काम है, विरह के बारे में लिखना बेहद कठिन काम है साहित्य की बिधा में ...
सच कहूँ तो कोई इस तरफ ध्यान भी नहीं देता, इस खालिस पाक लेखन की तरफ ! वरना हमारे साहित्य में वैदेही की तड़प , उर्मिला की पीर , और मांडवी की छटपटाहट को लोग पढ़ते और उनकी इस पीड़ा को भी समझते ! मगर कहीं भी इनके बारे में कोई उल्लेख सात्विक तौर पर नहीं मिलता ... तभी मैं कहता हूँ के विरह को साहित्य में जो स्थान और मुकाम हासिल होनी चाहिए थी वो नहीं हुई और वो हमेशा ही अपनी इस सौतेले ब्यवहार आंसुओं पर बहाई है !
सीमा जी की कविताओं के बारे में वरिष्ठ गीतकार और लेखक श्री हठीला जी खुद कहते हैं के विरह की जिस रूप को सीमा जी ने अपनी कविताओं में रखा है, वहाँ हार वाली बात है ही नहीं , वहां एक संघर्ष है जो जीवन को कहीं से भी विचलित नहीं होने देती ! एक तप है ,एक साधना है ,एक पूर्ण जीवन है, इस विरह की कविताओं में जो हर संवेदनशील मन को अपने से प्रतीत होते हैं ! ये कहना सही भी है !

इसका उदाहर इस छोटी से बात से देखें की ....
मुझसे मुह मोड़ कर तुमको जाते हुए मूक दर्शक बनी देखती रह गई .
क्या मिला था तुम्हे मेरा दिल तोड़कर ज़िंदगी भर यही सोचती रह गई


इन चंद लइनों में एक विरहिन के जो दर्द को इन्होने उकेरा है वो अपने आप में ज़मानत है इस विरह के रंग के लिए , जो सिर्फ सीमा जी के बूते की ही बात है !
हिंदी की शब्दों का समिश्रण जिस तरह से इन्होने किया है साथ ही कुछ ऐसे शब्द जो मूलतः विरह के लिए ही बने हों जैसे - 'बिलबिलाना " ऐसे शब्द बहुत ही कम पढने को मिलते है...
बिलबिला के इस दर्द से
किस पनाह में निजात पाऊं...
तूने वसीयत में जो दिए,
कुछ
रुसवा लम्हे ,
सुलगती तन्हाई,
जख्मों के कुछ नगीने ...
क्या खूबसूरती से इन्होने अपनी शिकायत की है , लेखनी में यही तो धार है तो मानस को झकझोर के रख देती है ...
विरह में शिकायत तो होती है मगर उसका तरिका अलग हो तो और भी खुबसूरत हो जाए ... मुझे जहाँ तक लगता है के शिकायत, और नहीं हार, के बीच में इन की कवितायेँ हैं जिसके लिए बरबस ही मुखमंडल से वाह की ध्वनि फूटती है ...
सबसे पहली कविता....
ह्रदय के जल थल पर अंकित
बस चित्र धूमिल कर जाओगे
याद तो फ़िर भी आओगे ...

कमाल ही है ये सब....
एक छोटी सी कविता ने जिस तरह से मन मोह लिया आखिरी पन्ने पर जब इसे मैंने पढ़ा ...
बिना झपकाए मैं
अपलक देखूं
तुम को देखने की
अपनी ललक देखूँ !
इस भाव सौंदर्या के लिए सीमा जी को दिल से करोडो बधाई ...
लगभग ९० कवितायेँ और कुछ गज़लें भी हैं इस काव्य संग्रह में जो आपको विरह के सारे ही रंग से ओत प्रोत करेगा और बताएगा के विरह रंगहीन नहीं होता उसमे भी एक रंग है जिससे लोगों ने सौतेला ब्यवहार किया है ...
बस उनके इस शे'र से विदा लेता हूँ के ...
ज़िंदगी का ना जाने मुझसे और तकाज़ा क्या है।
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है
क्या खूब शे' कहा है इन्होने ....
विरह के रंग में कुछ ऐसी कवितायेँ हैं जो चाहती हैं के उन्हें और विस्तार दी जाए ताकि वो मुकम्मिल तरीके से अपनी शिकायत को सौंदर्य बोध से लोगों के और करीब पहुँच सके !
सीमा
जी ब्लॉग जगत में किसी भी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं जिस खूबसूरती से ये विरह के रंग का सौन्दर्यीकरण करती हैं उस बात को कहने के लिए जो दिली ताकत चाहिए वो मुमकिन है आज तक किसी ने नहीं दिखाई ....

अल्लाह मिक्यान इन्हें खूब बरकत दे और इनकी लेखनी की धार और तेज़ करे जिससे यह विधा और आफताब हो ...
शिवना प्रकाशन को भी इस काव्य संग्रह के लिए ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...
शिवना प्रकाशन से प्रकाशित यह काव्य संग्रह हालिया ही है,जो पठनीय और संग्रहनीय है , जिसका मूल्य मात्र २५० /- रुपये हैं!
प्रकाशक का पता ----
शिवना प्रकाशन पी.सी. लैब ,
सम्राट कॉमप्लेक्स बेसमेंट सब स्टैंड ,
सीहोर - ४६६००१
फोन
... ०९९७७५५३९९

अर्श

Saturday, May 15, 2010

साहित्य , सुबीर और सीहोर ...



सच कहूँ तो आजकल ठीक से नींद नहीं आती , पता नहीं किस ख़ाब को हक़ीकत होते देख लिया है मैंने ! हाँ सच ही तो है और ये बात है उस जगह की जहां साहित्य की सरिता बहती है, जिसे मैं सीहोर कहता हूँ ! ८ तारीख मेरे जीवन का सबसे हसीन या स्वर्णिम क्षण कह सकते हैं जब गुरु जी , जिनसे मैं ग़ज़लों की बारीकियां सीखता हूँ , और जनाब बशीर बद्र जिनको शुरू से पढता आया हूँ के दर्शन हुए ! उस एक पल को जिस तरह से मैं जी रहा था उसके लिए उपयुक्त शब्द तो नहीं हैं मेरे पास बस मैं अपने सपने को हक़ीकत में जी रहा था , इतना ही कहूँगा ! जनाब बेकल उत्साही और राहत इन्दौरी साहब जैसे उस्ताद शाईरों से मिलना और उनसे बातें हो जाना अपने आप में शौभाग्य की बात है ! मैं सच कहूँ तो ये सारी खुशियाँ अभी तक समेट नहीं पा रहा पूरी तरह से !
अपने सबसे चहेते शाईर जनाब बशीर बद्र के साथ


जनाब बेकल उत्साही और हठीला जी

राहत साहब के साथ हम चारो

उस एतिहासिक कार्यक्रम के बारे में तो हर तरफ चर्चाएँ हुई हैं और सभी ने खूब तारीफें की है , मगर उसके बाद एक और छोटा सा कार्यक्रम किया गया था जो प्रसिद्ध गीतकार आदरणीय हठीला जी के यहाँ हुआ !
गुरु जी कविता पाठ करते हुए

दुसरे दिन का यह कार्यक्रम यूँ कहें के निज़ी तौर पे था , जहां हमें साक्षात् रूप में गुरु जी को सुनने का मौक़ा मिला , सच कहूँ तो ये पल सारे ही पलों से अविस्मरनीय था, जब गुरु जी को सुन रहा था ! सच कहूँ तो शुद्धरूप से सरस्वती उनके कलम की नोक पर और आवाज़ में कंठ में बस्ती हैं ! गुरु जी को साक्षात् सुनना अपने आप में गौरव और भाग्य की बात है !
गुरु भाई रवि , अंकित, और वीनस

इस छोटे से आयोजन में सभी लोगों ने सिरकत किये जहाँ मुझे अपने गुरु भाईयों , जिसमे भाई रवि, अंकित और वीनस को सुनने का मौक़ा मिला वहीँ श्री रमेश हठीला और बड़ी बहन मोनिका हठीला को सुन मन गदगद हो गया ! मंच का संचालन अंकित ने संभाला जो वाकई अपने आप में एक साहस की बात है , पहली दफा सभी को सुनना अपने आप में सुखद अनुभूति कहे तो सार्थक बात होगी !
जिस तरह से रवि भाई गीत लिखते हैं और गाने में अपनी पूरी हक़ अदा करते हैं उसी तरह से वीनस और अंकित भी अपने शेरियत में कोई कसर नहीं छोड़ते !
फिर कुछ नए लिख्खाड़ों को सुनने का भी मौक़ा मिला जिन्हें सुन सभी रोमांचित हो रहे थे !
जन्म दिन की विशेष बधाई

इसके बाद का समय था अंकित के जन्म दिन को मनाने का , खूब हंगामा किये हमने और खूब जश्न मनाये , एक शुद्ध मिठाई थी जो मूलतः गुजरात से आई हुई थी मोनिका बहन जी के यहाँ से , वाह क्या स्वाद थी उसमे ! मैंने दो ले लिए अपने आदत के हिसाब से !
बाटी और दाल हठीला माँ की हाथ का ना भूल पाने वाली रात्री भोज में शामिल है ! और साथ में चटनी ! गुरु जी को बाटी के चूरमे के साथ शक्कर लेना ज्यादा पसंद है तभी कहूँ इतनी मीठी आवाज़ कैसे है ! सभी आगंतुकों को स्मृति चिन्ह भेंट की गयी ! और ऐसी स्मृतियाँ जो जीवन भर ना भूल पाने वाली बात है !
अपने गुरु भाईयौं से मिलना , और उनके साथ दो दिन गुजारना सच में क्या खूब अनुभव रहा है ! परी और पंखुरी के साथ कैरम खेलना और उनकी भोली शिकायतें सोच कर कभी कभी खुद हस पड़ता हूँ !
कुछ एक कमी रही जिसमे बहन जी (कंचन ) और भाई गौतम जी की अनुपस्थिति हमेशा ही खली , जो कुछ सोचा था के ऐसे करेंगे वेसे करेंगे धरा का धरा ही रह गया इन दोनों के साथ , सच तो यही है के समय सबसे बड़ा बलवान होता है !इनकी कमी सभी ने महसूस किये वहाँ पर !
गुरु जी के सानिध्य में हम चारो

जिस तरह से गुरु जी ने हमें प्यार और आशीर्वाद दिया उसके बारे में मैं कुछ बता ही नहीं सकता जिसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं !